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क्यों पवन सिंह ने आरजेडी छोड़कर चुनी बीजेपी? समझें आरा सीट का पूरा समीकरण

क्यों पवन सिंह ने आरजेडी छोड़कर चुनी बीजेपी? समझें आरा सीट का पूरा समीकरण

भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार और राजनीति में लगातार सुर्खियों में रहने वाले पवन सिंह ने आखिरकार आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में आरा सीट से चुनाव लड़ने के लिए भारतीय जनता पार्टी (पवन सिंह बीजेपी) का दामन थाम लिया। कुछ समय पहले तक वे तेजस्वी यादव की तारीफ करते नहीं थकते थे और उनकी आरजेडी से नजदीकियों की भी खूब चर्चा थी। यहां तक कि यह भी कहा गया कि वे प्रशांत किशोर की पार्टी से भी मैदान में उतर सकते हैं। लेकिन आखिरकार उन्होंने यू-टर्न लिया और चुनावी बिसात पर बीजेपी को चुना। आखिर इसके पीछे क्या समीकरण हैं?

 

बीजेपी में वापसी और नए समीकरण

करीब 16 महीने बाद पवन सिंह की बीजेपी में वापसी हुई है। हाल ही में उनकी मुलाकात केंद्रीय मंत्री आरके सिंह, अमित शाह और जेपी नड्डा से हुई। इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर तस्वीरें साझा कीं और लिखा कि जातिवादी ताकतें इन्हें देखकर बेचैन हो रही हैं। यानी साफ है कि अब वे सीधे-सीधे आरजेडी पर हमलावर हैं।

 

आरा सीट पर जातीय गणित

आरा विधानसभा सीट, जहां से पवन सिंह के चुनाव लड़ने की संभावना है, वहां जातीय समीकरण बेहद अहम हैं। यहां करीब 35 हजार राजपूत और 28 हजार यादव वोटर हैं। इसके अलावा ब्राह्मण और दलित समुदाय की भी अच्छी-खासी संख्या है। चूंकि ब्राह्मण बीजेपी का कोर वोट बैंक माने जाते हैं और एनडीए में चिराग पासवान व जीतनराम मांझी की पार्टियां भी शामिल हैं, इसलिए दलित-महादलित वोट भी NDA की तरफ झुकते दिखते हैं। यही वजह है कि पवन सिंह बीजेपी के साथ मिलकर इस समीकरण का फायदा उठाना चाहते हैं।

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साल 2000 से बीजेपी का दबदबा

आरा सीट के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो यहां साल 2000 से बीजेपी का मजबूत प्रभाव रहा है। अमरेंद्र प्रताप सिंह इस सीट से पांच बार विधायक रहे हैं। हालांकि 2015 में आरजेडी-जेडीयू गठबंधन के उम्मीदवार मोहम्मद नवाज आलम ने उन्हें मात दी थी। इसके बावजूद इस सीट पर बीजेपी का पारंपरिक दबदबा कायम है। यही कारण है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में पवन सिंह बीजेपी के टिकट से मैदान में उतरना अपने लिए फायदे का सौदा मान रहे हैं।

 

उम्रदराज़ विधायक और टिकट की संभावना

आरा सीट से पांच बार विधायक रह चुके अमरेंद्र प्रताप सिंह अब 78 वर्ष के हो चुके हैं। बीजेपी की अघोषित नीति के अनुसार 75 साल से ऊपर के नेताओं को टिकट नहीं दिया जाता। ऐसे में पार्टी को इस सीट पर नए और मजबूत चेहरे की तलाश थी। यहां पवन सिंह पार्टी के लिए एक स्टार उम्मीदवार बनकर उभरे हैं। उनका स्टारडम और युवाओं में लोकप्रियता बीजेपी को एक मजबूत विकल्प देती है।

 

 

क्यों पवन सिंह ने आरजेडी छोड़कर चुनी बीजेपी? समझें आरा सीट का पूरा समीकरण

स्टारडम और संगठन की ताकत का मेल

लोकसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर खड़े होकर पवन सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा जैसे बड़े नेताओं को पीछे छोड़ दिया था और दूसरे स्थान पर रहे थे। उस चुनाव के बाद उनके समर्थकों में यह भावना रही कि अगर उनके पास किसी पार्टी का सिंबल होता तो नतीजे अलग होते। शायद इसी ‘काश’ को मिटाने के लिए इस बार वे किसी मजबूत पार्टी के साथ चुनाव लड़ना चाहते हैं। उन्हें एहसास हो चुका है कि केवल स्टारडम से राजनीति में सफलता नहीं मिलती, बल्कि संगठन की ताकत का साथ भी जरूरी है। यही कारण है कि उन्होंने पवन सिंह बीजेपी को चुना।

 

भोजपुर की जड़ों से जुड़ा रिश्ता

पवन सिंह मूल रूप से भोजपुर जिले के जोकरही गांव के रहने वाले हैं। उनका पैतृक गांव बड़हरा विधानसभा क्षेत्र में आता है जबकि आरा शहर में भी उनका निवास है। इस लिहाज से देखें तो वे बड़हरा और आरा, दोनों ही सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं। लेकिन आरा सीट पर बीजेपी का पुराना दबदबा और जातीय समीकरण उन्हें यहां ज्यादा फायदे का मौका देता है।

 

स्पष्ट है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में आरा सीट को लेकर पवन सिंह ने गहन रणनीति बनाई है। जातीय गणित, बीजेपी का संगठन, पुराने विधायक की उम्र और अपनी स्टारडम—इन सभी को मिलाकर उन्होंने बीजेपी को चुना है। यह कदम न केवल उनके राजनीतिक करियर को मजबूत करेगा बल्कि आरा की राजनीति में भी नई हलचल पैदा करेगा।

 

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