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जिस ग्लेशियर ने स्विट्ज़रलैंड के ब्लैटेन गांव को तबाह किया, अब वो पूरी तरह गायब

जिस ग्लेशियर ने स्विट्ज़रलैंड के ब्लैटेन गांव को तबाह किया, अब वो पूरी तरह गायब

स्विट्जरलैंड का ब्लैटेन गांव और गायब होता ग्लेशियर

स्विट्जरलैंड का ग्रीज ग्लेशियर इन दिनों तेजी से पिघल रहा है और इसकी तबाही का असर सीधा स्विट्जरलैंड ब्लैटेन गांव पर पड़ा है। मई 2025 में इस ग्लेशियर का एक बड़ा हिस्सा गिरने से पूरा गांव तबाह हो गया था और लोगों ने अपनी आंखों से जलवायु परिवर्तन की भयावह सच्चाई देखी। स्विस ग्लेशियर मॉनिटरिंग सर्विस के मुताबिक, पिछले 12 महीनों में ग्रीज ग्लेशियर की बर्फ 6 मीटर पतली हो गई है। साल 2000 से 2023 के बीच यह 800 मीटर छोटा हो चुका है और अगर 1880 से तुलना करें तो अब तक यह 3.2 किलोमीटर घट चुका है। औसतन केवल 57 मीटर बर्फ की मोटाई बची है, जो बेहद चिंताजनक है। विशेषज्ञों का कहना है कि ग्लेशियर के निचले हिस्से अगले पांच सालों में पूरी तरह गायब हो सकते हैं जबकि ऊंचाई वाले हिस्सों को खत्म होने में 40 से 50 साल लगेंगे। स्विट्जरलैंड ब्लैटेन गांव की यह तबाही हमें बताती है कि ग्लोबल वार्मिंग का असर कितना गहरा हो चुका है और आने वाले समय में और भी कई गांव और शहर संकट में पड़ सकते हैं।

 

ग्लोबल वार्मिंग का असर और ग्लेशियरों का खतरा

स्विट्जरलैंड में पिछले कुछ सालों से स्विट्जरलैंड ग्लेशियर पिघलना बेहद तेज़ी से हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि 2016 से 2022 के बीच लगभग 100 ग्लेशियर हमेशा के लिए खत्म हो चुके हैं। इसका असर नदियों, पानी की सप्लाई और पर्यावरण पर पड़ रहा है। पहाड़ी इलाकों में बाढ़ और भूस्खलन का खतरा भी बढ़ गया है। ब्लैटेन गांव जैसी घटनाएं साफ चेतावनी देती हैं कि ग्लोबल वार्मिंग का असर सिर्फ पर्यावरण तक सीमित नहीं, बल्कि इंसानी जिंदगी और बस्तियों पर भी भारी पड़ रहा है। वर्ल्ड मेटियोरोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन (WMO) की रिपोर्ट में कहा गया है कि 1990 के दशक से हर साल ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार बढ़ती जा रही है। आर्कटिक, अंटार्कटिका, हिमालय और आल्प्स जैसे इलाकों में बर्फ तेजी से घट रही है। स्विट्जरलैंड ग्लेशियर पिघलना इस वैश्विक संकट का जीता-जागता सबूत है। अगर दुनिया ने तुरंत कदम नहीं उठाए और ग्रीनहाउस गैसों को नियंत्रित नहीं किया, तो आने वाले सालों में और गांव, शहर और पारिस्थितिकी तबाह हो जाएंगे। यही वजह है कि विशेषज्ञ लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि ग्लेशियरों को बचाने के लिए तुरंत वैश्विक स्तर पर ठोस कार्रवाई जरूरी है।

 

 

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