
Makar Sankranti : जानिए क्यों पितामह भीष्म ने भी किया था सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार
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Neha
- January 14, 2025
Makar Sankranti : हिंदू धर्म में सूर्य की दो स्थितियां मानी गई हैं। उत्तरायण और दक्षिणायन। इन्हें कहीं-कहीं याम्यायन और सौम्यायन के नाम से भी जाना जाता है। आज मकर संक्रांति (Makar Sankranti Festival) का पर्व है। जिसे देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम से हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। वैसे सनातन धर्म में सूर्य के उत्तरायण (Uttarayan) होने का विशेष महत्व माना गया है। हिंदी पंचांग के अनुसार 14 जनवरी से लेकर 20 जून तक सूर्य उत्तरायण रहते हैं। इस दौरान सूर्य कर्क से मकर राशि (Makar Rashi) में प्रवेश करते हैं। इसी राशि परिवर्तिन को संक्रांति कहा जाता है और क्योंकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, ऐसे में इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।
20 जून तक उत्तरायण में रहेगा सूर्य
सूर्य 20 जून तक उत्तरायण में रहते हैं। यानि उत्तर भारत में सूर्य का प्रकाश तेज होता है। इसी की वजह से ऋतु परिवर्तन (Season Change) होता है और सर्दी के बसंत और फिर गर्मी की ऋतु आती है। इसके बाद 21 जून से लेकर 13 जनवरी तक सूर्यदेव दक्षिणायन रहते हैं। इस दौरान शरद, शीत, हेमंत, शिशिर जैसी ऋतुएं आती हैं। यही वजह है कि हिंदू पंचांग (Hindu panchang) के अनुसार भारत में 3 नहीं बल्कि 6 ऋतुएं होती हैं।
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भगवान कृष्ण ने भगवत गीता में किया है उत्तरायण की महत्ता का उल्लेख
धार्मिक ग्रंथों में सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन के महत्व को बताया गया है। कहा जाता है कि जब सूर्य दक्षिणायन होता है, तो पूजा, जप, तप का महत्व बढ़ जाता है। इस समय में पूजा और साधना करने से सभी विकार दूर हो जाते हैं। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) ने इसकी महत्ता का उल्लेख भगवत गीता (Bhagwat Geeta) में किया है।
भीष्म पितामह ने सूर्य उत्तरायण होने तक रोके रखे थे अपने प्राण
भगवान श्रीकृष्ण भागवत गीता में अर्जुन (Lord Krishna Addressed Arjun) से कहते हैं- हे अर्जुन! जब सूर्य उत्तरायण हो, दिन का समय हो और पक्ष शुक्ल हो। उस समय अगर कोई ऋषि, मुनि, साधु पुरुष अपने प्राण का त्याग करता है, तो वह इस मृत्युभवन पर लौटकर नहीं आता है। वहीं कृष्ण पक्ष की रात्रि में और सूर्य के दक्षिणायन में अपने प्राग त्यागता है, वह चंद्रलोक को जाता है और उसे फिर से मृत्युलोक में आना पड़ता है। महाभारत काल में अर्जुन ने भीष्म पितामह (Bheeshma Pitamah) को परास्त कर दिया था। इस युद्ध में पितामह भीष्म (Mahabharat) अर्जुन के तीरों के प्रहार से बुरी तरह घायल हो गए थे। लेकिन इच्छा मृत्यु के वरदान के चलते वे अभी भी जीवित थे और शर शैय्या पर लेटे हुए थे। उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने तक इंतजार किया और उसके बाद ही अपनी इच्छा से अपने प्राण त्यागे।

धार्मिक ग्रंथों में उत्तरायण को कहा जाता है देवताओं का दिन
यही नहीं, धार्मिक ग्रंथों (Dharmik Granth) में भी सूर्य के उत्तरायण को शुभ माना गया है। इसे देवताओं का दिन भी कहा जाता है। इस अवधि में धार्मिक कार्य करना काफी मंगलकारी माना गया है। इसीलिए इस दौरान खासकर मकर संक्रांति पर दान-पुण्य का महत्व काफी बढ़ जाता है। वहीं यही वजह है कि इस दिन को पूरे देश में अलग-अलग नामों के रूप में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस दिन को मकर संक्रांति, पोंगल, माघ बिहू, उत्तरायण, ओणम जैसे कई नामों से पुकारा जाता है। लेकिन कुल मिलाकर इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य ऋतुओं में होने वाले परिवर्तन का उल्लास मनाना और देवताओं के प्रति आभार जताना है।
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सूर्य पिंड से होता है प्राणशक्ति का संबंध
वहीं मृत्यु के संदर्भ में अंड और पिंड का सिद्धांत यह कहता है कि मृत्यु के समय यदि प्राणशक्ति का प्राबल्य हो, तो वह जीवन मुक्त होता है, क्योंकि प्राणशक्ति का संबंध सूर्य पिंड से होता है। उत्तरायण में सूर्य के आकर्षण के कारण जीव ब्रह्मांड की परिधि से पार निकल जाता है और दक्षिणायन में चन्द्रशक्ति का प्राबल्य होने के कारण वह ब्रह्माण्ड की परिधि से बाहर पार नहीं जाता है, क्योंकि चन्द्रपिंड भू-पिंड के अत्यंत निकट होता है।
सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन से ही बदलती हैं ऋतुएं
सूर्य का उत्तर और दक्षिण दिशा की ओर बढ़ना ही उत्तरायण और दक्षिणायन कहलाता है। इसी वजह से जब सूर्य भारत में उत्तर की तरफ बढ़ता है, तो यहां सर्दी खत्म होती है और गर्मी बढ़ती है। साथ ही दिन भी लंबे हो जाते हैं। इसी तरह सर्दी में क्योंकि सूर्य भी दक्षिण दिशा की ओर बढ़ने लगता है, तब दिन छोटे होने लगते हैं, यानि सूर्य का प्रकाश कम समय के लिए रहता है और अंधेरा जल्दी हो जाता है। इसी तरह सूर्य के दक्षिणायन होने के साथ ही सर्दी की शुरुआत होना भी शुरू मानी जाती है।
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