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Holi Poem : होली पर पढ़िए डॉ. बीना श्रोत्रिय की कविता ''मनुहार मिटी, चितवन चोरी, अब कैसे खेलेंगे होली?'

Holi Poem : होली पर पढ़िए डॉ. बीना श्रोत्रिय की कविता ''मनुहार मिटी, चितवन चोरी, अब कैसे खेलेंगे होली?'

Holi Poem : होली (Holi 2025) का मौका है और मन में तरह-तरह की भावनाएं और यादें हिलोरें ले रही हैं। ऐसे में कई लोग ऐसे भी हैं जो या तो अपने कामकाज की व्यस्तता की वजह से या फिर पारिवारिक संबंधों में आई कड़वाहट की वजह से अपनों से ही दूर हो गए हैं। ऐसे लोगों को अपनों को त्यौहार न मना पाने की पीड़ा सबसे ज्यादा होती है और होली (Holi Memories) से जुड़ी बचपन और यौवनकाल की यादों को याद करके अंतःमन करुण स्वर में अपनी वेदना को बयां करता है। इन्हीं भावनाओं को कविता (Holi Poem) के रूप में जाहिर किया है वरिष्ठ कवियित्री डॉ. बीना श्रोत्रिय ने। आप भी पढ़िए होली पर विशेष ये कविता (Holi Poem) डॉ. बीना श्रोत्रिय की कलम से, जिसका शीर्षक है (Holi Poem) 'मनुहार मिटी, चितवन चोरी, अब कैसे खेलेंगे होली?'...

 

मनुहार मिटी, चितवन चोरी
अब कैसे खेलेंगे होली?

 

संबंधों की खींचतान में
जब रंग नेह का फीका है,
जब अपनों की राह
ताक रही होली की गुझिया
फिर किससे खेलेंगे होली?

 

मनुहार मिटी, चितवन चोरी
अब कैसे खेलेंगे होली?

 

लाल-गुलाल मलिन हुआ
भागती-दौड़ती जिंदगी में
परिवार अपनों से दूर हुआ
संबंधों की खींचातानी में
अब किससे खेलेंगे होली?

 

मनुहार मिटी, चितवन चोरी
अब कैसे खेलेंगे होली?

 

 

डॉ. बीना श्रोत्रिय की लेखनी से साभार...

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