
Holi Festival 2025 : भारतीयों के लिए क्यों इतना खास है होली का त्यौहार, यूपी में दिखाई देते हैं होली के अनदेखे रंग
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Neha
- March 4, 2025
Holi Festival 2025 : फाल्गुन के महीने की शुरुआत हो गई है और इस महीने में रंगों का त्योहार होली पूरे भारत वर्ष में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यूं तो भारत में पूरे साल ही त्यौहारों की छटा देखने को मिलती है, लेकिन होली की बात ही और है। होली के रंग प्रेम का प्रतीक हैं। इस दिन पूरा देश अबीर-गुलाल से सराबोर दिखाई देता है। सिर्फ भारतवर्ष में ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई हिस्सों से सैलानी आते हैं। होली का पावन त्यौहार यूं तो पूरे भारत में मनाया जाता है, पर क्या आप जानते हैं कि होली का त्यौहार प्रेम का प्रतीक भी कहा जाता है। ये त्यौहार राधा और कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है। उत्तर प्रदेश के वृन्दावन और मथुरा नगरी में होली का त्यौहार कई दिनों तक मनाया जाता है।
क्या है होली मनाने के पीछे जुड़ी पौराणिक मान्यता ?
होली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है, ये तो सभी को पता है, लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी हैं जिन्हें इस त्यौहार की महत्ता की जानकारी नहीं है। तो आज हम जानते हैं कि रंगों के इस पावन पर्व की शुरुआत कैसे हुई ? बहुत सी पौराणिक कथाओं में ऐसा वर्णन मिलता है कि वासुदेव भगवान कृष्ण ने राधा रानी के साथ फागोत्सव की शुरुआत की थी। ऐसा कहते हैं कि एक बार राधा रानी जब भगवान कृष्ण से नाराज हो गई थीं, तब वासुदेव ने उन्हें मनाने के लिए राधा रानी के साथ फूलों की होली खेली थी। यही वजह है कि होली का ये त्यौहार बरसाना, नन्दगांव, वृन्दावन में 40 दिन तक मनाया जाता है।
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बांके बिहारी मंदिर में सिर्फ गुलाल से खेली जाती है होली
वृन्दावन में होली का त्यौहार बसंत पंचमी के दिन से ही शुरू हो जाता है, जिसमें भिन्न-भिन्न प्रकार से होली खेली जाती है। इसमें फूलों की होली, लठमार होली और लड्डुओं की होली भी खेली जाती है। सबसे पहले वृन्दावन में बांके बिहारी को गुलाल का टीका लगाया जाता है, इसके बाद होली का फागोत्सव शुरू हो जाता है। बांके बिहारी मंदिर में इस दौरान बेहद अद्भुत नजारा होता है। लाखों श्रद्धालु बांके बिहारी के साथ फागोत्सव का आनंद लेते हैं। वहीं बांके बिहारी क्योंकि सिर्फ गुलाल से होली खेलते हैं, इसलिए फागोत्सव के दिनों में पूरे मंदिर परिसर में सिर्फ गुलाल उड़ता है और इसके साथ श्रद्धालु एक-दूसरे को भी सिर्फ गुलाल लगाते हैं। वहीं वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में ही नहीं, बरसाना के राधा रानी के मंदिर में भी फागोत्सव की धूम रहती है।

क्या है होली के त्यौहार से जुड़ी पौराणिक मान्यता ?
होली के त्यौहार से जुड़ी एक पौराणिक मान्यता है जो भक्त प्रह्लाद और असुर राजा हिरण्यकश्यप से जुड़ी है। कहा जाता है कि प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था, लेकिन हिरण्यकश्यप खुद को ईश्वर कहता था और प्रह्लाद से भी वो यही कहता था कि वो भी उसे ईश्वर मानकर उनकी पूजा करे। लेकिन प्रह्लाद तो सिर्फ भगवान विष्णु का ही स्मरण करता था और हिरण्याक्ष भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। इसलिए हिरण्कश्यय ने प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका को बुलाया। होलिका को वरदान था कि वो कभी अग्नि से नहीं जलेगी, इसलिए वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ गई। लेकिन देवयोग से होलिका जल गई और भक्त प्रह्लाद बच गया। तभी से होलिका दहन का प्रचलन शुरू हुआ और इसके अगले दिन रंगों का त्यौहार होली मनाया जाता है।
आपको कैसी होली पसंद है ?
होली का त्यौहार सिर्फ रंगों का त्यौहार नहीं है, ये एक ऐसा त्यौहार है, जो उत्तर प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीके से खेला जाता है। अगर आप ये सोच रहे हैं कि होली सिर्फ अबीर और गुलाल से खेली जाती है, तो आज हम आपको उत्तर प्रदेश में खेली जाने वाली होली के अलग-अलग प्रकारों के बारे में जानकारी देंगे।
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हुरंगा होली
अब आप कहेंगे कि हुरंगा होली क्या है ? ये तो आपको पता ही है कि भगवान कृष्ण को होली का त्यौहार कितना प्रिय है। हमारे कृष्णा की जितनी अठखेलियां हैं, उतने ही उनके होली खेलने के तरीके हैं। ऐसे में हुरंगा की परम्परा के अनुसार भाभियां अपने देवर के साथ होली खेलती हैं। इसमें गीले सूती कपड़े से भाभियां अपने देवर को मारती हैं।
छड़ीमार होली
छड़ीमार होली गोकुल में मनाई जाती है, जैसे बरसाना में लट्ठमार होली मनाते हैं, वैसे ही गोकुल में छड़ीमार होली का आयोजन होता है। यहां लट्ठ की जगह आप महिलाओं के हाथ में छड़ी देखेंगे। मान्यता है कि जब भगवान कृष्ण गोपियों को परेशान करते थे, तब गोपियां उन्हें छड़ी से मारती थीं।
लट्ठमार होली
बरसाने में राधा रानी के मन्दिर में लट्ठमार होली खेली जाती है। होली मनाने का ये अनूठा तरीका आपको सिर्फ उत्तरप्रदेश के बरसाना में ही देखने को मिलेगा। यहां महिलाएं पुरुषों पर लट्ठ बरसाती नज़र आती हैं और पुरुष ढाल से खुद की रक्षा करते नज़र आते हैं।

फूलों वाली होली
वृन्दावन में गुलाल-अबीर के साथ ही मथुरा और वृन्दावन में फूलों की होली भी खेली जाती है।
कब से कब तक मनाया जाएगा फागोत्सव का त्यौहार
- 12 फरवरी 2025 को माघ पूर्णिमा के दिन होली का डंडा गाड़ने के साथ ही होली का फागोत्सव शुरू हो गया है।
- 07 मार्च 2025 को नन्दगांव में फाग आमंत्रण उत्सव होगा। फाग आमंत्रण का अर्थ है कि होली खेलने के लिए सखियों को न्योता देना। इसी दिन से बरसाना में भी राधा रानी के मंदिर में लड्डू मार होली खेली जाएगी।
- 08 मार्च 2025 को लट्ठमार होली का आयोजन होगा
- इसके बाद 10 मार्च 2025 को एकादशी के दिन बांके बिहारी मंदिर और श्री कृष्णा जन्मभूमि में रंगभरी होली आयोजन होगा
- 11 मार्च 2025 को रमणरेती में होली का उत्सव मनाया जाएगा
- इसके बाद 13 मार्च 2025 को होलिका दहन
- 14 मार्च को पूरे ब्रज में होली का पर्व मनाया जाएगा
- 22 मार्च को वृन्दावन में रंगनाथ मंदिर में होली का उत्सव मनाया जाएगा
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