
कौन थे RSS के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार? कैसे हुई RSS की स्थापना?
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Manjushree
- October 1, 2025
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) 2 अक्टूबर को विजयदशमी के दिन अपना शताब्दी वर्ष मनाने जा रहा है। 2 अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के100 साल पूरे हो जाएंगे। विजयादशमी के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने 27 सितंबर, साल 1925 में 17 लोगों के साथ मिलकर आरएसएस नामक संगठन की स्थापना की थी। दिल्ली में आयोजित RSS का शताब्ती समारोह में पीएम मोदी ने स्मारक टिकट और सिक्का जारी किया।
कौन थे केशव बलिराम हेडगेवार ?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल, 1889 को नागपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। केशव बलिराम हेडगेवार की पुरोहिती से परिवार की आमदनी सीमित थी और आर्थिक तंगी थी, लेकिन इसके बावजूद बलिराम पंत और उनकी पत्नी रेवतीबाई के 6 बच्चे थे। बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव के रहे डॉ. हेडगेवार अंग्रेजी हुकूमत से नफरत करते थे। उन्होंने 10 साल की उम्र में ही रानी विक्टोरिया के राज्यारोहण की 50वीं जयंती पर बांटी गई मिठाई को फेंक दिया था और विदेशी राज्य की खुशियां मनाने से इनकार कर दिया था। ऐसा ही एक किस्सा 16 वर्ष की उम्र से भी जुड़ा हुआ है। दरअसल, क्लास में अंग्रेजी निरीक्षक निगरानी के लिए स्कूल पहुंचा उस वक्त उन्होंने सहयोगियों के साथ मिलकर वंदे मातरम का नारा लगाया था। उनका यह हौसला देखकर अंग्रेज पिनक गया। जिसकी वजह से उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था। डॉ. हेडगेवार ने पूना के नेशनल स्कूल से मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी की थी।
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने 1910 में मेडिकल की पढ़ाई के लिए कोलकाता का रुख किया था। उस वक्त वो क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए थे और वहां उन्होंने उनसे काफी कुछ सीखा। मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉक्टर साहब 1915 में नागपुर लौट गए और ग्रैंड ओल्ड पार्टी 'कांग्रेस' में सक्रिय भूमिका निभाने लगे।1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में डॉ. हेडगेवार ने पूर्ण स्वतंत्रता को लक्ष्य बनाने वाला प्रस्ताव रखा। हालांकि, वह प्रस्ताव पारित नहीं हुआ। 1921 में डॉक्टर साहब ने असहयोग आंदोलन में भागीदारी निभाई थी और एक साल जेल की सजा काटी थी, लेकिन बाद में कांग्रेस और महात्मा गांधी से उनका मोहभंग हो गया था। डॉक्टर साहब के जीवन में बाल गंगाधर तिलक और विनायक दामोदर सावरकर उर्फ वीर सावरकर का गहरा प्रभाव रहा है। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का 21 जून, 1940 को नागपुर में निधन हुआ था।
आरएसएस की शुरुआत कब और कैसे हुई?
आरएसएस की स्थापना से जुड़ी पहली बैठक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के घर पर 27 सितंबर, 1925 को विजयादशमी के दिन हुई थी। तभी से आरएसएस विजयादशमी को एक उत्सव के रूप में मनाता है। संघ के संस्थापक सदस्यों में विश्वनाथ केलकर, भाऊजी कावरे, अण्णा साहने, बालाजी हुद्दार, बापूराव भेदी शामिल थे। इनमें से कुछ लोगों ने आगे सालों तक संघ का कार्य किया, जबकि कुछ लोगों की राह अलग भी हुई। हालांकि, संघ अपना स्थापना दिवस नहीं मनाता है, बल्कि इसे विजयादशमी उत्सव के रूप में मनाया जाता है। आरएसएस की स्थापना के समय भारत आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था और हेडगेवार जी का मानना था कि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता काफी नहीं है, बल्कि समाज को संगठित करना और राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण भी उतना ही ज़रूरी है। इसी सोच के साथ उन्होंने संघ की नींव रखी। शुरुआत में इसमें कुछ ही स्वयंसेवक जुड़े, लेकिन धीरे-धीरे यह संगठन पूरे भारत में फैल गया।
डॉ. हेडगेवार कांग्रेस से भी जुड़े रहे, और तब मध्य प्रांत के अध्यक्ष हुआ करते थे। लेकिन उन्हें लगा कि सिर्फ़ राजनीतिक आंदोलन से लक्ष्य पूरा नहीं होगा। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार गांधी के विचार से असहमत थे। उनका मानना था कि धर्म को राष्ट्र से ऊपर रखना खतरनाक है. बावजूद इसके, गांधी के आग्रह पर वे आंदोलन से जुड़े और उग्र भाषणों के कारण जेल भी गए। फिर उन्होंने कांग्रेस छोड़कर आरएसएस का गठन किया। उनका उद्देश्य था कि स्वतंत्र भारत में हिंदू समाज की जागरूकता के लिए एक संगठन का निर्माण हो, और राष्ट्र को मज़बूत बनाने के लिए “संगठन ही शक्ति है” के विचार को लागू करना।
हेडगेवार के हिंदुत्व विचारधारा
हेडगेवार ने स्पष्ट किया कि "हिंदू" शब्द का मतलब किसी विशेष धर्म के अनुयायी से नहीं, बल्कि इस भूमि की संस्कृति से जुड़ा हर व्यक्ति है। राष्ट्र सेवा सर्वोपरि है। हिंदू समाज को संगठित और जागृत करना ही राष्ट्र जागृति हैं और यह राष्ट्रहित में है। अच्छे संस्कारों के बिना देशभक्ति की भावना पैदा नहीं होती। संघ का कार्य व्यक्तियों को जोड़ने का है, तोड़ने का नहीं। भावनाओं में बहकर या आवेश में आकर कई लोग सामाजिक हितों के लिए खड़े हो जाते हैं, लेकिन मुश्किल वक्त में पीछे हट जाते हैं। ऐसे लोगों के साथ समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता। उनका विश्वास था कि जब समाज संगठित होगा, तभी भारत स्वतंत्र और शक्तिशाली बन सकेगा।
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