Madhya Pradesh : मां पीतांबरा के दरबार में अनसुनी नहीं जाती कोई पुकार, दिन में 3 बार बदलता है मां का स्वरूप
- Anjali
- October 20, 2024
Madhya Pradesh : देश दुनिया में यूं तो कई देवियों व देवताओं के मंदिर हैं। जिनमें से कुछ के चमत्कार तो आज तक वैज्ञानिक तक नहीं सुलझा पाए हैं। इन्हीं सब मंदिरों के बीच एक चमत्कारिक देवी मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया में भी मौजूद है। जिन्हें राजसत्ता की देवी भी माना जाता है। मध्य प्रदेश के झांसी के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा के दरबार में लगाई गई गुहार कभी अनसुनी नहीं होती। कहा जाता है कि मां पीतांबरा सभी पर एक समान कृपा बरसाती हैं। राजा हो या रंक मां सभी की पुकार सुनती हैं।
पीतांबरा पीठ की स्थापना 1935 में परम तेजस्वी स्वामी जी ने की थी। स्वामी जी ने इस सिद्धपीठ को भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक केंद्र के रूप में स्थापित किया, जहां लोग देवी पीतांबरा की आराधना कर सकते हैं। हालांकि मां पीतांबरा का जन्म स्थान, नाम और कुल आज तक रहस्य बना हुआ है। इसके बारे में अबतक किसी ने भी सही जानकारी नहीं दी है। मां पीतांबरा का यह चमत्कारी धाम स्वामी जी के जप और तप के कारण एक सिद्ध पीठ के रूप में प्रतिष्ठित है।मां पीतांबरा देवी चर्तुभुज रूप में विराजमान हैं। उनका यह स्वरूप शक्ति और विजय का प्रतीक है।
यहां भक्त मां का दर्शन एक छोटी सी खिड़की से करते हैं। पीतांबरा पीठ में दर्शनार्थियों को मां की प्रतिमा को स्पर्श करने की मनाही होती है। यह नियम सुरक्षा और श्रद्धा के लिए बनाया गया है। कहा जाता है कि मां बगुलामुखी ही पीतांबरा देवी हैं इसलिए उन्हें पीली वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं। बताया जाता है कि यहां पर भक्त विशेष अनुष्ठान करते हैं और मां को पीले कपड़े पहनाते हैं, उसके बाद ही मुराद मांगते हैं। माना जाता है कि मां किसी को निराश नहीं करती हैं।
चमत्कारी है मां का धाम
मां पीतांबरा देवी तीन प्रहर में अलग-अलग स्वरूप धारण करती हैं। यदि किसी भक्त ने सुबह मां के किसी स्वरूप के दर्शन किए हैं तो दूसरे प्रहर में उसे दूसरे रूप के दर्शन का सौभाग्य मिलता है। तीसरे प्रहर में भी मां का स्वरूप बदला हुआ दिखता है। मां के बदलते स्वरूप का राज आज तक किसी को नहीं पता चल सका। इसे चमत्कार ही माना जाता है।
भारत – चीन युद्ध के समय हुआ था यज्ञ
साल 1962 में जब भारत और चीन का युद्ध शुरू हुआ था। तो मां पीतांबरा सिद्धपीठ में पुजारी ने फौजी अधिकारियों के अनुरोध करने पर देश की रक्षा के लिए मां बगुलामुखी की प्रेरणा से 51 कुंडीय महायज्ञ कराया था। इसका परिणाम यह रहा कि युद्ध के 11वें ही दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं।
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