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World Polio Day : इसलिए जरूरी है हर बच्चे के लिए 'दो बूंद जिंदगी की', जानिए कबसे हुई पोलियो की खुराक पिलाने की शुरुआत ?

World Polio Day : इसलिए जरूरी है हर बच्चे के लिए 'दो बूंद जिंदगी की', जानिए कबसे हुई पोलियो की खुराक पिलाने की शुरुआत ?

World Polio Day : हम सभी कभी न कभी बीमार जरूर हुए होंगे। ऐसे में जब हम हमारा इलाज करवाने के लिए डॉक्टर के पास जाते हैं, तो वे हमें उस बीमारी को ठीक करने की दवाई के साथ कुछ ऐसी दवाइयां भी देते हैं, जो हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती हैं। लेकिन पोलियो की खुराक एक ऐसी दवाई है जो बच्चे के जन्म के साथ ही उसे पिलाई जाती है और 5 साल की उम्र तक नियमित अंतराल पर पिलाई जाती है। इस खुराक का स्वाद भले ही थोड़ा अजीब सा होता हो, लेकिन इस खुराक की बस 2 बूंद किसी भी बच्चे की जिंदगी बना सकती हैं।

 

पोलियो वायरस से बचाव में सहायक है 'दो बूंद जिंदगी की'

दरअसल पोलियो की खुराक (Polio Oral Vaccine) पिलाने का सीधा मकसद बच्चों को उस वायरस से बचाना होता है, जो पोलियो बीमारी (Polio Disease) के लिए जिम्मेदार है। यानि अगर आप अपने बच्चे को पोलियो की खुराक नहीं पिलाते हैं, तो आपका बच्चा पोलियो का शिकार हो सकता है और इससे उसका भविष्य भी प्रभावित हो सकता है। भारत सहित दुनिया के कई देश इस बीमारी से पूरी तरह से मुक्त हो चुके हैं। इसकी घोषणा विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) की ओर से की जा चुकी है। इसके बावजूद आज भी पूरी दुनिया में आज 24 अक्टूबर के दिन हर साल इस दिन को मनाया जाता है और इसकी अहमियत पर चर्चा की जाती है, ताकि कहीं ये खतरनाक वायरस हमारे इस सुरक्षा चक्र में सेंध न लगा दे।

 

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पोलियो के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए होता है आयोजन

आज के दिन पोलियो दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों को पोलियो के बारे में जागरूक करना (Polio Awareness) है। इसकी मदद से जहां पोलियो बीमारी को होने से रोका जा सकता है, वहीं अगर किसी बच्चे को ये बीमारी हो जाती है, तो उसके बाद आगे उसे क्या-क्या परेशानी हो सकती हैं, इस बारे में आम लोगों को जागरूक किया जाता है। इसके साथ ही इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए क्या कुछ उपाय किए जा सकते हैं, इस दिशा में भी काम किया जाता है।

 

1985 से हुई पोलियो दिवस मनाने की शुरुआत

साल 1985 में पहली बार 24 अक्टूबर के दिन को विश्व पोलियो दिवस (World Polio Day) के रूप में मनाया गया। तबसे हर साल इस दिन को मनाया जाता है। यह दिन रोटरी इंटरनेशनल की ओर से बनाई पहली पोलियो वैक्सीन (First Polio Vaccine) की टीम के प्रमुख मेडिकल रिसर्चर जोनास साल्क के प्रयासों के सम्मान में मनाया जाता है।

 

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1955 में पोलियो की आईवी वैक्सीन को मिला लाइसेंस

1949 में एक बड़ी सफलता तब मिली जब जॉन एंडर्स, थॉमस वेलर और फ्रेडरिक रॉबिंस ने बोस्टन चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल में मानव ऊतक में पोलियो वायरस को सफलतापूर्वक विकसित किया। उनके इस अग्रणी कार्य को 1954 के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके कुछ समय बाद ही, 1950 के दशक की शुरुआत में, अमेरिकी चिकित्सक जोनास साल्क ने पहला सफल टीका बनाया। साल्क ने 1953 में अपने और अपने परिवार पर अपने प्रयोगात्मक मारक-वायरस टीके का परीक्षण किया, और एक साल बाद कनाडा, फ़िनलैंड और अमेरिका में 1.6 मिलियन बच्चों पर इसका परीक्षण किया। 12 अप्रैल 1955 को परिणाम घोषित किए गए और उसी दिन साल्क के निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन (आईपीवी) को लाइसेंस दिया गया।

 

ओरल वैक्सीन के इस्तेमाल से हंगरी 1959 में बना दुनिया का पहला पोलियो मुक्त देश

वहीं इसके बाद पोलियो वैक्सीन का दूसरा प्रकार, ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) चिकित्सक और सूक्ष्म जीवविज्ञानी अल्बर्ट सबिन द्वारा विकसित किया गया था। पोलियो की ओरल वैक्सीन इस्तेमाल में ज्यादा आसान थी। इसलिए हंगरी ने दिसंबर 1959 में और चेकोस्लोवाकिया ने 1960 की शुरुआत में इसका इस्तेमाल शुरू किया, जिससे पोलियो को खत्म करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया। 1988 में विश्व स्वास्थ्य सभा ने पोलियो उन्मूलन के लिए एक प्रस्ताव पारित किया - ताकि इसे स्थायी रूप से शून्य तक लाया जा सके और इसके फिर से शुरू होने का कोई खतरा न हो। इसके साथ ही इसी साल वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल (GPEI) का भी शुभारंभ किया गया।

 

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सामान्य बुखार जैसे होते हैं लक्षण, पहचान करना होता है मुश्किल

वहीं पोलियो की बात करें, तो यह एक ऐसी बीमारी है, जो पोलियो वायरस के कारण होती है और इससे बच्चों को पैरालिसिस यानि लकवा लग जाना जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। इसमें उनके शरीर के कुछ हिस्से ठीक से काम नहीं कर पाते हैं और कई मामलों में वे हिल भी नहीं पाते हैं। इस बीमारी के बहुत आम लक्षण होते हैं, जो एक आम बुखार में देखे जाते हैं। यही वजह है कि कई बार बच्चे अगर इस संक्रमण की चपेट में आ भी जाते हैं, तो आसानी से इसका पता नहीं चल पाता है। इसके लक्षणों में बुखार आना, सिर दर्द होना, उल्टी आना, गर्दन-कमर में अकड़न और दर्द महसूस होना आदि शामिल होते हैं।

 

2014 में पोलियो मुक्त हो चुका भारत, जंग अब भी जारी

अगर भारत में पोलियो की बात करें तो पिछले 20 साल में भारत ने देश से पोलियो को हटाने में काफी महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जो प्रभावशाली भी रहे हैं। इन्हीं प्रयासों की बदौलत साल 2014 में WHO ने भारत को पोलियो मुक्त राष्ट्र घोषित कर दिया था। हालांकि भारत में अभी भी इससे जंग लगातार जारी है क्योंकि कुछ समय पहले ही पड़ोसी देश पाकिस्तान में पोलियो के कुछ मामले रिपोर्ट किए गए हैं। ऐसे में भारत में इस संक्रमण के वापस लौटने की पूरी आशंका बनी हुई है।

 

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