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विदेशी फंडिंग विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने ट्रंप प्रशासन को झटका दिया

विदेशी फंडिंग विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने ट्रंप प्रशासन को झटका दिया

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश जारी कर करीब 2 अरब डॉलर की विदेशी मदद (USAID) को रोक दिया था। यह धनराशि गैर-लाभकारी संगठनों और ठेकेदारों को दी जानी थी, जिन्होंने पहले से सेवाएं प्रदान कर रखी थीं। ट्रंप प्रशासन ने यह दलील दी थी कि यह सहायता उसकी विदेश नीति के अनुकूल नहीं थी, इसलिए इसे रोका गया।

 

किसे हुआ नुकसान?

 

इस फंडिंग पर रोक लगने से कई संगठनों को भारी नुकसान हुआ। कुछ संगठनों ने अपनी सेवाएं बंद कर दीं, तो कुछ को अपने कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ी। एक संगठन ने बताया कि उसे 110 कर्मचारियों को निकालना पड़ा क्योंकि उनके पास वेतन देने के लिए पैसे नहीं थे।

 

 


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कैसे पहुंचा मामला कोर्ट में?

 

इस फैसले को चुनौती देने के लिए कई संगठनों, जैसे AIDS Vaccine Advocacy Coalition और Journalism Development Network, ने मुकदमा दायर किया। जिला अदालत के जज आमिर अली ने ट्रंप प्रशासन के इस फैसले को गलत ठहराते हुए धन जारी करने का आदेश दिया। लेकिन ट्रंप प्रशासन ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

 

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

 

सुप्रीम कोर्ट ने 5-4 के फैसले में जज आमिर अली के आदेश को सही ठहराया और सरकार को 2 अरब डॉलर की मदद तुरंत जारी करने को कहा। मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स और जज एमी कोनी बैरेट ने तीन अन्य उदारवादी जजों के साथ बहुमत में फैसला सुनाया। वहीं, चार जजों—सैमुअल एलिटो, क्लेरेंस थॉमस, नील गोरसच और ब्रेट कवानाह—ने इस फैसले का विरोध किया।

 

इस फैसले का क्या मतलब है?

 

यह फैसला दर्शाता है कि न्यायपालिका कार्यपालिका (सरकार) के फैसलों पर नजर रख सकती है और जरूरत पड़ने पर उन्हें रोक भी सकती है। यह मामला खासतौर पर सरकार की विदेशों में सहायता राशि देने की नीति और संविधान में शक्तियों के संतुलन से जुड़ा है। अब अमेरिकी सरकार को यह फंड जारी करना ही होगा, जिससे कई संगठनों को राहत मिलेगी।

 

वैश्विक महत्व

 

यह फैसला केवल अमेरिका के लिए नहीं, बल्कि दुनिया भर के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिखाता है कि लोकतंत्र में अदालतें सरकार के फैसलों की समीक्षा कर सकती हैं और जरूरत पड़ने पर नागरिकों के हक में फैसला सुना सकती हैं।

 

 

 

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