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सुप्रीम कोर्ट ने नहीं लगाई रोक, बिहार में जारी रहेगा वोटर वेरिफिकेशन

सुप्रीम कोर्ट ने नहीं लगाई रोक, बिहार में जारी रहेगा वोटर वेरिफिकेशन

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के विरोध में गुरुवार 10 जुलाई को Supreme Court में सुनवाई हुई। अदालत ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं और चुनाव आयोग (EC) का पक्ष सुनने के बाद SIR पर रोक लगाने से मना कर दिया।

 

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने Election Commision से कहा था कि दस्तावेजों की सूची अंतिम नहीं मानी जा सकती। अदालत ने सुझाव दिया कि बिहार मतदाता सत्यापन 2025 के लिए प्रमाण के रूप में आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को भी शामिल किया जाए, हालांकि आयोग ने इस पर आपत्ति जताई। सुप्रीम कोर्ट ने EC को नोटिस जारी करते हुए सुनवाई की अगली तारीख 28 जुलाई तय की है।

 

Supreme Court ने चुनाव आयोग से मतदाता सत्यापन 2025 के तहत तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर जवाब मांगा है। अदालत ने आयोग के वकील से कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि यह मामला लोकतंत्र की बुनियाद और नागरिकों के मतदान अधिकार से जुड़ा हुआ है। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता केवल चुनाव आयोग की मतदान प्रक्रिया पर ही सवाल नहीं उठा रहे, बल्कि उसकी समय-सीमा और पारदर्शिता को भी चुनौती दे रहे हैं। ऐसे में चुनाव आयोग को इन तीनों मुद्दों पर स्पष्ट जवाब देना होगा।

 

जस्टिस सुधांशु धुलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि मतदाता सूची को शुद्ध करना चुनाव आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है। आयोग यह सुनिश्चित करने के लिए अधिकृत है कि कोई अयोग्य व्यक्ति मतदाता न बने। साथ ही, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता, जबकि मतदाता बनने के लिए नागरिकता का प्रमाण आवश्यक हो सकता है। जस्टिस धुलिया ने कहा, 2003 की लिस्ट है तो यह दलील दी जा सकती है कि अब डोर टू डोर की जरुरत नहीं है, लेकिन सवाल यह है कि वोट डालते आ रहे लोगों से दोबारा नागरिकता क्यों मांगी जा रही है?

 

Voter Verification के लिए आवश्यक दस्तावेजों में आधार कार्ड को शामिल न करने के फैसले पर चुनाव आयोग ने तर्क दिया कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि आयोग मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण के दौरान नागरिकता का मुद्दा क्यों उठा रहा है, जबकि यह गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है। न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि यदि आयोग का उद्देश्य नागरिकता की जांच करना था, तो यह प्रक्रिया पहले शुरू की जानी चाहिए थी। अब इसमें काफी देर हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि समस्या पुनरीक्षण प्रक्रिया से नहीं, बल्कि इसके लिए चुने गए समय से जुड़ी है।


चुनाव आयोग ने कहा कि Voter Verification के लिए नागरिकता और पात्र मतदाता के प्रमाण और सत्यापन के लिए जिन 11 दस्तावेजों को मान्यता दी गई है, उनके पीछे एक स्पष्ट उद्देश्य है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार कार्ड को आधार अधिनियम (Aadhaar Act) के तहत लाया गया है और यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है। आयोग के अनुसार अब तक लगभग 60 प्रतिशत पात्र नागरिकों ने मतदाता सत्यापन के लिए फॉर्म भर दिए हैं, जिनमें से लगभग आधे फॉर्म अपलोड भी किए जा चुके हैं। कुल मिलाकर करीब 5 करोड़ लोगों ने यह फॉर्म भर दिया है।

 

दूसरी ओर, वकील अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दायर कर कहा है कि केवल भारतीय नागरिकों को ही वोट देने का हक मिलना चाहिए। याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि बूथ लेवल ऑफिसर BLO को ये पावर दिया गया है कि वो तय करें कि कोई भारत का नागरिक है या नहीं। केंद्र सरकार तय करेगी कि कोई व्यक्ति भारत का नागरिक है या नहीं। चुनाव आयोग ये तय नहीं कर सकता।

 

बता दें कि कांग्रेस, RJD समेत इंडिया गठबंधन की 9 पार्टियों ने वोटर लिस्ट सत्यापन की प्रक्रिया पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है। राजद सांसद मनोज झा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की अलग-अलग याचिकाओं के अलावा, कांग्रेस के के सी वेणुगोपाल, शरद पवार एनसीपी गुट से सुप्रिया सुले, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से डी राजा, समाजवादी पार्टी से हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) से, झारखंड मुक्ति मोर्चा से, सीपीआई (एमएल) के नेता ने संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

 

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