यूपी के धर्मांतरण कानून पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: कहा– भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है
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Manjushree
- October 24, 2025
यूपी में लागू धर्मांतरण विरोधी कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर सवाल उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपनी टिप्पणी में कहा गया कि धर्म परिवर्तन कानून के माध्यम से अपना धर्म बदलने के इच्छुक लोगों की राह को कठिन बनाया गया है।
यूपी धर्मांतरण कानून को लेकर जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने किसी के धर्म परिवर्तन करने की प्रक्रिया में सरकारी अधिकारियों की संलिप्तता और हस्तक्षेप को लेकर भी चिंता जताई। सुप्रीम कोर्ट के बेंच ने कहा कि ऐसा लगता है कि धर्मांतरण कानून इसलिए बनाया गया है कि किसी के धर्म परिवर्तन करने की प्रक्रिया में सरकारी मशीनरी के दखल को बढ़ाया जा सके। हालांकि यूपी सरकार धर्मांतरण एक्ट को लेकर अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि यूपी के धर्मांतरण विरोधी कानून की वैधता पर फिलहाल अदालत विचार नहीं कर सकती।
बेंच ने यह भी याद दिलाया कि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है और कोई भी अपनी इच्छा के अनुसार धर्मांतरण कर सकता है। बेंच ने कहा, 'इस मामले में उत्तर प्रदेश धर्मांतरण अधिनियम के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता पर विचार करना हमारे दायरे में नहीं आता। फिर भी हम यह मानने से खुद को नहीं रोक सकते कि धर्मांतरण से पहले और बाद में घोषणा से संबंधित नियम जो बनाए गए हैं, वह किसी व्यक्ति की ओर से दूसरे धर्म को अपनाने की औपचारिकता कठिन करने वाले हैं।
सुप्रीम कोर्ट सुनवाई में धर्मांतरण के बाद घोषणा करने की अनिवार्यता पर भी सवाल उठाया। बेंच ने कहा कि कौन किस धर्म को स्वीकार कर रहा है, यह उसका निजी मामला है। इस संबंध में घोषणा करने की बाध्यता तो निजता के खिलाफ है। बेंच ने कहा, 'यह सोचने की बात है कि आखिर क्या जरूरत है कि कोई बताए कि उसने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया है और अब वह किस मजहब को मानता है। इस पर विचार करने की जरूरत है कि क्या यह नियम निजता के प्रावधान का उल्लंघन नहीं है।' संविधान और धर्मांतरण कानून के नियमों के माध्यम से धर्मांतरण की प्रक्रिया में अधिकारियों का दखल बढ़ा दिया गया है। यहां तक कि जिला मजिस्ट्रेट को कानूनी रूप से धर्मांतरण के प्रत्येक मामले में पुलिस जांच का निर्देश देने के लिए बाध्य किया गया है।
इसी क्रम में धर्म परिवर्तन कानून पर बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि धर्मांतरित लोगों का विवरण सार्वजनिक करने की आवश्यकता के लिए गोपनीयता के अधिकार के संदर्भ में गहन जांच की आवश्यकता हो सकती है। इसमें कहा गया है कि इसके अलावा, अलग धर्म अपनाने वाले प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तिगत विवरण को सार्वजनिक करने की वैधानिक आवश्यकता की गहन जांच की आवश्यकता हो सकती है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या ऐसी आवश्यकता संविधान में व्याप्त गोपनीयता व्यवस्था के साथ मेल खाती है।
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