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राहुल का एक्शन मोड: गुटबाजों की पहचान जरूरी

राहुल का एक्शन मोड: गुटबाजों की पहचान जरूरी

मध्य प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी का संकट गहराया

मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जमीनी हालत बेहद कमजोर होती जा रही है और इसकी सबसे बड़ी वजह गुटबाजी है। इसी गुटबाजी पर लगाम लगाने के लिए राहुल गांधी को खुद भोपाल आकर कड़े निर्देश देने पड़े। राहुल गांधी ने साफ कहा कि पार्टी में एकता होनी चाहिए, न कि खेमेबाजी। उन्होंने संगठन सृजन अभियान की शुरुआत के दौरान कहा कि सभी नेता मिलकर निर्णय लें, ऊपर से कोई फैसला नहीं थोपा जाएगा। साथ ही राहुल ने चेताया कि जो नेता भाजपा की मदद कर रहे हैं, उनकी पहचान कर उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाए। राहुल गांधी के इस बयान से यह साफ हो गया कि कांग्रेस को अंदरूनी गुटबाजी और स्लीपर सेल की बड़ी समस्या से जूझना पड़ रहा है। कांग्रेस के कुछ नेताओं ने खुद यह माना है कि पार्टी की अंदर की खबरें भाजपा तक पहुंचाई जा रही हैं, जिससे कांग्रेस को सीधा नुकसान हो रहा है। राहुल गांधी के इस दौरे का मकसद सिर्फ संगठन को मज़बूत करना नहीं था, बल्कि उन लोगों को भी चिन्हित करना था जो कांग्रेस में रहकर उसे खोखला कर रहे हैं। मध्य प्रदेश कांग्रेस की हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी, जबकि उसे 32.9% वोट जरूर मिले। लेकिन वोट मिलने के बावजूद हार दिखाती है कि संगठन पूरी तरह एकजुट नहीं है। मध्य प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी अब एक 'कैंसर' बन चुकी है, जिसे खत्म करना राहुल गांधी की प्राथमिकता बन गई है।

 

कमजोर नेतृत्व और बार-बार प्रभारी बदलने से संगठन हुआ ढीला

मध्य प्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व का भी संकट साफ नजर आता है। कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और अन्य वरिष्ठ नेताओं के बीच कभी एकरूपता नहीं दिखी। साल 2018 में कांग्रेस ने जब 15 साल बाद सत्ता में वापसी की थी, तब उम्मीद थी कि पार्टी खुद को मज़बूत करेगी। लेकिन 15 महीने की सरकार के बाद ही ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत और विधायकों के इस्तीफे से सरकार गिर गई। तब से लेकर अब तक कांग्रेस बार-बार संगठन प्रभारी बदलती रही है। सिर्फ 7 सालों में 6 प्रभारी बदले गए, जो ये दर्शाता है कि पार्टी की रणनीति में स्थिरता नहीं है। यही गुटबाजी है जो हर नए प्रभारी के काम में रोड़ा बनती है। कांग्रेस के भीतर ही वरिष्ठ नेता एक-दूसरे का समर्थन नहीं करते, जिससे संगठन में बिखराव होता जा रहा है। लोकसभा चुनाव के दौरान कई वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया। कमलनाथ अपने बेटे नकुल नाथ की सीट छिंदवाड़ा में भी उतने सक्रिय नहीं दिखे, जबकि वह कांग्रेस की इकलौती बची हुई सीट थी। अब वह भी हाथ से निकल गई। मध्य प्रदेश कांग्रेस की गुटबाजी, कमजोर नेतृत्व, बार-बार प्रभारी बदलना और पार्टी के अंदर भाजपा समर्थक नेताओं की मौजूदगी ने संगठन को बहुत कमजोर कर दिया है। यही वजह है कि राहुल गांधी को अब खुद फील्ड में उतरकर मध्य प्रदेश कांग्रेस को बचाने की कोशिश करनी पड़ रही है। अगर अब भी गुटबाजी नहीं थमी, तो कांग्रेस के लिए यह राज्य और भी कठिन होता जाएगा। मध्य प्रदेश कांग्रेस की गुटबाजी को खत्म करना अब राहुल गांधी की सबसे बड़ी प्राथमिकता बन गई है, और अगर बदलाव नहीं हुआ तो आने वाले चुनावों में पार्टी की स्थिति और भी खराब हो सकती है।

 

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