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Maha Kumbh 2025 : महाकुंभ 2025 में रचा गया इतिहास, नागा साधुओं में दलित और आदिवासी भी शामिल
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Renuka
- February 8, 2025
Maha Kumbh 2025 : उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में चल रहा महाकुंभ दिनों काफी चर्चाओं का विषय बना हुआ है। जिसमें अब तक करोड़ो लोग आस्था की डुबकी लगा चुके है। इसके साथ ही नागा साधुओं की दीक्षा की परंपरा का भी पालन किया गया है। दरअसल, नागा साधु महाकुंभ के प्रतीक माने जाते है।
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नागा साधुओं के नियम काफी कठोर और सख्त होते है। कुंभ में हमेशा नागा साधुओं को लेकर लोगों में खासी उत्सुकता देखने को मिलती है। शरीर पर भस्म लपेटे, हाथ में तलवार और जटाधारी नागा साधु महाकुंभ का प्रतीक होते हैं। माना जाता है कि इन साधुओं में कुछ विशेष जातियों का वर्चस्व है, परन्तु इस बार एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। महाकुंभ 2025 में आने वाले नागा साधुओं में 20 फीसदी दलित और आदिवासी समाज से आए जो एक अच्छा संकेत है।
महाकुंभ में देखने को मिला बड़ा बदलाव
बता दें कि नागा साधुओं को उनकी कठिन तपस्या, प्रचंड भक्ति और उग्र स्वभाव व शक्ति का स्वरूप भी माना जाता है। सदियों से ये साधु सनातन धर्म की पताका फहराते आ रहे हैं। वहीं इस बार महाकुंभ में ये पहली बार है जब नागा साधुओं की दीक्षा पाने वाले नागा साधुओं में 20 फ़ीसद दलित और आदिवासी जातियों से आए है। वहीं आंकड़ों के अनुसार इस बार करीब कुल 8715 साधकों ने नागा साधुओं और साध्वियों का मार्ग अपनाते हुए दुनिया को त्याग कर दिया। इनमें से 1850 दलित या आदिवासी जाति से थे, इसके अलावा 250 महिलाएं भी नागा साधु जीवन में शामिल हुईं है।
ये भी पढ़े- Mahakumbh 2025 Naga Sadhu : नागा साधुओं के क्या है 17 श्रृंगार, क्यों पहनते है रुद्राक्ष की माला
इन इलाकों के बने नागा साधु
जानकारों का मानना है कि आदिवसी और दलित समुदाय के साधु-साध्वी मध्यप्रदेश से लेकर नॉर्थ ईस्ट तक से आए है। ये छत्तीसगढ़ के घने जंगलों, बंगाल में नदी किनारे के गांवों, अरुणाचल और त्रिपुरा की धुंध भरी पहाड़ियों और मध्य प्रदेश के मैदानी इलाके से आए। इसी के साथ ये अपने घरों, परिवारों और पुरानी पहचानों को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने अपने सिर मुंडवाए है। पारंपरिक रूप से दिवंगत लोगों के लिए अपना पिंडदान किया।
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