
बिहार की फ्री बिजली योजना: विकास या वित्तीय संकट का रास्ता?
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Shweta
- July 18, 2025
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने आगामी विधानसभा चुनावों से पहले एक बड़ी घोषणा की है, राज्य के प्रत्येक परिवार को हर महीने 125 यूनिट मुफ्त बिजली दी जाएगी। यह कदम बिहार में मुफ्त बिजली (Free Electricity Scheme Bihar) के तहत उठाया गया है, जिसे सरकार जनकल्याणकारी योजना के रूप में पेश कर रही है। हालांकि, यह ऐलान राज्य की पहले से ही तनावपूर्ण आर्थिक स्थिति को और अधिक जटिल बना सकता है।
वर्ष 2024-25 में 'मुख्यमंत्री विद्युत उपभोक्ता सहायता योजना' के तहत राज्य सरकार ने 15,343 करोड़ रुपये का बजट तय किया है। पहले से ही बिजली पर दी जा रही सब्सिडी राज्य के विकास बजट का बड़ा हिस्सा निगल रही है। अनुमान के अनुसार, मुफ्त बिजली योजना बिहार (Free Electricity Scheme Bihar) पर सालाना लगभग 20,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा, जो राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) का करीब 2.1% है।
यह कोई नई प्रवृत्ति नहीं है। दिल्ली, कर्नाटक, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी मुफ्त बिजली, लैपटॉप, स्मार्टफोन और नकद सहायता जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं। लेकिन NITI आयोग की रिपोर्ट बताती है कि ऐसी योजनाएं राज्यों को वित्तीय संकट में धकेल सकती हैं। NITI आयोग ने पंजाब को राजकोषीय स्वास्थ्य के मामले में सबसे निचले पायदान पर रखा है, मुख्य वजह अत्यधिक उधारी।
"कुटीर ज्योति योजना के तहत जो अत्यंत निर्धन परिवार होंगे उनके लिए सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने हेतु पूरा खर्च राज्य सरकार करेगी तथा शेष के लिए भी सरकार उचित सहयोग करेगी। इससे घरेलू उपभोक्ताओं को अब बिजली का 125 यूनिट तक कोई खर्च नहीं लगेगा, pic.twitter.com/3Babm84ekb
— CMO Bihar (@officecmbihar) July 17, 2025
बिहार की अर्थव्यवस्था सीमित संसाधनों पर निर्भर है। राज्य की टैक्स वसूली बेहद कमजोर है और उधारी की सीमा भी बहुत कम है। ऐसे में जब खर्चे लगातार बढ़ रहे हों और आय स्थिर हो, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) द्वारा दी जा रही इस नई गारंटी पर सवाल उठना लाजिमी है।
भारतीय रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट ‘State Finances: A Study of Budgets’ के अनुसार, इस तरह के मुफ्त वादे राज्य के बुनियादी ढांचे और सामाजिक योजनाओं के लिए जरूरी संसाधनों की उपलब्धता को प्रभावित कर सकते हैं।
अंततः सवाल यही है, क्या बिहार की आर्थिक सेहत इतने भारी खर्च को झेल सकती है? या फिर यह कदम सिर्फ चुनावी लाभ के लिए उठाया गया एक अल्पकालिक उपाय है, जिसकी कीमत राज्य को लंबे समय तक चुकानी पड़ सकती है?
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