
Bihar Voter List पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती: चुनाव आयोग को भेजा नोटिस
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Shweta
- July 7, 2025
सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा मामला
बिहार में Bihar Voter List को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। Voter List Verification प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए अब तक सुप्रीम कोर्ट में पांच याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं। इन याचिकाओं में चुनाव आयोग के विशेष सघन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) अभियान को मनमाना और संविधान के खिलाफ बताया गया है।
याचिकाकर्ताओं की आपत्तियां
याचिकाकर्ताओं में एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, आरजेडी सांसद मनोज झा और पूर्व विधायक मुजाहिद आलम शामिल हैं। उन्होंने कहा कि बिहार के लगभग 8 करोड़ मतदाताओं की जांच इतनी कम समय में संभव नहीं है। यदि कोई मतदाता निर्धारित समय में आवश्यक फॉर्म नहीं भर पाता, तो उसका नाम मतदाता सूची से हट जाएगा।
दस्तावेजों की मांग पर सवाल
याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि Voter List Verification के लिए जिस प्रकार के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, वे अव्यवहारिक हैं। इसके चलते करोड़ों मतदाताओं के नाम हटने का खतरा है। यदि यह प्रक्रिया ऐसे ही चलती रही, तो बड़ी संख्या में लोग आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में मतदान से वंचित रह जाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
सोमवार, 7 जुलाई 2025 को वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अन्य वकील जस्टिस सुधांशु धुलिया और जस्टिस जोयमाल्या बागची की अवकाशकालीन बेंच के सामने पेश हुए। उन्होंने अपील की कि इस प्रक्रिया पर तुरंत रोक लगाई जाए। कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के लिए 10 जुलाई 2025 की तारीख तय कर दी है और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है।
संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन?
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संविधान का अभिन्न हिस्सा हैं और Bihar Voter List को लेकर चुनाव आयोग का यह निर्णय सीधे-सीधे नागरिकों के अधिकारों का हनन है। याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि यह विशेष अभियान संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व कानून, 1950 और रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल्स, 1960 का भी उल्लंघन करता है।
राजनीतिक विपक्ष का विरोध
28 जून 2025 से बिहार में यह विशेष पुनरीक्षण अभियान शुरू हो चुका है और 30 सितंबर तक चलेगा। इसके बाद नई मतदाता सूची जारी की जाएगी। आरजेडी और कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियों ने इस प्रक्रिया को अलोकतांत्रिक बताते हुए इसका विरोध शुरू कर दिया है। अब इस पूरे विवाद का फैसला सुप्रीम कोर्ट के हाथों में है।
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