
सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों के लिए 8 सूत्रीय गाइडलाइन, खत्म हो जायेगा 'चाहे भीख मांगो, उधार लो या चोरी करो, गुजारा भत्ता तो देना ही होगा'
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Ashish
- December 12, 2024
अतुल सुभाष सुसाइड केस ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। सोशल मीडिया पर जबरदस्त गुस्सा है। 34 साल के सुभाष बेंगलुरु की एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर थे। मरने से पहले उन्होंने 24 पन्नों का नोट लिखा और 80 मिनट का वीडियो मैसेज रिकॉर्ड किया, जिसमें उन्होंने अपना दर्द बयां किया। उन्होंने अपनी मौत के लिए पत्नी की प्रताड़ना के साथ-साथ फैमिली कोर्ट के जज को भी जिम्मेदार ठहराया, जिन्होंने केस सेटलमेंट के लिए उनसे कथित तौर पर 5 लाख रुपये मांगे थे। सुभाष की शादी 5 साल पहले हुई थी और उनका 4 साल का बच्चा भी था। फैमिली कोर्ट ने उन्हें बच्चे के भरण-पोषण के लिए हर महीने पत्नी को 40 हजार रुपये देने का आदेश दिया था। पत्नी निकिता सिंघानिया ने उन पर और उनके परिवार वालों पर दहेज प्रताड़ना समेत 9 केस दर्ज कराए थे।
सुभाष की मौत के बाद सोशल मीडिया पर कई लोग गुस्सा जाहिर कर रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि तलाक के मामलों में अक्सर कोर्ट मनमाने तरीके से भरण-पोषण की रकम तय कर रहे हैं। अतुल सुभाष केस को लेकर हो रहे आक्रोश के बीच सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता तय करने के लिए देशभर की अदालतों को 8 सूत्री फॉर्मूला दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि स्थायी गुजारा भत्ता की राशि पति को दंडित न करे। इसे पत्नी के लिए सम्मानजनक जीवन स्तर सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की इस गाइडलाइन के बाद 'चाहे भीख मांगो, उधार लो या चोरी करो, गुजारा भत्ता तो देना ही होगा' जैसे फैसलों पर लगाम लगने की उम्मीद है।
सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों के लिए 8 सूत्रीय गाइडलाइन तय की है, जिसके आधार पर उन्हें गुजारा भत्ता की राशि तय करनी होगी। कोर्ट ने कहा, 'यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि स्थायी गुजारा भत्ता की राशि पति को दंडित न करे बल्कि इसे पत्नी के लिए सम्मानजनक जीवन स्तर सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाया जाना चाहिए।' वैसे, सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2020 में 'रजनीश बनाम नेहा' मामले में भी गुजारा भत्ता को लेकर अदालतों के लिए दिशा-निर्देश तय किए थे। आइए एक नजर डालते हैं गुजारा भत्ता तय करने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा अपने ताजा फैसले में तय किए गए 8 मापदंडों पर।
- पति-पत्नी की सामाजिक और आर्थिक स्थिति
- भविष्य में पत्नी और बच्चों की बुनियादी ज़रूरतें
- दोनों पक्षों की योग्यता और रोज़गार
- आय और संपत्ति के साधन
- ससुराल में रहते हुए पत्नी का जीवन स्तर
- क्या उसने परिवार की देखभाल के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी है?
- काम न करने वाली पत्नी के लिए कानूनी लड़ाई के लिए उचित राशि
- पति की आर्थिक स्थिति, उसकी कमाई और गुजारा भत्ता के साथ अन्य ज़िम्मेदारियाँ
2020 में भी सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता के लिए दिशा-निर्देश तय किए थे
4 नवंबर, 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने 'रजनीश बनाम नेहा' मामले में गुजारा भत्ता को लेकर देशभर की अदालतों के लिए दिशा-निर्देश तय किए थे। कोर्ट ने कहा था कि गुजारा भत्ता की राशि का कोई तय फ़ॉर्मूला नहीं है। यह केस पर निर्भर करता है और हर केस में अलग-अलग हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब अदालतें गुजारा भत्ता की राशि तय करें, तो उन्हें किसी पिछले फ़ैसले पर भी विचार करना चाहिए। भरण-पोषण की राशि तय करते समय संबंधित पक्षों की स्थिति, आवेदक की जरूरत, प्रतिवादी की आय और संपत्ति, दावेदार की वित्तीय जिम्मेदारियां, संबंधित पक्षों की आयु और रोजगार की स्थिति, नाबालिग बच्चों का भरण-पोषण और बीमारी या विकलांगता जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भरण-पोषण से संबंधित आदेशों का भी सिविल कोर्ट के निर्णयों की तरह पालन किया जाना चाहिए। आदेश का पालन न होने पर संबंधित पक्ष को हिरासत में लेने से लेकर संपत्ति जब्त करने तक की कार्रवाई की जानी चाहिए। ऐसे मामलों में अदालतों को अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का अधिकार होगा।
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