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समूह में महाकुंभ स्थल पर भ्रमण के लिए निकले साधु

समूह में महाकुंभ स्थल पर भ्रमण के लिए निकले साधु

वर्तमान में महाकुंभ के शुभ अवसर पर 13 अखाड़े अपने-अपने साधुओं के समूह को महाकुंभ स्थल के भ्रमण पर ले जाते हैं। यह प्रथा आज से नहीं अपितु सालों से है जिसे आज भी बड़े शोक, उत्साह के साथ निवहन किया जा रहा है। इसे छावनी प्रवेश द्वार या अखाड़ों की पेशवाई भी कहा जाता है। श्री पंच दशनाम जूना (भैरव) अखाड़ा, श्री पंच दशनाम आह्वान अखाड़ा, श्री शंभू पंच अग्नि अखाड़ा, श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा, श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा, पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी, श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा, श्री पंच दिगंबर अनी अखाड़ा, श्री पंच निर्वाणी अनी अखाड़ा, तपोनिधि श्री आनंद अखाड़ा, श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासी, श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल, श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासी।

 

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प्रत्येक अखाड़ा एक निश्चित तिथि पर छावनी में प्रवेश करता है। 10 जनवरी 2025 तक ग्यारह अखाड़े महाकुंभ क्षेत्र में प्रवेश कर चुके हैं। श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल 11 जनवरी 2025 को तथा श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन 12 जनवरी 2025 को छावनी में प्रवेश करेगा। अपनी धार्मिक-आध्यात्मिक परंपरा के अनुसार वे दल-बल, अस्त्र-शस्त्र के जुलूस के साथ महाकुंभ पर्व में स्नान करते हैं। , हाथी, घोड़े और रथ, जिन्हें देखने के लिए देश-दुनिया से लोग आते हैं।

 

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महाकुंभ भारतीय संस्कृति से जुड़ा हुआ है और इस संस्कृति के प्रवाह को लोक कल्याण से जोड़ने में शैव और वैष्णव अखाड़ों का विशेष महत्व है। आचार्यों के अनुसार अखाड़े भारतीय साधु-संतों की प्राचीन धार्मिक परंपरा का अहम हिस्सा हैं। जबकि वैष्णव अखाड़ा हिंदू धर्म के वैष्णव संप्रदाय से जुड़ा है, जो भगवान विष्णु और उनके अवतारों की भक्ति और पूजा के माध्यम से भक्ति, त्याग और आध्यात्मिकता का प्रचार करता है। शैव अखाड़ा भगवान शिव को सर्वोच्च देवता के रूप में पूजता है। इसका उद्देश्य त्याग, ध्यान और शिव की भक्ति के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करना है।

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