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बिहार चुनाव से पहले ‘शपथ पत्र विवाद’ गरमाया, अशोक गहलोत ने की नॉर्थ कोरिया से तुलना

बिहार चुनाव से पहले ‘शपथ पत्र विवाद’ गरमाया, अशोक गहलोत ने की नॉर्थ कोरिया से तुलना

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक गलियारों में शपथ पत्र विवाद और वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन को लेकर गर्मागर्मी तेज हो गई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चुनाव आयोग (ECI) द्वारा मांगे गए शपथ पत्र को देने से साफ इनकार कर दिया है। इस मामले ने विपक्ष को केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर हमले का नया मौका दे दिया है। वहीं, राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राहुल गांधी के पक्ष में उतरते हुए इसे ‘वोट चोरी’ का खुलासा बताया और चुनाव आयोग की तुलना नॉर्थ कोरिया जैसे देशों के चुनावी ढांचे से कर डाली।

 

राहुल गांधी का इनकार और तर्क

चुनाव आयोग ने आगामी बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन के तहत राहुल गांधी से एक शपथ पत्र देने को कहा था। इस पर राहुल गांधी ने साफ कहा कि वह पहले ही संसद सदस्य के रूप में संविधान की रक्षा की शपथ ले चुके हैं, और उन्हें दोबारा शपथ पत्र देने की आवश्यकता नहीं है।राहुल गांधी के इस रुख को विपक्षी दलों ने समर्थन दिया और इसे लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा से जोड़ा। कांग्रेस का कहना है कि शपथ पत्र मांगना अनावश्यक और असंवैधानिक है।

 

अशोक गहलोत का चुनाव आयोग पर हमला

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 10 अगस्त को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट करते हुए कहा कि राहुल गांधी ने देश के सामने ‘वोट चोरी’ के सबूत रखे हैं और जनता को उन पर भरोसा है। गहलोत के अनुसार, शपथ पत्र विवाद में आयोग की भूमिका “बेहूदा” और “अपनी इज्जत बचाने का प्रयास” जैसी लगती है। उन्होंने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत के बयान का हवाला दिया कि पहले चुनाव आयोग खुद ही स्वतः संज्ञान लेकर जांच करता था, जिससे जनता का भरोसा कायम रहता था।

 

अतीत के उदाहरण और सवाल

गहलोत ने यह भी याद दिलाया कि अतीत में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी जैसे विपक्षी नेताओं ने भी चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे, लेकिन तब किसी से भी शपथ पत्र नहीं मांगा गया।

 

उन्होंने तीखा सवाल किया—“यदि यह खुलासा किसी खोजी पत्रकार या मीडिया संस्थान ने किया होता, तो क्या चुनाव आयोग उनसे भी शपथ पत्र मांगता या निष्पक्ष जांच करता?” यह सवाल सीधे तौर पर आयोग की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर उंगली उठाता है।

 

नॉर्थ कोरिया से तुलना और लोकतंत्र की चेतावनी

अशोक गहलोत ने इस पूरे शपथ पत्र विवाद पर टिप्पणी करते हुए कहा कि नॉर्थ कोरिया, चीन और रूस जैसे देशों में केवल एक ही पार्टी का शासन होता है और वहां का चुनाव आयोग महज औपचारिकता निभाता है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर भारत में भी इसी तरह की कार्यप्रणाली अपनाई गई, तो लोकतंत्र की साख को गंभीर नुकसान पहुंचेगा।
गहलोत ने कहा कि भारत का चुनाव आयोग हमेशा से विश्वसनीय संस्था माना जाता रहा है, लेकिन ऐसे कदम उसकी छवि को धूमिल कर सकते हैं।

 

बिहार चुनावी माहौल में बढ़ी सरगर्मी

यह पूरा मामला बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर और भी संवेदनशील हो गया है। वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन का मुद्दा पहले से ही विपक्ष के निशाने पर था, और अब राहुल गांधी व अशोक गहलोत के बयानों ने इसे और तेज कर दिया है।

 

विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग सत्ता पक्ष के दबाव में काम कर रहा है और वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन के बहाने विपक्षी मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश हो रही है।

 

नतीजा और राजनीतिक असर

इस विवाद ने चुनाव से पहले राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। शपथ पत्र विवाद अब सिर्फ कानूनी या प्रशासनिक मामला नहीं रह गया, बल्कि यह राजनीतिक नैरेटिव का हिस्सा बन चुका है।
जहां कांग्रेस और विपक्ष इसे लोकतंत्र की रक्षा का सवाल बता रहे हैं, वहीं सत्ता पक्ष का कहना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शिता के लिए जरूरी है।

 

आगामी दिनों में यह मुद्दा बिहार के चुनावी प्रचार में एक अहम हथियार के रूप में इस्तेमाल होने की पूरी संभावना है।

 

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