उदयपुर के पूर्व राजघराने के सदस्य महेंद्र सिंह मेवाड़ का निधन, चित्तौड़गढ़ से रहे थे सांसद
- Ashish
- November 10, 2024
उदयपुर के पूर्व राजघराने के सदस्य महेंद्र सिंह मेवाड़ का रविवार को 84 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने दोपहर अनंता अस्पताल में अंतिम सांस ली। पिछले 10 दिनों से उनका इलाज चल रहा था। मेवाड़ परिवार के करीबी कमलेंद्र सिंह पंवार ने इसकी पुष्टि की। महेंद्र मेवाड़ के बेटे विश्वराज सिंह नाथद्वारा से भाजपा विधायक हैं और पुत्रवधू महिमा कुमारी राजसमंद से सांसद हैं। पूरा परिवार सुबह से ही अस्पताल में मौजूद था।
वे भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों में रहे, एक बार सांसद भी रहे महेंद्र सिंह ने 1989 में भाजपा के टिकट पर चित्तौड़गढ़ से लोकसभा चुनाव लड़ा था। उन्हें 3,97,056 वोट मिले थे और उनके प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस की निर्मला कुमार थीं, जिन्हें 2,05,318 वोट मिले थे। 1991 के लोकसभा चुनाव में महेंद्र सिंह भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। कांग्रेस ने उन्हें चित्तौड़गढ़ लोकसभा से टिकट देकर मैदान में उतारा था। उनके प्रतिद्वंद्वी भाजपा के जसवंत सिंह जसोल थे। जसोल चुनाव जीत गए। जसवंत सिंह को 2,56,166 वोट मिले और मेवाड़ को 2,37,748 वोट मिले।
1996 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर महेंद्र सिंह मेवाड़ को टिकट दिया, लेकिन उनका संसदीय क्षेत्र बदलकर भीलवाड़ा कर दिया गया। इस चुनाव में वे भाजपा के सुभाष चंद बहेड़िया से हार गए। उन्हें 1,95,522 वोट मिले और बहेड़िया को 2,12,731 वोट मिले। पिता की मृत्यु के बाद वे 1984 में राजघराने के मुखिया बने। महेंद्र सिंह मेवाड़ ने अपनी विरासत और अतीत की स्मारकों को संरक्षित करने का भी काम किया। वे कहते थे कि सिसोदिया राजवंश की 76वीं पीढ़ी के तौर पर यह उनकी जिम्मेदारी है। 1984 में उनका राज्याभिषेक हुआ। वे उदयपुर के महाराणा भगवत सिंह के सबसे बड़े बेटे के तौर पर राजगद्दी पर बैठे और मुखिया बने। दरअसल मुख्य परिवार मेवाड़ का राजघराना रहा है, लेकिन महेंद्र सिंह मेवाड़ को महाराणा की उपाधि मिली थी।
फिल्म पद्मावत का खुलकर किया था विरोध
महेंद्र सिंह मेवाड़ ने फिल्म पद्मावत का खुलकर किया था विरोध और इसके बाद वे एक बार फिर सुर्खियों में आ गए थे। इस बीच राज्य सरकार ने पुलिस के जरिए उनके लिए आपराधिक डोजियर तैयार करने की कोशिश की, लेकिन मामला उजागर हो गया। दरअसल जिस कांस्टेबल को गोपनीय पत्र लेकर सरकारी दफ्तर भेजा गया था, उसने खुद ही यह पत्र मेवाड़ के सामने पेश कर दिया था। उस समय इस मामले ने तूल पकड़ लिया था और कांस्टेबल को निलंबित कर दिया गया था।
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