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Mahakumbh 2025 : तीर्थपुरोहित या प्रयागवाल के नाम से जाने जाते हैं प्रयागराज में पंडे, यहां जानिए इसके पीछे की गाथा

Mahakumbh 2025 : तीर्थपुरोहित या प्रयागवाल के नाम से जाने जाते हैं प्रयागराज में पंडे, यहां जानिए इसके पीछे की गाथा

Kumbh mela 2025 : साल 2025 के प्रयागराज में महाकुम्भ मेला लगने वाला हैं, जिसे लेकर तमाम तैयारियां की जा रही हैं। वहीं, श्रद्धालु अपनी तीर्थ यात्रा की तैयारी में लगे हैं। प्रयागराज महाकुंभ 2025 की धूम धीरे धीरे तेज होने लगी है। एस दैरान मेले में पंडों की विशेष भूमिका होती है। क्योंकि यहां लाखों की संख्या में स्नान के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को धार्मिक अनुष्ठान करने में पंडे सहायता प्रदान करते हैं। कुंभ मेले में पंडों का कार्य श्रद्धालुओं को विशेष पूजा विधियों, मंत्रों और अनुष्ठानों का पालन कराना होता है, जिससे वे सही तरीके से पूजा पाठ संपन्न कर सकें और पुण्य कमा सकें। यह काम सैकड़ों सालों से पंडे कुंभ मेले में करते आ रहे हैं। आपको बता दें कि सालों साल से तीर्थराज प्रयाग में आने वाले श्रद्धालुओं की आवभगत करने वाले पंडों को तीर्थराज और प्रयागवाल के नाम से भी जाना जाता है। ऐसे में आइए महाकुंभ से जुड़ी कुछ रोचक बातों को जानते है -

 

विशेष और अद्भुत तीर्थराज प्रयागराज
दरअसल, प्रयागराज से प्रयागवालों का संबंध बहुत पुराना है। श्रद्धालुओं के स्वागत की परंपरा जितनी पुरानी है उससे भी ज्यादा यह अनूठी है। सालों साल बीत चुके हैं जाहिर सी बात है कि व्यस्थाओं में परिवर्तन देखने को मिलता रहा है लेकिन यहां की परंपराएं आज भी कायम हैं और सालों साल से दोहराई जा रही है। क्या आप जानते हैं कि तीर्थराज प्रयाग के पंडों को प्रयागवाल कहा जाता है। इन पंडों को गंगापुत्र के नाम से भी जाना जाता है। प्रयागराज के महांकुभ से जुड़ी ऐसी कई रोचक बातें हैं जो इसे विशेष और अद्भुत बनाती हैं।

 

पांच सौ सालों की वंशावली
प्रयागराज में तीर्थ पुरोहितों के पास कहां से और कौन लोग आए इसका पूरा लेखा जोखा होता है। यहां के पंडों के पास देश विदेश में रह रहे भारतीयों की पांच सौ सालों की वंशावली मौजूद है। प्रयागराज के अलावा देश भर के सभी धार्मिक स्थलों पर तीर्थ पुरोहित होते हैं और धार्मिक स्थलों के सभी तीर्थ पुरोहितों के पास यहां आए लोगों की वंशावली को सैंकड़ों सालों से सुरक्षित रखा जाता है। प्राचीन काल से जो लोग तीर्थ स्थानों पर दर्शन या पूजन के लिए तीर्थ स्थल पर पहुंचते हैं उनके नाम पंडों के बही खाते में होता है। इसके बाद जैसे से समय बीतता गया पंडों ने भी अपने अपने क्षेत्र बांट लिए ताकि किसी तरह का मतभेद पंडों के बीच न हो। यह परंपरा आज भी चला आ रहा है।

 

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प्रयागवालों के बारे में
तीर्थराज प्रयाग की प्राचीनता से प्रयागवालों का निकट संबंध है। पहले तो इन प्रयागवालों को तीर्थ गुरु के नाम से लोग जानते थे। यही लोग धार्मिक अनुष्ठान संपन्न करवाते थे। एक समूह में होने की वजह से इनको प्रयागवाल कहा जाने लगा। प्रयागवाल उच्चकोटि के ब्राह्मण होते हैं, जिनमें सरयूपारी और कान्यकुब्ज दोनों आते हैं। आर्य मुनियों भारद्वाज अत्रि दुर्वासा व इसी जाति के प्रयागवाल प्राचीन नगर निवासी रहे हैं। प्रयागवाल उच्चकोटि के ब्राह्मण है जिनमें सरयूपारीन और कान्यकुब्ज दोनों समुदाय के लोग है।

 

मिश्र परिवार था राम जी का तीर्थ पुरोहित
तीर्थ पुरोहितों की समृद्ध परंपरा राम युग यानी रामायण और कृष्ण युग यानी महाभारत काल से चली आ रही है। समय के साथ पीढ़ियां तो बदली, इसका विस्तार तो बढ़ा लेकिन परंपराएं जस की तस हैं। ऐसी मान्यता है कि त्रेतायुग में चौखंडी बारह खंभा के निवासी मिश्र परिवार के पूर्वज भगवान राम के तीर्थ पुरोहित थे। जिस स्थान पर राम जी ने गंगा स्नान किया उसका नाम रामघाट है।

 

राम यात्रा का उत्सव
यहां राम जी के आगमन और स्नान का आज भी बहुत महत्व है, तभी तो हर वर्ष देवोत्थान एकादशी पर प्रयागवाल सभा की तरफ से प्रभु राम की भव्य यात्रा भी निकाली जाती है जैसे कि कोई बड़ा उत्सव हो। डॉ. शंभुनाथ त्रिपाठी अंशुल से इस बारे में जानकारी मिलती है कि लौकिक परंपरा के तहत रामजी की वंश परंपरा से संबंधित ज्यादातर पुरोहित कीड़गंज चौखंडी व दारागंज में रहा करते थे।

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