
महाराजा सूरजमल का बलिदान दिवस आज, एक लड़की को बचाने के लिए दे दी शहादत
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Ashish
- December 25, 2024
महाराजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी 1707 को डीग के महलों में हुआ था। उनके पिता राजा बदन सिंह और माता देवकी थीं। वे इतिहास में एकमात्र जाट महाराजा थे जिनकी गिनती वीर राजपूत राजाओं में की जाती है, वे हैं जाट राजा सूरजमल। स्वतंत्र हिंदू राज्य की स्थापना का सपना देखने वाले इस राजा ने कभी मुगलों के सामने घुटने नहीं टेके। इतिहासकार रामवीर वर्मा के अनुसार महाराजा सूरजमल ने अपने जीवनकाल में कुल 80 युद्ध लड़े और सभी में जीत हासिल की। उनका राजनीतिक जीवन महज 14 साल की उम्र में ही शुरू हो गया था।
25 दिसंबर 1763 को दिल्ली के इमाद नजीब-उद-दौला के साथ लड़े गए युद्ध में महाराजा सूरजमल ने विश्वासघाती हमले में शहादत प्राप्त की। इतिहासकार रामवीर सिंह के अनुसार कुछ लोग महाराजा सूरजमल को हिंदू सम्राटों का कनिष्क भी कहते हैं। दिल्ली के सेनापति ने किया था हिंदू लड़की का अपहरण
इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने हरियाणा के इतिहासकार दिलीप अहलावत की किताब का हवाला देते हुए बताया कि दिल्ली के वजीर के सेनापति ने एक ब्राह्मण लड़की को अपने हरम में रखने के लिए उसका अपहरण किया था। ब्राह्मण लड़की ने बड़ी ही चतुराई से सेनापति से सोचने के लिए कुछ दिन का समय मांगा और मौका पाकर हिंदू लड़की ने भरतपुर के महाराजा सूरजमल सिंह को एक पत्र लिखा। पत्र में उसने महाराजा सूरजमल से अपने सम्मान और धर्म की रक्षा की गुहार लगाई।
पत्र मिलने के बाद सूरजमल ने दिल्ली पर कर दिया हमला
इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि ब्राह्मण लड़की से पत्र मिलने के बाद और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए महाराजा सूरजमल ने दिल्ली के वजीर नजीब-उद-दौला पर हमला कर दिया। उसके बाद दिल्ली पर लगभग विजय प्राप्त करने के बाद महाराजा सूरजमल अपने सेनापतियों से परामर्श करने के लिए हिंडन नदी के किनारे गए, जहां दुश्मन सेना घात लगाए बैठी थी। दुश्मन सेना ने अचानक महाराजा सूरजमल पर हमला कर दिया और वे शहीद हो गए।
महाराजा सूरजमल की अंतिम यात्रा
महाराजा सूरजमल का अंतिम संस्कार भगवान श्री कृष्ण की पावन भूमि गोवर्धन में किया गया, बाद में वहां कुसुम सरोवर झील और एक छतरी का निर्माण किया गया। यह वास्तुकला का एक सुंदर और उत्कृष्ट उदाहरण है।
पुत्र ने दिल्ली पर विजय प्राप्त कर बदला लिया
महाराजा सूरजमल की शहादत का बदला बाद में उनके वीर पुत्र जवाहर सिंह ने दिल्ली पर विजय प्राप्त करके लिया। महाराजा जवाहर सिंह ने दिल्ली पर विजय प्राप्त करने के साथ ही चित्तौड़गढ़ के दरवाजे को लाल किले से उखाड़कर ले आए और उसे लोहागढ़ के किले में स्थापित किया गया।
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