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धारा 498-ए की वजह से गई एआई इंजीनियर अतुल सुभाष की जान ? चर्चा में है महिलाओं से जुड़ा ये कानून

धारा 498-ए की वजह से गई एआई इंजीनियर अतुल सुभाष की जान ? चर्चा में है महिलाओं से जुड़ा ये कानून

IPC की धारा 498 ए एक ऐसी धारा है जिसको महिला को दहेज़ के खिलाफ लड़ने के लिए कानूनन मदद मिलती है साथ ही महिलाओं पर हो रहे अत्याचार जिसमे महिला के साथ मारपीट करना, दहेज़ मांगना,शारीरिक हिंसा,मानसिक हिंसा जैसे मुद्दे शामिल है। जिनसे महिला रोज दो-चार होती है ये कानून महिलाओ की सुरक्षा के लिए बनाया गया था लेकिन इस कानून को लेकर देश में बार बार चर्चा होती है हाल में हुए बैंगलोर के अतुल सुभाष सुसाइड केस ने एक बार फिर इस धारा पर चर्चा तेज कर दी है। आखिर क्या है धारा 498 ए

 

IPC की धारा 498A:

  • भारतीय दंड संहिता-1860 की धारा 498A वर्ष 1983 में भारतीय संसद द्वारा पारित की गई थी।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 498A एक आपराधिक कानून है।
  • इसमें परिभाषित किया गया है कि यदि किसी महिला के पति या पति के रिश्तेदार ने महिला के साथ क्रूरता की है तो इसके लिये 3 वर्ष तक की कैद की सज़ा हो सकती है और जुर्माना भी हो सकता है।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 498A महिला के खिलाफ हिंसा (VAW) के लिये सबसे बड़ा बचाव है, जो एक घर की चारदीवारी के भीतर होने वाली घरेलू हिंसा की वास्तविकता का प्रतिबिंब है।

 

घरेलू हिंसा अधिनियम:

  • शारीरिक हिंसा, जैसे- थप्पड़ मारना, लात मारना और पीटना।
  • यौन हिंसा, जिसमें जबरन संभोग और यौन उत्पीड़न के अन्य रूप शामिल हैं।
  • भावनात्मक (मनोवैज्ञानिक) दुर्व्यवहार जैसे- अपमान करना, डराना, नुकसान की धमकी, बच्चों को ले जाने की धमकी।
  • व्यवहार को नियंत्रित करना, जिसमें किसी व्यक्ति को परिवार और दोस्तों से अलग करना, उनकी गतिविधियों की निगरानी करना तथा वित्तीय संसाधनों, रोज़गार, शिक्षा या चिकित्सा देखभाल तक पहुँच को प्रतिबंधित करना शामिल है।

आज एक फिर इस कानून को लेकर पुरे देश में चर्चा है कारण है इस कानून का हो रहा दुरप्रयोग। सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना से संबंधित कानून के मिसयूज पर चिंता जताई है। इसी के साथ कहा है कि दहेज प्रताड़ना से संबंधित नए कानून में जरूरी बदलाव करना चाहिए। भारतीय न्याय संहिता एक जुलाई से लागू होने जा रही है, जिसमें दहेज प्रताड़ना से संबंधित प्रावधान धारा 85 और 86 में है। जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा, भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 85 और 86 एक जुलाई से प्रभाव से लागू होने वाली है। ये धाराएं IPC की धारा 498A को दोबारा लिखने की तरह है। हम कानून बनाने वालों से अनुरोध करते हैं कि इस प्रावधान के लागू होने से पहले भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 85 और 86 में जरूरी बदलाव करने पर विचार करना चाहिए ताकि इसका दुरुपयोग न हो सके। नए कानून में दहेज प्रताड़ना से संबंधित कानून की परिभाषा में कोई बदलाव नहीं किया गया है, बस अलग से धारा 86 में दहेज प्रताड़ना से संबंधित प्रावधान के स्पष्टीकरण का जिक्र किया गया है।

 

दहेज प्रताड़ना केस में सुप्रीम कोर्ट ने की अहम टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला की ओर से पति के खिलाफ दर्ज कराए गए दहेज प्रताड़ना के केस को खारिज करते हुए उक्त टिप्पणी की है। केस को खारिज करने की पति की अर्जी पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने ठुकरा दी थी जिसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दी। साथ ही कोर्ट ने कहा कि हम रजिस्ट्री को निर्देश देते हैं कि वह इस मामले में जजमेंट को गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय के मंत्री को भेजे।

 

क्या पति के साथ नहीं होती हिंसा?

पति-पत्नी के एक मामले में सुनवाई करते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की थी. हाई कोर्ट ने कहा था कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि पति के पास पत्नी के खिलाफ केस शिकायत करने के लिए घरेलू हिंसा जैसा कानून नहीं है.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) के आंकड़ों के मुताबिक, 18 से 49 साल की उम्र की 10 फीसदी महिलाओं ने कभी न कभी अपने पति पर हाथ उठाया है, वो भी तब जब उनके पति ने उनपर कोई हिंसा नहीं की.
इस सर्वे के दौरान, 11 फीसदी महिलाएं ऐसी भी थीं, जिन्होंने माना था कि बीते एक साल में उन्होंने पति के साथ हिंसा की है.
सर्वे के मुताबिक, उम्र बढ़ने के साथ-साथ पति के साथ हिंसा करने वाली महिलाओं की संख्या भी बढ़ जाती है. 18 से 19 साल की 1 फीसदी से भी कम महिलाओं ने पति के साथ हिंसा की. जबकि, 20 से 24 साल की उम्र की करीब 3 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने पति पर हिंसा की. इसी तरह 25 से 29 साल की 3.4%, 30 से 39 साल की 3.9% और 40 से 49 साल 3.7% महिलाओं ने पति के साथ मारपीट की.
आंकड़े ये भी बताते हैं कि शहरों की बजाय ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाएं पति के साथ ज्यादा हिंसा करतीं हैं. शहरी इलाकों में रहने वालीं महिलाएं 3.3% हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में ऐसी 3.7% महिलाएं हैं.

 

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