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Govardhan Pooja Muhurt : गोवर्धन पूजा की तारीख को लेकर भी कन्फ्यूजन, जानिए किस दिन मनाना रहेगा श्रेष्ठ

Govardhan Pooja Muhurt : गोवर्धन पूजा की तारीख को लेकर भी कन्फ्यूजन, जानिए किस दिन मनाना रहेगा श्रेष्ठ

Govardhan Pooja Muhurt : पांच दिन के दीपोत्सव में दिवाली के अगले दिन को गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है। देश के कुछ भागों में जहां गोवर्धन को गोवर्धन पर्वत की पूजा के रूप में मनाया जाता है, वहीं कुछ जगह इस दिन क्योंकि गाय के गोबर से भगवान गोवर्धन (Lord Govardhan) की आकृति बनाकर उनकी पूजा की जाती है, इसलिए इस दिन गोबर को धन के रूप में पूजा जाता है। दरअसल गाय को हिंदू शास्त्रों में माता का स्थान दिया गया है और गाय के दूध से लेकर गौमूत्र, गोबर सभी कुछ पवित्र माना गया है। यही वजह है कि कहीं कहीं गोबर से बने गोवर्धन की भी पूजा की जाती है। इसके अलावा इस दिन को अन्नकूट उत्सव (Annakoot Utsav) के रूप में भी मनाया जाता है। इस समय क्योंकि मोटे अनाज की फसलें कटकर घर आती हैं, इसलिए इन मोटे अनाजों (Coarse Grains) को सब्जियों के साथ मिलाकर पकाया जाता है और फसल का पहला भोग भगवान को लगाया जाता है।

 

कहीं अल सुबह, तो कहीं गोधूलि बेला के समय होती है गोवर्धन पूजा

वहीं गोवर्धन पूजा की बात करें तो देश में कहीं-कहीं सुबह पूजा की जाती है, वहीं उत्तर प्रदेश के वृंदावन, मथुरा, आगरा और इससे लगते राजस्थान के जिलों में शाम को गोधूलि बेला के समय गोवर्धन पूजा करने की परंपरा है। धार्मिक मान्यता है कि इन कार्यों को करने से साधक को सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। साथ ही जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए दान भी किया जाता है।

 

ये है गोवर्धन पूजा के पीछे की पौराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक माह (Kartik Month) के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna) ने इंद्रदेव का घमंड तोड़ा था। बताया जाता है कि द्वापर युग में एक बार ब्रजमंडल के वासी क्षेत्र में अच्छी बारिश के लिए भगवान इंद्र की पूजा की तैयारियां कर रहे थे। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे पूछा कि वे क्या कर रहे हैं ? तब ब्रजमंडल वासियों ने उन्हें बताया कि वे अच्छी बारिश के लिए भगवान इंद्र का आभार जताने के लिए उनकी पूजा करेंगे, उसी की तैयारियां की जा रही हैं। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि इंद्र क्योंकि बारिश के देवता हैं, इसलिए बारिश करना तो भगवान इंद्र का कर्त्तव्य है। इसलिए उनका आभार जताने की कोई जरूरत नहीं है। ब्रजमंडलवासियों ने भगवान कृष्ण की बात मान ली और पूजा की तैयारियां बंद कर दीं। इससे भगवान कृष्ण ब्रजमंडल (Brij) वासियों से नाराज हो गए और क्षेत्र में भारी बारिश शुरू कर दी। तब भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर छतरी की तरह उठा लिया और उसके नीचे आकर सारे ब्रजमंडल वासियों ने अपनी रक्षा की। इसके बाद जब बारिश रुक गई, तो भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव (Lord Indra) को कहा कि आप बारिश के देवता (Lord of Rain) हैं, इस बात के लिए आपको घमंड नहीं करना चाहिए। पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवों को जीने के लिए पानी की जरूरत होती है। इसलिए प्रकृति को चलाने के लिए बारिश करना आपका कर्त्तव्य है और अगर कोई आपका आभार न भी जताए, तो भी आपको अपना कर्त्तव्य जरूर निभाना चाहिए। इसके बाद ब्रजवासियों ने भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की और भोग अर्पित किए। तभी से हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja Significance) का त्यौहार मनाया जाता है।

 

गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त 2 नवंबर को

हिंदू पंचांग (Hindu Panchang) के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि (Govardhan Puja Date 2024) की शुरुआत 01 नवंबर को शाम 06 बजकर 16 मिनट से होगी और इसका समापन 02 नवंबर को रात 08 बजकर 21 मिनट पर होगा। ऐसे में कहीं-कहीं गोवर्धन पूजा 1 नवंबर को और जहां उदयात तिथि को प्रधानता दी जाती है, वहां गोवर्धन पूजा 02 नवंबर (Kab Hai Govardhan Puja 2024) को की जाएगी। ऐसे में इस दिन पूजा करने का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है-

  • प्रातः काल मुहूर्त - सुबह 06 बजकर 34 मिनट से 08 बजकर 46 मिनट तक।
  • विजय मुहूर्त- दोपहर 02 बजकर 09 मिनट से लेकर 02 बजकर 56 मिनट तक।
  • संध्या काल मुहूर्त - दोपहर 03 बजकर 23 मिनट से 05 बजकर 35 मिनट तक।
  • गोधूलि मुहूर्त- शाम 06 बजकर 05 मिनट से लेकर 06 बजकर 30 मिनिट तक।
  • त्रिपुष्कर योग- रात्रि 08 बजकर 21 मिनट तक 3 नवंबर को सुबह 05 बजकर 58 मिनट तक।

 

इस तरह करें गोवर्धन पूजा

  • गोवर्धन पूजा के दिन सुबह स्नान करने के बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें।
  • उसके बाद गाय के गोबर से श्री कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा करें।
  • घर के मंदिर को रंगोली और फूलों से सजाएं। इस दिन गोवर्धन देव के समक्ष घी का दीपक जलाएं, फूल और अक्षत अर्पित करें।
    इसके बाद कढ़ी और अन्नकूट चावल का भोग लगाएं।
  • अंत में गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करें और आरती करें।

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