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हिंदू धर्म में वीरता का प्रतीक हैं मां काली, जानें अमावस्या के दिन काली मां की पूजा का महत्व

हिंदू धर्म में वीरता का प्रतीक हैं मां काली, जानें अमावस्या के दिन काली मां की पूजा का महत्व

 

मां दुर्गा का विकराल रूप हैं मां काली और यह बात सब जातने हैं कि दुष्‍टों का संहार करने के लिए मां ने यह रूप धरा था. शास्‍त्रों में मां के इस रूप को धारण करने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं और उनका व्याखान भी वहां मिलता है. माँ काली हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवी हैं, जो शक्ति और समय की प्रतीक हैं। वह भगवान शिव की पत्नी और देवी पार्वती का एक रूप हैं। माँ काली को अक्सर एक शक्तिशाली और डरावनी देवी के रूप में चित्रित किया जाता है, जो बुराई का नाश करने और सच्चाई की रक्षा करने के लिए जानी जाती हैं।


मां काली को शक्ति का प्रतीक माना जाता है और उन्हें संहार एवं परिवर्तन की देवी के रूप में पूजा जाता है। मां काली की उपासना से नकारात्मकता और अज्ञानता का नाश होता है। शुम्भ-निशुम्भ के वध के समय मां के शरीर से एक तेज पुंज बाहर निकल गया था. फलस्वरूप उनका रंग काला पड़ गया और तभी से उनको काली कहा जाने लगा. इनकी पूजा उपासना से भय नाश,आरोग्य  की प्राप्ति, स्वयं की रक्षा और शत्रुओं का नियंत्रण होता है. इनकी उपासना से तंत्र मंत्र के सारे असर समाप्त हो जाते हैं. मां काली की पूजा का विशेष समय रात का होता है, जब अंधकार का वातावरण उनके रहस्य और शक्ति को और भी प्रकट करता है। रात्रि में उनकी उपासना से नकारात्मक शक्तियों का नाश करने की क्षमता बढ़ जाती है।

माँ काली का अवतरण
मां काली की उत्पत्ति के संबंध में कई पौराणिक कथाएँ हैं, लेकिन सबसे प्रसिद्ध कथा देवी दुर्गा से जुड़ी है। जब देवताओं और मानवों पर दैत्यों का अत्याचार बढ़ गया, तब ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने मिलकर देवी दुर्गा का अवतार लिया।

एक बार, दैत्य महिषासुर को हराने के बाद, महाकाली का अवतार हुआ। देवी दुर्गा ने अपने क्रोध के प्रभाव से काली को उत्पन्न किया, जो एक भयानक और शक्तिशाली रूप में प्रकट हुईं। मां काली ने दैत्यों का संहार किया और उनके आतंक को समाप्त किया। मां काली की एक और प्रसिद्ध उत्पत्ति की कथा है, जिसमें उन्हें समय के अंत में शिव के भक्ति में आकर उत्पन्न माना जाता है। इस रूप में, वे सृष्टि के संहार और पुनर्जन्म का प्रतीक हैं। उनका काला रंग उन्हें अज्ञानता और अंधकार का प्रतिनिधित्व करने वाला मानता है, जबकि उनकी तीव्र आँखें और तांडव उनके शक्ति और साहस को दर्शाते हैं। मां काली की उपासना से न केवल बुराई का नाश होता है, बल्कि भक्ति और प्रेम का मार्ग भी प्रशस्त होता है।

शक्ति सम्प्रदाय की सबसे प्रमुख देवी
मां काली शक्ति सम्प्रदाय की सबसे प्रमुख देवी हैं, जिस तरह संहार के अधिपति शिव जी हैं उसी प्रकार संहार की अधिष्ठात्री देवी मां काली हैं। शक्ति के कई स्वरूप हैं। शुम्भ-निशुम्भ के वध के समय मां के शरीर से एक तेज पुंज बाहर निकल गया था। फलस्वरूप उनका रंग काला पड़ गया और तभी से उनको काली कहा जाने लगा।

अमावस्या के दिन काली मां की पूजा का महत्व
हिन्दू धर्म में मां काली की पूजा को अमावस्या के दिन करने के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व हैं. ऐसा माना जाता है कि मां काली की पूजा तांत्रिक साधना के लिए मुख्य रूप से की जाती है और अमावस्या का दिन इस पूजा के लिए बहुत ही खास माना जाता है. तांत्रिक दृष्टिकोण से, अमावस्या का समय अध्यात्मिक साधना के लिए अच्छा माना जाता है. मां काली का स्वरूप भयंकर और उग्र होता है, और वह अध्यात्मिक लड़ाई और दुर्गति का नाश करने की शक्ति का प्रतीक है. इसलिए, अमावस्या का समय इस उग्र रूप की पूजा के लिए शास्त्रों में सबसे उपयुक्त बताया गया है. अमावस्या के दिन कहा जाता है कि प्राकृतिक ऊर्जा अधिक होती है और देवी काली की पूजा से इस ऊर्जा की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. अमावस्या के दिन का माहौल आध्यात्मिकता और साधना के लिए अनुकूल होता है, जो मां काली की पूजा करने वाले लोगों को लिए अच्छा रहता है. ज्योतिष शास्त्र में कहा जाता है कि अमावस्या के दिन अशुभ ग्रहों का प्रभाव बढ़ता है, और इस समय मां काली की पूजा से यह अशुभता को नष्ट किया जा सकता है. इसी वजह से अमावस्या के दिन खासकर रात के समय मां काली की पूजा का विशेष महत्व है और इसे अध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है.

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