Dark Mode
  • day 00 month 0000
नेताओं के लिए रैली 'शान' पर आम आदमी परेशान

नेताओं के लिए रैली 'शान' पर आम आदमी परेशान

पिछले कई महीनों से शंभू बॉर्डर पर डेरा डाले किसान अब फिर से राजधानी दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं। वे अपनी 12 मांगों को लेकर फिर से सरकार को घेरने की तैयारी कर रहे हैं कुछ दिन पहले तक नोएडा-गाजियाबाद में भी इसी तरह जाम की स्थिति देखने को मिली थी। तब राहुल गांधी की जिद आड़े आई थी, अब किसानों का आंदोलन दिल्ली की ओर बढ़ रहा है।

 

अब चाहे नेताओं की अगुआई हो या किसानों का विरोध, आम आदमी को परेशानी होती है क्योंकि उसे घंटों ट्रैफिक जाम में फंसना पड़ता है, उसे ऑफिस देर से पहुंचना पड़ता है।

 

यह पहली बार नहीं है कि दिल्ली या नोएडा को विरोध का केंद्र बनाया गया हो, हर साल, हर महीने राजधानी में किसी न किसी मुद्दे पर ऐसे विरोध प्रदर्शन होते रहते हैं, कोई न कोई समुदाय कई मांगों को लेकर सड़कों पर उतर आता है और नतीजा- सभी सड़कें जाम हो जाती हैं, पुलिस की भारी बैरिकेडिंग और परेशान आम आदमी. आइए हम दिल्ली पुलिस का एक ऐसा आंकड़ा पेश करते हैं जो आपको हैरान कर देगा. यह भी दिखाएगा कि आम आदमी कितना सहनशील हो गया है.

 

दिल्ली पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल ही राजधानी में 2041 धरने, 1627 विरोध प्रदर्शन, 929 जुलूस, 172 रैलियां, 107 बंद के आह्वान हुए। इसका मतलब है कि औसतन हर दिन दिल्ली में 23 विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। किसी न किसी वजह से राजधानी की कोई न कोई सड़क किसी न किसी मार्च या आंदोलन की भेंट चढ़ जाती है। हैरान करने वाली बात यह है कि दिल्ली और एनसीआर में रहने वाले लोगों को अब इस अनचाहे ट्रैफिक से उसी तरह जूझना पड़ रहा है, जैसे वे इतने सालों से खराब हवा से जूझ रहे हैं। ये विरोध प्रदर्शन दिल्ली के लोगों के लिए और भी बड़ा सिरदर्द बन जाते हैं क्योंकि यहां ट्रैफिक जाम की समस्या कई अन्य कारणों से भी है।

 

चाहे वो अतिक्रमण हो या सड़कों पर चलने वाले अत्यधिक वाहन, चाहे वो सड़कों पर गड्ढे हों या भारी जलभराव, दिल्ली की कई सड़कों पर एक वाहन की औसत गति मात्र 10 किमी है। इसके अलावा जब दिल्ली पुलिस ने 40 सड़कों का सर्वे किया तो उसने कुल 117 जाम पॉइंट की पहचान की। वहां भी सबसे बुरे हालात रोहिणी, उत्तर-पश्चिम और बाहरी-उत्तरी जिलों में देखने को मिले।

 

अब दिल्ली में जाम सिर्फ विरोध प्रदर्शनों की वजह से नहीं है, नेताओं की नेतागिरी ने भी आम आदमी को बर्बाद कर दिया है। नेताओं को जनता की सेवा के लिए लाया जाता है, लेकिन समय-समय पर उनका वीआईपी अंदाज जनता को परेशान कर देता है। अगर राहुल गांधी का उदाहरण लें तो कुछ दिन पहले उन्होंने संभल जाने की जिद की। उनका तर्क था कि वे विपक्ष के नेता हैं, इसलिए उन्हें वहां जाने का अधिकार है। लेकिन उनके उस एक अधिकार की वजह से गाजियाबाद और गाजीपुर बॉर्डर पर दो से तीन घंटे लंबा जाम लग गया। पुलिस कहती रही कि वे आगे नहीं जा सकते, लेकिन राहुल गांधी भी अपने काफिले के साथ वहीं डटे रहे। अब वे चाहते तो थाने जाकर पुलिस से बात कर सकते थे, चाहते तो बीच सड़क से कहीं और जाकर पुलिस को समझा सकते थे। लेकिन बीच सड़क पर हुए हंगामे की वजह से आम आदमी जाम में फंसा रहा। जो वीडियो सामने आए हैं, उनमें कई एंबुलेंस भी वहां फंसी हुई दिखीं, कई लोगों की प्रतिक्रियाएं सामने आईं जो काफी गुस्से में दिखे। इतना ही नहीं गुस्साए लोगों की कांग्रेस कार्यकर्ताओं से हाथापाई भी हुई। यानी जब लोग घंटों जाम में फंसे रहे, तो उनका धैर्य भी टूट गया।

 

आज हर आम आदमी एक सवाल पूछना चाहता है- दिल्ली में विरोध प्रदर्शन के लिए कितनी जगहें हैं, रामलीला मैदान से लेकर जंतर-मंतर-राजघाट तक कई बड़े आंदोलन हुए हैं, लेकिन फिर भी सड़कें जाम हो जाती हैं और लंबा ट्रैफिक जाम लग जाता है क्योंकि उनका विरोध जताया जाता है? जिस दिन इस सवाल का जवाब मिल जाएगा, उस दिन दिल्ली को विरोध प्रदर्शन रूपी जाम से मुक्ति मिल जाएगी।

Comment / Reply From

Vote / Poll

क्या राजस्थान मे बेरोजगारी का मुद्दा खत्म हो चुका है ..

View Results
Yes
11%
No
89%

Talk to us?