
तनोट का रहस्य: जिसे पाकिस्तान हिला न सका – वो मंदिर!
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Chhavi
- May 1, 2025
रेत में छिपा चमत्कारी मंदिर
राजस्थान के थार रेगिस्तान में एक छोटा सा गांव है तनोट, और वहीं पर स्थित है तनोट माता मंदिर। ये मंदिर न सिर्फ एक धार्मिक स्थान है, बल्कि एक ऐसा चमत्कारिक स्थल भी है जिसने दो बार भारत को युद्ध में जीत दिलाने में रहस्यमयी भूमिका निभाई। कहते हैं कि इस मंदिर की शक्ति इतनी अद्भुत है कि दुश्मन के बम भी यहां आकर फटने से डरते हैं। 1965 की भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान ने इस इलाके में करीब 3000 बम गिराए थे, और उनमें से एक भी तनोट माता मंदिर के पास फटा नहीं। ये कोई कहानी नहीं, बल्कि सच्चाई है, जिसे न सिर्फ स्थानीय लोग, बल्कि भारतीय सेना के जवान भी मानते हैं। उस समय भारतीय सेना की एक छोटी टुकड़ी वहां तैनात थी, जो चारों ओर से दुश्मन से घिरी हुई थी। हालात इतने खराब थे कि मदद पहुंच पाना नामुमकिन लग रहा था। सबने मान लिया था कि अब वहां कोई नहीं बचेगा। लेकिन जब बम गिरने लगे, तो एक भी बम ना फटने का चमत्कार हुआ। सैनिकों ने बाद में बताया कि उन्हें सपने में माता आई थीं और उन्होंने कहा कि जो मंदिर के पास रहेगा, उसकी रक्षा वो स्वयं करेंगी। ये वही समय था जब युद्ध की दिशा ही बदल गई और मंदिर के साथ-साथ सैनिकों की जान भी बच गई।
जब आस्था बनी आखिरी उम्मीद
इस घटना के बाद तनोट माता मंदिर पर सेना का भरोसा और भी गहरा हो गया। BSF ने मंदिर की जिम्मेदारी खुद अपने हाथ में ले ली और वहां एक चौकी भी बना दी। लेकिन ये चमत्कार यहीं खत्म नहीं हुआ। कुछ सालों बाद, 1971 में एक और बड़ा युद्ध हुआ। इस बार पाकिस्तान ने राजस्थान के लोंगेवाला पोस्ट पर हमला किया, जो तनोट माता मंदिर के नजदीक ही है। भारतीय सेना के पास केवल 120 जवान थे, और उनके सामने पाकिस्तान की पूरी टैंक बटालियन खड़ी थी। हालात एक बार फिर वैसे ही थे—हथियार कम, मदद दूर, और दुश्मन भारी। लेकिन एक चीज थी जो इस बार भी सेना ने नहीं छोड़ी—वो थी आस्था। सैनिकों ने तनोट माता से प्रार्थना की और कहा कि वो अंत तक लड़ेंगे। रातभर युद्ध चला, दुश्मन के टैंक रेत में फंसते रहे, और बम एक बार फिर मंदिर के पास गिरकर निष्क्रिय हो गए। सुबह होते ही भारतीय वायुसेना ने हमला किया और दुश्मन को करारी शिकस्त दी।
सैनिकों की देवी बनी तनोट माता
इन दोनों युद्धों के बाद तनोट माता मंदिर न सिर्फ राजस्थान का, बल्कि पूरे देश का एक गौरव बन गया। यहां आज भी वो बम रखे गए हैं जो युद्ध के समय गिराए गए थे, लेकिन फटे नहीं। ये बम अब एक निशानी हैं—इस बात की कि कभी-कभी आस्था, विज्ञान और ताकत से भी आगे निकल जाती है। हर साल 16 दिसंबर को यहां विजय दिवस मनाया जाता है, जिसमें हजारों लोग आते हैं और उस ऐतिहासिक जीत को याद करते हैं। मंदिर की दीवारों पर उन जंगों की तस्वीरें और दस्तावेज भी लगे हुए हैं जो इस कहानी को और भी सजीव बना देते हैं। भारतीय सैनिकों के लिए ये सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि एक ऐसी जगह है जहां उन्हें हिम्मत और सुरक्षा का एहसास होता है। तनोट माता मंदिर में आज भी जवान पूजा करते हैं, वहां दीया जलाते हैं, और यकीन करते हैं कि माता उनका साथ देंगी। ये मंदिर अब एक आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक बन चुका है।
क्या ये चमत्कार था या संयोग?
आज भी लोग इस सवाल पर बहस करते हैं—क्या ये सब एक संयोग था, या वाकई माता की कृपा से दुश्मन के बम निष्क्रिय हो गए? क्या कोई मंदिर सैनिकों की जान बचा सकता है? या फिर ये सैनिकों की आस्था थी जिसने उन्हें अजेय बना दिया? इसका जवाब शायद किसी के पास न हो। लेकिन जो लोग तनोट माता मंदिर गए हैं, वो कहते हैं कि वहां कुछ अलग महसूस होता है। वहां की हवा में एक ऊर्जा है, एक शांति है, जो कहीं और नहीं मिलती। रेत में छिपा ये मंदिर आज भी उन चमत्कारों की गवाही देता है, जो युद्ध के मैदान में हुए थे। इतिहासकार भले इसे एक इत्तेफाक कहें, लेकिन सैनिकों के लिए ये आस्था का सवाल है। और जब तक आस्था है, तनोट माता मंदिर भी सेना के दिल में बसा रहेगा।
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