
महाराष्ट्र में सियासी हलचल तेज, शरद पवार और अजित पवार की मुलाकात पर नेताओं की प्रतिक्रिया का दौर शुरू
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Renuka
- March 23, 2025
महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया विवाद छिड़ गया है। शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत ने उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली प्रतिद्वंद्वी शिवसेना के नेताओं पर तीखा हमला किया है। राउत ने कहा- हम उन लोगों से कोई संपर्क नहीं रखते जो शिवसेना छोड़कर चले गए हैं। जैसे उन्होंने महाराष्ट्र को धोखा दिया और पीठ में छुरा घोंपा, हम उनके करीब भी नहीं जाएंगे। राउत का यह बयान शरद पवार (sharad pawar) और उनके भतीजे Ajit Pawar के बीच हुई मुलाकात के बाद आया है।
शरद पवार और Ajit Pawar की मुलाकात

शनिवार को पुणे के वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट में शरद पवार (sharad pawar) और Ajit Pawar की मुलाकात हुई। इस बैठक में दोनों नेताओं के अलावा एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल और दिलीप वाल्से पाटिल भी शामिल हुए। बैठक में चीनी उद्योग और किसानों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की गई। हालांकि, यह बैठक सामान्य रूप से एक अकादमिक बैठक थी, जिसमें कोई राजनीतिक चर्चा नहीं हुई। लेकिन फिर भी इस मुलाकात को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है।
मुलाकात के बाद संजय राउत का बयान

संजय राउत ने बैठक पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि शिवसेना (यूबीटी) के नेता उन लोगों से कोई संपर्क नहीं रखते जो पार्टी छोड़कर गए हैं। उनका आरोप था कि अजित पवार और उनके गुट ने महाराष्ट्र को धोखा दिया है। राउत ने यह भी कहा कि वे उन नेताओं से कभी नहीं मिलेंगे जिन्होंने शिवसेना को तोड़ा। उनका इशारा एकनाथ शिंदे के गुट की ओर था, जिन्होंने शिवसेना को विभाजित किया था।
इससे पहले, राउत ने शरद पवार द्वारा शिंदे को सम्मानित करने पर भी नाराजगी जताई थी। उन्होंने कहा था, “शरद पवार को उन लोगों से कोई संबंध नहीं रखना चाहिए जिन्होंने शिवसेना को विभाजित किया और राज्य को धोखा दिया।” राउत का यह बयान इस बात का संकेत था कि वे अपने पुराने सहयोगियों से भी किसी तरह की सहमति नहीं बनाना चाहते जो अब प्रतिद्वंद्वी गुट में शामिल हो गए हैं।
NCP की सुप्रिया सुले की प्रतिक्रिया

इसी बीच, ncp की कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले ने इस बैठक का बचाव किया। उन्होंने कहा कि यह एक सामान्य बैठक थी, जिसमें कोई राजनीति या राजनीतिक विचारधारा पर चर्चा नहीं की गई। उनका कहना था कि वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट में सभी दलों के लोग सदस्य हैं और इस बैठक का उद्देश्य सिर्फ चीनी उद्योग और किसानों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करना था। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस बैठक में कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं था और यह पूरी तरह से एक अकादमिक बैठक थी। सुप्रिया सुले का यह भी कहना था कि राजनीति में ऐसे मौके आते हैं जब विभिन्न लोग अपने अनुभवों और विचारों पर चर्चा करते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई राजनीतिक गठबंधन या विचारधारा पर चर्चा हो रही है। उन्होंने यह भी कहा कि वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट की गवर्निंग काउंसिल की बैठक में किसी प्रकार की सियासत नहीं की गई थी।
अजित पवार ने क्या कहा ?
अजित पवार ने भी इस बैठक को लेकर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, "हम सभी वीएसआई के सदस्य हैं और इस बैठक का उद्देश्य चीनी उद्योग और किसानों के लिए नए रास्ते खोजने पर था। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे तकनीकी मुद्दों पर भी चर्चा की गई।" उनका कहना था कि यह बैठक पूरी तरह से व्यापारिक और तकनीकी मुद्दों पर केंद्रित थी, और इसका कोई सियासी मकसद नहीं था।
नेताओं की प्रतिक्रिया का दौर
इसके अलावा, एनसीपी के नेता अमोल मटाले ने संजय राउत पर कटाक्ष करते हुए कहा कि पहले अपनी पार्टी की आंतरिक समस्याओं को सुलझाएं, फिर दूसरों की आलोचना करें। मटाले का इशारा शिवसेना (यूबीटी) की अंदरूनी स्थितियों की ओर था। उनका कहना था कि राउत को पहले अपनी पार्टी के मामलों को देखना चाहिए, क्योंकि दूसरों की आलोचना करने से पहले यह जरूरी है कि अपनी स्थिति पर ध्यान दिया जाए।
इस बीच, जयंत पाटिल के अजित पवार के गुट में शामिल होने की अफवाहें भी लंबे समय से चल रही थीं। हालांकि, पाटिल ने इन अफवाहों का खंडन किया है और स्पष्ट किया कि वे अजित पवार के गुट में शामिल नहीं हुए हैं। यह स्थिति इस बात का संकेत देती है कि महाराष्ट्र में सियासी समीकरण लगातार बदलते जा रहे हैं और हर नेता अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए नए तरीके अपना रहा है।

महाराष्ट्र की सियासत में उठा तूफान
Maharashtra की राजनीति में यह घटनाक्रम यह दर्शाता है कि यहां का राजनीतिक माहौल काफी उथल-पुथल से भरा हुआ है। एक ओर जहां शरद पवार और अजित पवार की मुलाकात से जुड़े आरोप-प्रत्यारोप जारी हैं, वहीं दूसरी ओर शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी के बीच रिश्ते और भी जटिल होते जा रहे हैं। संजय राउत का बयान और सुप्रिया सुले का बचाव दोनों ही इस बात का संकेत देते हैं कि आगामी दिनों में महाराष्ट्र की राजनीति में और भी हलचल देखने को मिल सकती है।
आखिरकार, यह देखना दिलचस्प होगा कि इस सियासी विवाद का क्या परिणाम निकलता है और क्या शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी के बीच के मतभेद राजनीति (Maharashtra politics) में नए बदलाव लाते हैं। इन सब घटनाओं से यह साफ है कि महाराष्ट्र की राजनीति में हर कदम को ध्यान से उठाना होता है, क्योंकि यहां हर राजनीतिक फैसला राज्य के भविष्य को प्रभावित कर सकता है।
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