
BRICKS 2025 : ब्रिक्स देशों की नई मुद्रा पर चर्चा
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Shweta
- February 1, 2025
BRICKS-2025 Discussion:ब्रिक्स (BRICS) समूह यानी ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका ग्लोबल इकॉनमी में अपनी स्थिति मजबूत कर रहे हैं। हाल ही में, ब्रिक्स देशों ने अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने और अपनी खुद की व्यापारिक मुद्रा लाने की संभावनाओं पर चर्चा की है। अमेरिका ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है, और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चेतावनी दी है कि यदि ब्रिक्स देश अमेरिकी डॉलर को छोड़कर कोई नई मुद्रा अपनाते हैं, तो अमेरिका उन पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है।
आधिकारिक मुद्रा बनाने की योजना
अब तक, ब्रिक्स देशों के पास कोई आधिकारिक "मुद्रा" बनाने की योजना नहीं है, लेकिन वे आपसी व्यापार में अपनी-अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं का उपयोग करने की कोशिश कर रहे हैं। इसका मतलब यह है कि यदि भारत रूस से तेल खरीदता है, तो डॉलर की बजाय भारतीय रुपये में भुगतान कर सकता है। इसी तरह, चीन ब्राजील से सोया खरीदते समय युआन का उपयोग कर सकता है।रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों ने रूस को डॉलर के बजाय वैकल्पिक मुद्राओं का उपयोग करने पर मजबूर किया है। और साथ ही रूस और चीन पहले से ही अपने व्यापार में डॉलर से हटकर स्थानीय मुद्राओं का उपयोग कर रहे हैं।
ब्रिक्स की डॉलर से अलग होने की कोशिश क्यों

दरअसल अमेरिकी डॉलर लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय व्यापार का प्रमुख माध्यम रहा है। इसका मतलब यह है कि ज्यादातर देशों को अंतरराष्ट्रीय लेन-देन करने के लिए अमेरिकी बैंकों और डॉलर पर निर्भर रहना पड़ता है। इससे अमेरिका को अन्य देशों की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने की ताकत मिलती है।ब्रिक्स देश इस स्थिती को बदलना चाहते हैं। उनके अनुसार,यदि वे अपनी खुद की मुद्रा या कोई वैकल्पिक भुगतान व्यवस्था तैयार कर लेते हैं, तो वे अमेरिकी प्रतिबंधों से बच सकते हैं और अपने व्यापार को अधिक स्वतंत्र बना सकते हैं।
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अमेरिकी अर्थव्यवस्था को चुनौती
अमेरिका इस पहल को एक बड़े खतरे के रूप में देख रहा है, क्योंकि यदि ज्यादा देश डॉलर के बजाय किसी अन्य मुद्रा का उपयोग करने लगें, तो डॉलर की मांग घट जाएगी और अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर negative असर पड़ सकता है।...हालांकि, कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि ब्रिक्स मुद्रा अमेरिकी डॉलर को तुरंत चुनौती नहीं दे पाएगी। इसके कुछ कारण हैं। जैसे अस्थिरता ब्रिक्स देशों की अर्थव्यवस्थाएं बहुत अलग-अलग स्तरों पर हैं, जिससे एक सामान्य मुद्रा बनाना मुश्किल होगा।दूसरा इसका एहम कारण है आपसी विश्वास की कमी,चीन और भारत के बीच तनावपूर्ण संबंध हैं, जो किसी भी साझा वित्तीय प्रणाली के लिए एक चुनौती हो सकता है। वही इसका तीसरा बड़ा कारण है अमेरिकी डॉलर की मजबूती दुनिया के अधिकांश देश पहले से ही अमेरिकी डॉलर को सुरक्षित और स्थिर मानते हैं, इसलिए वे जल्दी से ब्रिक्स मुद्रा को स्वीकार नहीं करेंगे।
अमेरिकी राष्ट्रपति का ब्रिक्स के खिलाफ बयान

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुले तौर पर कहा है कि यदि ब्रिक्स देश कोई नई मुद्रा लाने की कोशिश करते हैं, तो अमेरिका उनके खिलाफ सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाएगा और उनके उत्पादों पर 100% तक टैरिफ यानी (आयात शुल्क) लगा सकता है।हालांकि, रूस ने ट्रंप की चेतावनी को खारिज कर दिया है। क्रेमलिन के प्रवक्ता ने कहा कि ब्रिक्स का उद्देश्य नई मुद्रा बनाना नहीं, बल्कि आपसी व्यापार और निवेश को बढ़ावा देना है।ब्रिक्स देशों का लक्ष्य अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करना है, लेकिन फिलहाल वे किसी साझा मुद्रा की ओर बढ़ते नहीं दिख रहे हैं। अमेरिका इस पहल को गंभीरता से ले रहा है और इसका विरोध कर रहा है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ब्रिक्स देश अपनी रणनीति को और मजबूत कर पाते हैं या नहीं।और इस मुद्दे पर आगे होने वाली चर्चाओं और निर्णयों पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी रहेंगी।
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