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शिवजी की कृपा से मिलेगा संतान प्राप्ति का सुख

शिवजी की कृपा से मिलेगा संतान प्राप्ति का सुख

सोमवार व्रत की विधि


सोमवार के दिन शिव मंदिर जाकर शिव परिवार की धुप,दीप ,नैवेद्य,फल, फूल से शिव परिवार की पूजा करें सर्वप्रथम शिवलिंग पर पंचामृत अर्पित करें अगर
किसी कारण वश आप पंचामृत अर्पित नहीं कर सकते तो इस स्तिथि में कच्चे दूध में जल मिलाकर शिवलिंग पर अर्पितकरें इसके पश्चात शिवलिंग पर बेल पत्र अर्पित करें और शाम के समय अपना उपवास खोले सोमवार के दिन नामक का सेवन वर्जित मन गया है इसलिए उपवास खोलते समय किसी मीठी चीज के साथ उपवास खोलें सोमवार का दिन क्यूंकि चन्द्रमा से भी प्रभावित है इसलिए सोमवार के दिन दूध,चीनी,चावल,कच्चा कपूर का दान करना बहुत शुभ माना गया है| इस व्रत के प्रभाव से बहुत शुभ माना गया है| इस व्रत के प्रभाव से घर में खुशहाली आती है,रोग दूर होते हैं, अगर किसी व्यक्ति का विवाह नहीं हो रहा तो इस स्तिथि में उस मनुष्य को सोलह सोमवार के व्रत रखने चाहिए इस व्रत को करने से भगवान महादेव की कृपा से शीघ्र विवाह के योग बनते हैं और मनचाहे वर और कन्या की प्राप्ति होती है|

 

सोमवार व्रत कथा

एक बार किसी नगर में एक धनवान साहूकार रहता था उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी| लेकिन उस साहूकार के कोई संतान नहीं थी जिससे वो बहुत दुखी रहता था| संतान प्राप्ति के लिए साहूकार हर सोमवार को उपवास रखता था सोमवार को संध्या काल में शिव मंदिर जाकर पूजा अर्चना किया करता था पर निःसंतान होने की वजह से वो और उसकी पत्नी हमेशा परेशान रहते थे| उसकी भक्ति देखकर एक दिन माँ पार्वती ने शिवजी से कहा की ये साहूकार हमेशा आपकी पूजा पूर्ण श्रद्धा -भक्ति से करता है आप इसकी मनोकामना पूर्ण क्यों नहीं करते| तब शिवजी ने कहा ' हे पार्वती ' ये संसार एक कर्म भूमि है और सभी प्राणियों को अपने कर्मानुसार फल भोगना पड़ता है और जिसके भाग्य में जो लिखा है उसे वही मिलता है इस साहूकार के भाग्य में संतान सुख नहीं है| और यही एक कारण है की ये साहूकार नित्य दुखी रहता है तब पार्वती जी के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को संतान प्राप्ति का वरदान दिया पर साथ ही ये भी कहा की साहूकार की संतान मात्र 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगी|


साहूकार को संतान सुख की प्राप्ति

जब शिवजी पार्वती जी से ये बात कर रहे थे तब ये सभी बातें साहूकार भी सुन रहा था इन सब बातों से उसे न तो किसी प्रकार का शोक हुआ और ना ही ख़ुशी हुई पर वो सदा की तरह ही शिव मंदिर में पूजा -अर्चना करता रहा कुछ समय के बाद साहूकार को संतान के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई उसके जन्म पर घर में उत्सव का माहौल था पर कहीं न कहीं साहूकार इस बात से अवगत था की उसके पुत्र की आयु मात्र 12 वर्ष ही है| जब साहूकार का पुत्र 12 वर्ष का हुआ तब साहूकार ने अपने पुत्र के मामा को बुलाकर कहा की आप इसे काशी जी ले जाइये जिससे की ये अपनी आगे की शिक्षा पूरी कर सके| साथ ही साहूकार ने पुत्र के मामा को बहुत सा धन भी दिया और कहा की रास्ते में आप लोग जहाँ भी रुके वहाँ दान-दक्षिणा ,हवन जरूर कराएं|

दोनों मामा भांजे काशी नगरी के लिए चल दिए और रास्ते में यज्ञ कराते हुए और दान - दक्षिणा देते हुए जा रहे थे| रास्ते में एक शहर पड़ा जहाँ एक राजकुमारी का विवाह हो रहा था पर जो वर था वो एक आँख से काना था वर पक्ष के लोग ऐसा व्यक्ति तलाश रहे थे जिसके साथ राजकुमारी का विवाह संबंधी कार्य पूर्ण हो जाएँ जब वर के पिता ने साहूकार के पुत्र को देखा तो उसके मामा से कहा की आप थोड़े समय के लिए अपना पुत्र दे दीजिये जिससे हम विवाह की रीत रिवाज पूरे कर सकें इसके बदले में मैं आपको बहुत सा धन दूँगा इसके बाद लड़के को वर के वस्र पहनाये गए और राजकुमारी से उसका विवाह हो गया|

जब साहूकार के पुत्र को इस बात का पता लगा तो उसने राजकुमारी के दुपट्टे पर लिख दिया की तुम्हें जिसके साथ विदा करेंगे वो तुम्हारा पति नहीं है और वो एक आंख से काना है| इसी सच को छिपाने के लिए तुम्हारा विवाह मुझसे किया गया है और मैं अपने मामा के साथ काशी पड़ने जा रहा हूँ जब राजकुमारी ने अपने दुपट्टे पर लिखी ये बात पड़ी तो उसने ये बात अपने माता - पिता को बताई और बारात वापस चली गयी |

इधर साहूकार का बेटा और उसका मामा काशी पहुंच गए| लड़के ने अपनी शिक्षा शुरू की देखते ही देखते वो दिन भी आया जब साहूकार का लड़का 12 वर्ष का हो गया उस दिन उसके मामा ने हवन का आयोजन किया हुआ था| साहूकार के पुत्र ने कहा की आज मेरी तबियत ठीक नहीं है और वो कमरे आराम करने चला गया थोड़ी देर के बाद जब लड़के का मामा कमरे में आया तब उसने देखा की लड़के की मृत्यु हो गयी है|

उसने सोचा कि अगर मैं अभी रोना शुरू कर दूंगा तो हवन बीच में ही रुक जाएगा इसलिए पहले ब्राह्मण भोज और हवन खत्म हो जाए वैसे भी ईश्वर की मर्जी के आगे किसकी चलती है ऐसा सोचकर लड़के के मामा ने हवन का कार्य पूर्ण किया और सबके जाने के बाद विलाप करना शुरू किया तभी आकाश मार्ग से शिवजी -पार्वतीजी होकर गुजर रहे थे| उन्होंने जब लड़के के मामा को विलाप करते हुए सुना तो पार्वती जी ने कहा की आप इस लड़के को जीवन दान दीजिए|

पर शिवजी ने कहा की इसकी आयु इतनी ही थी पर पार्वती जी की आग्रह पर साहूकार के पुत्र को शिवजी ने जीवन दान दिया और शिक्षा पूरी करने के बाद लड़का अपने मामा के साथ अपने नगर को चल दिया चलते हुए दोनों उसी नगर में पहुंचे जहाँ उसका विवाह राजकुमारी के साथ हुआ था तब राजकुमारी के पिता ने साहूकार के लड़के को पहचान लिया और उनकी बहुत खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया|

इधर साहूकार और उसकी पत्नी अपने घर की छत पर यही प्रण कर के बैठे थे अगर उनका पुत्र सही सलामत आ जाएगा तो ही वो नीचे आएंगे नहीं तो छत से कूदकर अपने प्राण त्याग देंगे| पर जब साहूकार को अपने पुत्र और पुत्र वधु के आने का समाचार मिला तब वो बहुत प्रसन्न हुआ और उसने शिवजी की स्तुति की उसी रात को शिवजी ने साहूकार को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा की मैंने तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न होकर तुम्हारे पुत्र को लम्बी आयु का वरदान दिया है| और इस तरह से साहूकार के सभी कष्टों को शिवजी ने दूर किया| अतः जो भी मनुष्य सोमवार के दिन इस कथा को पढ़ता है और व्रत रखता है उसकी सभी मनोकामनाएं शिवजी पूर्ण करते है|

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सोमवार की आरती


ओम जय शिव ओमकारा,स्वामी हर शिव ओमकारा || ब्रह्मा ,विष्णु ,सदाशिव अर्द्धांगीधारा ||

ओम जय शिव ओमकारा||


एकानन, चतुरानन,पञ्चानन राजे| हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ||

ओम जय शिव ओमकारा ||


दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे| तीनो रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे ||

ओम जय शिव ओमकारा ||


अक्षमाला वन माला मुंडमाला धारी | त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी ||

ओम जय शिव ओमकारा ||


श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे | सनकादिक ब्रह्मादिक भूतादिक संगे ||

ओम जय शिव ओमकारा ||


कर के मध्य कमंडलु,चक्र त्रिशुलधर्ता|| जग करता जगहर्ता जगपालन करता ||

ओम जय शिव ओमकारा|

ब्रह्मा ,विष्णु,सदाशिव जानत अविवेका|| प्रणवाक्षर के मध्य ,ये तीनो एका ||

ओम जय शिव ओमकारा ||

त्रीगुण शिव की आरती जो कोई नर गावे|| कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे ||

ओम जय शिव ओमकारा ||

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