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जाति जनगणना पर राहुल गांधी का समर्थन, लेकिन सरकार से 4 मांगें

जाति जनगणना पर राहुल गांधी का समर्थन, लेकिन सरकार से 4 मांगें

जाति जनगणना पर राहुल गाँधी ने कहा केंद्र सरकार  जल्द से जल्द इसकी टाइमलाइन घोषित करें 

 

Cast Census: देश में जातिगत जनगणना कराने की मोदी सरकार ने घोषणा कर दी है। इसे जनगणना के साथ ही शुरू करने का फैसला किया गया है। केंद्र सरकार के इस फैसले का विपक्ष ने भी स्वागत किया है। मोदी सरकार के जाति जनगणना पर राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। हालांकि, उन्होंने कुछ अहम मांगें भी सरकार के समक्ष रखीं।

 

सरकार के फैसले पर कांग्रेस की मुहर

 

जाति जनगणना (Cast Census) पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि जाति जनगणना करने का सरकार का फैसला सराहनीय है। कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने कहा, “हमने संसद में साफ कहा था कि जाति आधारित जनगणना कराएंगे और 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को खत्म करेंगे। अब जब केंद्र सरकार ने जाति जनगणना कराने का ऐलान किया है, तो हम इसे समर्थन देते हैं। लेकिन हम यह भी जानना चाहते हैं कि ये जनगणना कब कराई जाएगी।”

 

जाति जनगणना को बताया सही दिशा

 

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पार्टी मुख्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के जाति जनगणना लाने का फैसला कांग्रेस के गंभीरता से चलाए गए अभियान के दबाव में लिया गया है और कांग्रेस इस फैसले का समर्थन करती है। आगे कहा कि हम मोदी जी की इस बात से सहमत हैं कि देश में सिर्फ चार जातियां हैं। लेकिन इन चारों के भीतर भी कौन कहां खड़ा है, यह जानने के लिए जातिगत आंकड़े जरूरी हैं। जाति जनगणना पहला कदम है, लेकिन हमें इससे आगे भी बढ़ना होगा। राहुल गांधी ने सरकार के फैसले की तारीफ की।

 

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने केंद्र सरकार से Cast Census को लेकर चार बड़ी मांगें की हैं:


1. राहुल गांधी ने कहा कि सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि जनगणना कब और कैसे कराई जाएगी, और केंद्र सरकार को जल्द से जल्द इसकी टाइमलाइन घोषित करनी चाहिए।

2. सरकार को तेलंगाना मॉडल को अपनाना चाहिए। दरअसल, राहुल गांधी ने कहा कि केंद्र सरकार को तेलंगाना सरकार की तरह तेज, पारदर्शी और समावेशी जाति सर्वे मॉडल अपनाने चाहिए।

3. राहुल गांधी ने दोहराया कि जातिगत आंकड़ों के आधार पर 50 फीसदी आरक्षण की वर्तमान संवैधानिक सीमा को हटाना जरूरी होगा ताकि न्यायसंगत हिस्सेदारी सुनिश्चित की जा सके।

4. राहुल गांधी ने कहा कि सरकारी संस्थानों की तरह ही निजी संस्थानों में भी आरक्षण लागू होना चाहिए। सामाजिक न्याय केवल सरकारी नौकरियों तक सीमित नहीं होना चाहिए।

 

जाति जनगणना पर विपक्ष एकजुट

 

मोदी सरकार के फैसले पर कई नेताओं ने प्रतिक्रिया दी है। जाति जनगणना के फैसले को लेकर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक्स पर लिखा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लगातार जाति आधारित जनगणना की मांग उठाई थी। आज मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना कराने की घोषणा की है। ये सही कदम है जिसकी हम पहले दिन से मांग कर रहे थे। कांग्रेस सांसद चमाला किरण कुमार रेड्डी ने कहा, "यह पहल तेलंगाना राज्य से आई है, जिसने हाल ही में जाति जनगणना की है। भारत जोड़ो यात्रा का संचालन करने वाले राहुल गांधी ने जाति जनगणना की आवश्यकता को देखा। हम इसे स्वीकार करने के लिए नरेंद्र मोदी जी और कैबिनेट मंत्रियों के आभारी हैं। जाति जनगणना के फैसले पर कांग्रेस नेता उदित राज ने कहा, "मैं इस फैसले का स्वागत करता हूं। यह कांग्रेस की जीत है। आखिरकार मोदी सरकार को जाति जनगणना करानी पड़ रही है।" सरकार के फैसले पर राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने कहा, "यह हमारी 30 साल पुरानी मांग थी। यह हमारी, समाजवादियों और लालू यादव की जीत है।"

 

1931 में हुई थी आखिरी जाति जनगणना

 

भारत में अंतिम बार पूर्ण जाति जनगणना 1931 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान हुई थी। उस समय देश में कुल 4,147 जातियों की गणना की गई थी, और जनगणना में ओबीसी गिनती 52 प्रतिशत थी। 1941 में भी जाति आधारित आंकड़े एकत्र किए गए, लेकिन इन्हें कभी प्रकाशित नहीं किया गया। 1951 के बाद अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आबादी के आंकड़े ही एकत्रित और प्रकाशित किए गए।

 

2011 में जाति जनगणना की मांग

 

2010 में यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल जैसे दलों ने 2011 की जनगणना में जाति जनगणना को शामिल करने की मांग उठाई थी। इन सभी दलों की मांग का आधार ओबीसी समुदाय था। लेकिन इस मुद्दे पर कांग्रेस और तत्कालीन सरकार भारतीय जनता पार्टी ने अपना रुख स्पष्ट नहीं किया था।

 

जाति जनगणना (Cast Census) एक ऐसा कदम है जिसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देना है, साथ ही नीति निर्माण में पारदर्शिता लाना है। जो समाज के कमजोर वर्गों, विशेषकर ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों की सही स्थिति का पता चल सकेगा। लंबे समय से इसकी मांग विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों द्वारा की जाती रही है। 

 

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