
राजनीतिक संकट जारी: मणिपुर में राष्ट्रपति शासन 2026 तक बढ़ाया गया
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Shweta
- July 25, 2025
मणिपुर में जारी राजनीतिक और जातीय संकट के चलते एक बार फिर राष्ट्रपति शासन (President Rule in Manipur) की अवधि को छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया है। अब यह 13 फरवरी 2026 तक लागू रहेगा। यह लगातार दूसरी बार है जब मणिपुर में राष्ट्रपति शासन का विस्तार (Manipur President Rule Extended) किया गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि राज्य में हालात अब भी सामान्य नहीं हुए हैं और केंद्र सरकार (Central Rule in Manipur) की नजर में वहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करना अभी जल्दबाजी होगी।
क्यों बढ़ाना पड़ा राष्ट्रपति शासन?
केंद्र सरकार ने यह निर्णय ऐसे समय में लिया है जब मणिपुर में कानून व्यवस्था और शांति की स्थिति पूरी तरह बहाल नहीं हो सकी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह प्रस्ताव लोकसभा में पेश किया जिसे संसद ने मंजूरी दी। यह विस्तार 13 फरवरी 2025 को लगाए गए राष्ट्रपति शासन का ही अगला चरण है, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने इस्तीफा दे दिया था।
हालांकि भाजपा को विधानसभा में बहुमत प्राप्त है, लेकिन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद पार्टी नया मुख्यमंत्री तय नहीं कर सकी। इस राजनीतिक गतिरोध ने राज्य को संवैधानिक संकट में डाल दिया, जिसके चलते मणिपुर में राष्ट्रपति शासन (President Rule in Manipur) लागू करना अपरिहार्य हो गया।
जातीय हिंसा: मणिपुर की स्थिरता में सबसे बड़ी बाधा
मई 2023 से मणिपुर मीतेई और कुकी समुदायों के बीच गहरे जातीय संघर्ष से जूझ रहा है। अब तक इस हिंसा में 260 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग अभी भी राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं। इस सांप्रदायिक टकराव ने पूरे राज्य को अस्थिर कर दिया है। सरकार और सुरक्षाबलों को अब भी कई इलाकों में शांति बनाए रखने के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ रहा है।
हालांकि केंद्र की कुछ कार्रवाइयों के बाद हालात में थोड़ा सुधार जरूर हुआ है, लेकिन अब भी कई क्षेत्रों में असुरक्षा और तनाव बना हुआ है। असामाजिक तत्व सक्रिय हैं, जिससे केंद्र सरकार (Central Rule in Manipur) की आवश्यकता दोहराई जा रही है।

केंद्र सरकार की रणनीति और प्राथमिकताएं
मणिपुर में केन्द्रीय शासन (Central Rule in Manipur) को विस्तार देने के साथ ही केंद्र सरकार ने यह साफ किया है कि वह राज्य में स्थायित्व, अवैध हथियारों पर नियंत्रण और विस्थापित लोगों के पुनर्वास को प्राथमिकता दे रही है। सरकार का लक्ष्य है कि 2025 के अंत तक राहत शिविरों को बंद किया जाए और दोनों समुदायों के बीच विश्वास बहाली का माहौल तैयार किया जाए।
इसके अतिरिक्त, केंद्र अगले विधानसभा चुनाव की संभावनाओं को भी परख रहा है, लेकिन तब तक चुनी हुई सरकार को बहाल करना उसे अनुचित और जल्दबाजी भरा कदम लगता है।
भाजपा के लिए राजनीतिक संकट
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन का विस्तार (Manipur President Rule Extended) होने का असर भाजपा की राज्य इकाई पर भी पड़ रहा है। स्थानीय भाजपा नेता लगातार केंद्र से यह आग्रह कर रहे हैं कि राज्य में लोकतांत्रिक सरकार को बहाल किया जाए। लेकिन केंद्र इस मुद्दे पर अभी सतर्कता बरत रहा है।
वहीं दूसरी ओर, कुकी-ज़ो समुदाय के 10 विधायक चाहते हैं कि जब तक उनकी अलग प्रशासन की मांग (जैसे Union Territory) पर कोई निर्णय नहीं होता, तब तक राज्य में मणिपुर में राष्ट्रपति शासन (President Rule in Manipur) जारी रहना चाहिए। यह दर्शाता है कि राज्य में राजनीतिक सहमति बनाना अभी भी एक बड़ी चुनौती है।
राष्ट्रपति शासन: कानूनी आधार और मणिपुर का इतिहास
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत, जब किसी राज्य में संवैधानिक व्यवस्था विफल हो जाती है, तब केंद्र सरकार राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है। यह शासन प्रारंभ में छह महीने के लिए होता है और संसद की मंजूरी से अधिकतम तीन वर्षों तक बढ़ाया जा सकता है।
मणिपुर का मामला इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 11वीं बार है जब यहां राष्ट्रपति शासन लागू हुआ है जो देश में किसी भी राज्य के लिए सबसे अधिक है। इससे राज्य की राजनीतिक अस्थिरता का इतिहास भी उजागर होता है।
आगे का रास्ता
मणिपुर में बार-बार राष्ट्रपति शासन (President Rule in Manipur) का विस्तार इस बात का संकेत है कि राज्य में हालात अब भी चिंताजनक हैं। राजनीतिक गतिरोध, सामुदायिक अविश्वास और हिंसा ने लोकतंत्र की प्रक्रिया को थाम दिया है।
अगर केंद्र सरकार वास्तव में मणिपुर को स्थायित्व की ओर ले जाना चाहती है, तो उसे सामूहिक संवाद, पुनर्वास, और अवैध हथियारों पर सख्ती जैसे मुद्दों पर प्राथमिकता देनी होगी। तभी मणिपुर एक बार फिर लोकतंत्र की मुख्यधारा में लौट सकेगा।
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