
कब है जावित्पुत्रिका व्रत 2025? जानें शुभ मुहूर्त और कथा
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Manjushree
- September 13, 2025
जावित्पुत्रिका व्रत 2025 यानी जितिया व्रत 14 सितंबर भाद्रपद मास का अष्टमी तिथि को है। जावित्पुत्रिका व्रत माताएं संतान की दीर्घायु और मंगलकामना के लिए करती हैं। जावित्पुत्रिका व्रत मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और बंगाल में रखा जाता है।
जावित्पुत्रिका व्रत 2025 शुभ मुहूर्त
जावित्पुत्रिका व्रत 2025 रविवार 14 सितंबर को अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की दिन प्रातः 8:51 बजे आरंभ होकर 15 सितंबर सोमवार को प्रातः 5:36 बजे समाप्त होगी। रविवार को सूर्योदय से पहले महिलाएं ओठगन करेंगी और सोमवार को प्रातः 6:27 बजे के बाद व्रत खोलेंगी। इस व्रत से जुड़े कुछ नियम भी हैं, इसी के बारे में आज हम आपको बताएंगे।
जावित्पुत्रिका व्रत पूजा विधि
- जावित्पुत्रिका व्रत शुरू करने से एक दिन पहले नहाय-खाय करना चाहिए। इस साल 13 सितंबर को नहाय खाय है। नहाय-खाय के दिन सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। इस दिन खाना बिना प्याज और लहसुन का बनाना चाहिए।
- मुख्य रूप से इस दिन महिलाएं मरुवा की रोटी या मीठा ठेकुआ और नोनी का साग, खीर बनाकर ग्रहण करती हैं। नहाय-खाय की थाली मिष्ठान्न और ठेकुआ के बिना अधूरी मानी जाती है। ठेकुआ न सिर्फ स्वादिष्ट होता है बल्कि पर्व का पारंपरिक प्रसाद भी है। इसके साथ ही दही और चूड़ा भी खाया जाता है।
- जितिया व्रत के दिन सुबह नहाकर पूजा स्थल की साफ-सफाई कर लेनी चाहिए। जावित्पुत्रिका व्रत यानी जितिया का व्रत निर्जला बिना पानी पिए रखा जाता है। शाम को माता जितिया की पूजा और व्रत कथा का पाठ करना चाहिए।
- जावित्पुत्रिका व्रत का पारण नवमी तिथि पर किया जाता है। पारण के दौरान मडुआ की रोटी और साग खाया जाता है। कुछ महिलाएं इस दिन झींगा मछली भी खाती हैं। व्रत के पारण के पहले महिलाओं को पंडित को कपड़े, फल, मिठाई और अनाज दान देना चाहिए।
जावित्पुत्रिका व्रत कथा
इस व्रत में भगवान श्रीगणेश, माता पार्वती और शिवजी की पूजा होती है। शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा कर कथा सुननी चाहिए। पूजा का बाद जावित्पुत्रिका व्रत में एक सियारन की कथा सुनी जाती है।
जीवित्पुत्रिका व्रत में चील और सियारिन की कथा
कथा शुरू होती है वन से जहां सेमर के पेड़ पर एक चील रहती थी। पास की झाड़ी में एक सियारिन भी रहती थी, दोनों आपस में दोस्त थीं। चिल्हो सियारिन से इतना प्यार करती थी कि वो जो कुछ भी खाने को लेकर आती थी, उसमें से सियारिन के लिए जरूर देती। इस तरह दोनों हंसी खुशी दिन बिता रहे थे। एक् बार वन के पास गांव में औरतें जितिया पूजा की तैयारी कर रही थीं। चिल्हो ने उसे बड़े ध्यान से देखा और अपनी सखी सियारो को भी बताया। फिर दोनों सहेलियों ने तय किया कि वे भी यह व्रत करेंगी। सियारो और चिल्हो ने जिउतिया का व्रत रखा, बड़ी निष्ठा और लगन से मंगल कामना करके पूरे दिन निर्जला व्रत रहीं। मगर रात होते ही सियारिन को भूख प्यास सताने लगी। जब बर्दाश्त न हुआ तो जंगल में जाके उसने मांस और हड्डी पेट भरकर खाया। चिल्हो ने हड्डी चबाने के कड़-कड़ की आवाज सुनी तो पूछा कि यह कैसी आवाज है। सियारिन ने कह दिया- बहन भूख के मारे पेट गुड़गुड़ा रहा है यह उसी की आवाज है। लेकिन चिल्हों ने सियारिन का झूठ पकड़ लिया। उसने सियारिन को खूब लताड़ा कि जब व्रत नहीं हो सकता तो संकल्प क्यों लिया था। चिल्हो रात भर भूखे प्यासे रहकर व्रत पूरा किया।
अगले जन्म में दोनों मनुष्य रूप में राजकुमारी बनकर सगी बहनें हुईं। सियारिन बड़ी बहन हुई और उसकी शादी एक राजकुमार से हुई। चिल्हो छोटी बहन हुई उसकी शादी उसी राज्य के मंत्रीपुत्र से हुई। बाद में दोनों राजा और मंत्री बने। सियारिन के जो भी बच्चे होते वे मर जाते, जबकि चिल्हो के बच्चे स्वस्थ और हट्टे-कट्टे रहते। इससे उसे जलन होने लगी। उसने उन्हें मारने की सोची, उनका सिर कटवाकर डब्बे में बंद करा दिया पर वह शीश मिठाई बन जाती और बच्चों का बाल तक बांका न होता। इस तरह सियारन की बहन के बच्चों और उसके पति को मारने की कोशिश विफल हो गई। अगले जन्म में चील शीलावती और सियारिन कर्पूरावतिका बनीं। शीलावती ने व्रत का पुण्य पाया और सात पुत्रों की मां बनीं, जबकि कर्पूरा को संतान सुख नहीं मिला। आखिरकार दैव योग से उसे भूल का आभास हुआ। उसने क्षमा मांगी और बहन के बताने पर जीवित पुत्रिका व्रत विधि विधान से किया तो उसके पुत्र भी जीवित रहे।
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