
कर्म फलदाता शनि : कैसे करें शनि की पूजा और क्या है शनि की पूजा में दान का विधान ?
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Neha
- February 24, 2025
हम सभी की कुंडली में शनि का एक विशेष स्थान है। ज्योतिष में अगर कोई मनुष्य किसी गृह से सबसे सबसे ज्यादा डरता है, तो उस गृह का नाम है शनि। पर क्या आप जानते हैं शनि कौन हैं? शनि के कार्य क्या हैं? बहुत से लोगों में ये भ्रांतियां हैं कि शनि सिर्फ तकलीफ देता है, चोट पहुंचता है। यही वजह है कि शनि का नाम सुनते ही हमारे मन में एक अजीब सा डर या वहम पैदा हो जाता है। लेकिन शनि इतना घातक और अशुभ भी नहीं है जितना हम सभी बिना जाने-समझे मान लेते हैं। क्या आप जानते हैं कि शनि कर्म फलदाता हैं। शनि मोक्ष देने वाला ग्रह है। जहां सौर मंडल का पहला ग्रह सूर्य है, वहीं सौर मंडल का आखिरी ग्रह सूर्य पुत्र शनि देव है। जीवन की शुरुआत जहां सूर्य से मानी गई है, वहीं जीवन का अंत शनिदेव से होता है।
शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या जीवन के शुरुआती दौर में देती है तकलीफें
कुंडली में शनि मोक्ष का ग्रह भी माना गया है। लेकिन आज भी शनि से जुड़ी बहुत सी भ्रांतियां लोगों में हैं। शनि का नाम सुनकर हमारे मन-मस्तिष्क में एक अजीब सा डर पैदा हो जाता है और हो भी क्यों न, जब भी शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या शुरू होती है, तभी मनुष्य को रोज़गार, शारीरिक, मानसिक और यहां तक कि वैवाहिक जीवन में भी कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। शनि की साढ़ेसाती का सामना प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में कभी न कभी करना ही पड़ता है। ये साढ़ेसाती जब शुरू होती है, तब आपके जीवन के शुरुआती दौर में बहुत सी तकलीफ़ देती है, जैसे- रोजगार की समस्या होना, आपको शारीरिक और मानसिक पीड़ा का अनुभव होना, आपके वैवाहिक जीवन में उथल-पुथल, लड़ाई-झगड़े होना, इसके अलावा कई बार इस बात का एहसास होना कि आप इस दुनिया में बिल्कुल अकेले हैं। पर ये अकेलापन कभी-कभी आपको अच्छा भी लग सकता है। आप धार्मिक होने लगते हैं, पर ये निर्भर करता है कि आपकी कुंडली में शनि कहां पर और किस घर में विराजमान हैं।
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कौन हैं शनि, कैसे हुआ जन्म ?
हमने ये तो जान लिया कि शनि कौन हैं? लेकिन शनि देव का जन्म कैसे हुआ? शनि देव की मां कौन हैं? इस बात से बहुत लोग अनभिज्ञ हैं। तो आज हम आपको इस बारे में जानकारी देंगे, साथ ही आपको बताएंगे उनके जन्म से जुड़ी कुछ ऐसी बातें, जिनके बारे में शायद आपको अभी तक जानकारी नहीं हो।

1] प्राचीन काल में प्रजापति दक्ष की पुत्री थी, जिसका नाम संज्ञा था। संज्ञा का विवाह सूर्यदेव से हुआ था, पर सूर्यदेव का तेज़ इतना अधिक था कि संज्ञा सूर्यदेव के पास अपनी छाया को छोड़कर चली गई थी। ऐसा कहा जाता है कि संतान प्राप्ति के लिए छाया ने बहुत वर्षों तक निराहार रहकर शिव की आराधना की थी, जिससे उनका शरीर पूर्ण रूप से श्यामल वर्ण का हो गया था। इससे प्रसन्न होकर शिव ने उनको आशीर्वाद दिया और छाया को पुत्र की प्राप्ति हुई, पर क्योंकि छाया लम्बे समय तक निराहार रही थीं, तो उनका पुत्र भी श्यामवर्ण अर्थात् काला पैदा हुआ, जिसे देखकर सूर्यदेव ने उन्हें अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया और तब छाया ने सूर्य का घर छोड़ दिया और तभी से शनि और सूर्य के बीच एक विद्रोह का भाव उत्पन्न हो गया। पर एक सत्य यह भी है कि शनि सूर्य के पुत्र तो हैं, पर सूर्य ने शनि को कभी उन्हें आपने पुत्र नहीं माना। जब आगे चलकर शनि को सूर्य के उनके पिता होने का सच मालूम हुआ, तबसे पिता और पुत्र के बीच विरोध की भावना तो है, पर ये भी सत्य है कि सूर्य और शनि के बीच पिता-पुत्र का संबंध है। इसलिए जहां शनि और सूर्य कि युति होती है, वहां अक्सर झगड़े देखे जाते हैं। इसके अलावा बहुत से धार्मिक ग्रंथों में ऐसा विवरण मिलता है कि पवन पुत्र हनुमान जी की आराधना करने से व्यक्ति अपनी साढ़ेसाती के काल में शनि की पीड़ा से बचा रह सकता है।
2] ज्योतिष में शनि का स्थान ?
ज्योतिष में शनि को न्यायधीश का स्थान प्राप्त है। आमतौर पर शनि को क्रूर ग्रह मन गया है। शनिदेव व्यक्ति को उनके कर्मों के आधार पर ही फल देते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जिस भी मनुष्य पर शनि की कृपा होती है, ऐसे लोग अपने जीवन में हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं। मनुष्य के रोजगार की स्तिथि भी शनि की दशा पर निर्भर करती है। वहीं अगर शनि की नजर कहीं आपकी कुंडली में टेढ़ी हो गई, तो ऐसी स्थिति में आपको थोड़ी सतर्कता बरतने की जरूरत होती है क्योंकि शनि की टेढ़ी नजर अक्सर जीवन में असफलता का सामना कराती है। आपका व्यापार हो या आपकी नौकरी, इन सबका असर मनुष्य के जीवन पर पड़ता है। आपके रोजगार की स्थिति हो या आय के स्त्रोत, इन सब पर शनि अपना असर डालता है। सिर्फ इतना ही नहीं, जब शनि की साढ़ेसाती शुरू होती है, तब आपके नजदीकी रिश्ते भी खराब होने लगते हैं।
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