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National Girl Child Day : पढ़ रही और आगे बढ़ रही हमारी बेटियां, केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों ने बदली तस्वीर

National Girl Child Day : पढ़ रही और आगे बढ़ रही हमारी बेटियां, केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों ने बदली तस्वीर

National Girl Child Day : कहते हैं कि बेटियां एक जन्म में 2 घरों का कल्याण करती हैं। शादी से पहले अपने जन्म वाले घर का और शादी के बाद अपने विवाह वाले घर का। वहीं बेटियों को कभी मां दुर्गा का स्वरूप कहा जाता है, कभी अन्नपूर्णा, कभी मां लक्ष्मी, कभी सरस्वती, कभी भगवती। इसीलिए बेटियां चाहे किसी भी रूप में हों, हमेशा पूजनीय मानी गई हैं। खास बात यह है कि ये बात सिर्फ कहने की नहीं है, बल्कि हमारे रीति-रिवाज और परंपराओं में भी इसकी स्पष्ट रूप से झलक देखने को मिलती है।

 

जन्म से विवाह के बाद तक विभिन्न स्वरूपों में होती है बेटियों की पूजा

नवरात्र में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों के रूप में घर-घर में कन्या पूजन किया जाता है। वहीं धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि जिन माता-पिता कन्यादान का सौभाग्य प्राप्त होता है, उन्हें मोक्ष मिलने में परेशानी नहीं होती। वहीं शादी के बाद की भी बात करें तो गृह प्रवेश के समय दुल्हन की हथेलियों की छाप घर के दरवाजे पर मंगल सूचक के रूप में लगाई जाती है। उनके दाहिने पैर से धान के भरे लोटे को घर में लुढ़कवाया जाता है, जो कि इस बात का प्रतीक है कि उनके आगमन से उस घर में धन-धान्य का भंडार हमेशा लगा रहे। वहीं जब वह गर्भवती होकर नई जान को जीवन देने वाली होती है, उस समय भी गोदभराई जैसी रस्म के जरिए बेटियों का आभार जताया जाता है।

 

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पीएम मोदी ने नेशनल गर्ल चाइल्ड डे पर दी शुभकामनाएं

आज का दिन ऐसी ही उन तमाम बेटियों को समर्पित है, जो बेटी, बहन, बहू से लेकर पत्नी, भाभी जैसे अनगिनत रूपों में हमारे संसार को सजीव बनाने में अपना पूरा जीवन समर्पित कर देती हैं। इस खास दिन पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए अपनी शुभकामनाएं दी हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सोशल मीडिया संदेश में लिखा कि आज राष्ट्रीय बालिका दिवस पर, हम बालिकाओं को सशक्त बनाने और उनके लिए व्यापक अवसर सुनिश्चित करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हैं। भारत को सभी क्षेत्रों में बालिकाओं की उपलब्धियों पर गर्व है। उनके कारनामे हम सभी को प्रेरणा देते रहते हैं। हमारी सरकार ने शिक्षा, प्रौद्योगिकी, कौशल, स्वास्थ्य देखभाल आदि जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया है, जिन्होंने बालिकाओं को सशक्त बनाने में योगदान दिया है। हम यह सुनिश्चित करने के लिए समान रूप से दृढ़ हैं कि बालिकाओं के खिलाफ कोई भेदभाव न हो।

 

भारत में पूजी जाती हैं बेटियां, लेकिन असल स्थिति कुछ और ही

यहां यह भी बताना जरूरी है कि भारत में बेटी को भले ही विभिन्न स्वरूपों में आदर देने की परंपरा रही हो, इसके बावजूद भारत के कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां लिंगानुपात की स्थिति शर्मसार करती है। हालांकि राज्य सरकारों ने इसे सुधारने की दिशा में प्रयास भी किए हैं और इसके अब सकारात्मक नतीजे भी देखने को मिल रहे हैं। इस पर आगे बात करेंगे, लेकिन पहले आपको बता दें कि लिंगानुपात आखिर होता क्या है और राष्ट्रीय बालिका दिवस पर इसकी बात क्यों की जा रही है ?

 

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क्या होता है लिंगानुपात ?

दरअसल प्रति 1 हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या के अनुपात को लिंगानुपात या सैक्स रेश्यो कहा जाता है। किसी क्षेत्र विशेष की कुल आबादी में से महिलाओं की आबादी के आधार पर इसका आंकलन किया जाता है। भारत में इसका आधार हर 10 साल के अंतराल पर होने वाली जनगणना है। हालांकि कोरोना महामारी और उसके बाद लोकसभा चुनाव के चलते साल 2021 में होने वाली जनगणना अभी तक भी नहीं करवाई जा सकी है। ऐसे में आज भी लिंगानुपात के लिए साल 2011 के आंकड़ों को आधार बनाकर ही केंद्र और राज्य की सरकारें महिला उत्थान और गर्ल चाइड को आगे बढ़ाने को लेकर अपनी योजनाएं बनाती है। भारत की जनगणना 2011 के अनुसार यह का लिंगानुपात 943 है। चलिए अब बात करते हैं लिंगानुपात के मामले में देश के शीर्ष 5 और सबसे निचले 5 राज्यों के बारे में।

 

National Girl Child Day : पढ़ रही और आगे बढ़ रही हमारी बेटियां, केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों ने बदली तस्वीर

ये हैं सबसे अच्छे लिंगानुपात वाले शीर्ष 5 राज्य

  • केरल- 1084
  • पुदुचेरी- 1037
  • तमिलनाडु- 996
  • आन्ध्र प्रदेश- 993
  • छत्तीसगढ़- 991

 

इन राज्यों में सबसे खराब है लिंगानुपात की स्थिति

  • हरियाणा- 879
  • अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह- 876
  • दिल्ली- 868
  • चण्डीगढ़- 818
  • दादर और नागर हवेली- 774
  • दमन और दीव- 618

 

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हाल ही में केंद्र के 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान ने पूरे किए 10 साल

खास बात यह भी है कि आज जहां देश में नेशनल गर्ल चाइल्ड डे मनाया जा रहा है, वहीं 22 जनवरी को ही केंद्र सरकार की ओर से चलाए जा रहे 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान के 10 साल पूरे हुए हैं। अभियान का मुख्य उद्देश्य न सिर्फ कन्या भ्रूण हत्या को रोककर लिंगानुपात को बेहतर बनाना है, बल्कि इसके साथ ही बेटियों को भी आगे बढ़ने के समान अवसर मिल सकें, यह भी केंद्र सरकार का लक्ष्य है। इसके लिए अभियान के तहत केंद्र सरकार बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में भी लगातार काम कर रही है। सुकन्या समृद्धि योजना में भी सरकार के इस प्रयास की झलक मिलती है। दरअसल इस योजना में बच्ची के जन्म से 21 साल की होने तक बच्ची के माता-पिता थोड़ी-थोड़ी धनराशि बैंक खाते में जमा करवाते हैं, ताकि उसके बड़े होने पर उसकी आगे की पढ़ाई करवाना परिवार को बोझ न लगे। वहीं योजना में प्रावधान किया गया है कि बेटी अगर 18 साल की आयु पूरी करने या 10वीं कक्षा पास करने के बाद खाते का नियंत्रण अपने हाथ में ले सकती है।

 

National Girl Child Day : पढ़ रही और आगे बढ़ रही हमारी बेटियां, केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों ने बदली तस्वीर

सुरक्षित प्रसव बढ़े तो बढ़ने लगा लिंगानुपात

इसके अलावा नेशनल गर्ल चाइल्ड डे से जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण मुद्दा सुरक्षित प्रसव का भी है। दरअसल असुरक्षित प्रसव करवाने से या प्रसव पूर्व जरूरी जांचें करवाने की सहूलियत न मिल पाने से कई बार बच्चे प्रसव के दौरान ही या जन्म लेने के कुछ दिनों बाद ही मर जाते हैं। इसमें भी देखा गया है कि अगर जन्म लेने वाला बच्चा बेटा है, तो परिवार के लोग उसकी ज्यादा अच्छी देखभाल करते हैं। इस वजह से भी लिंगानुपात में गिरावट देखने को मिली।

 

National Girl Child Day : पढ़ रही और आगे बढ़ रही हमारी बेटियां, केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों ने बदली तस्वीर

स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, मजबूत आधारभूत ढांचा, सामाजिक स्तर पर जागृति ने बदली तस्वीर

हालांकि भारत में जैसे-जैसे स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और आधारभूत ढांचा मजबूत हुआ है और लोगों में सामाजिक स्तर पर जागृति आई है, तो असुरक्षित प्रसव के आंकड़ों में काफी कमी देखने को मिली है। इसके अलावा केंद्र और राज्य सरकारें बालिकाओं के जन्म को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं भी चला रही हैं। ऐसे में धीरे-धीरे ही सही, लेकिन भारत में बेटियों को लेकर एक सकारात्मक बदलाव की शुरुआत तो हुई ही है।

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