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जब पाकिस्तान को मिली थी बड़ी शिकस्त, युद्द 1971

जब पाकिस्तान को मिली थी बड़ी शिकस्त, युद्द 1971

 

 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध, पाकिस्तान के लिए एक बड़ी हार

 

War Of 1971: पहलगाम पहले के बाद भारत के सिंधु जल समझौते के निस्तारण के बाद पाकिस्तान ने शिमला समझौता को रद्द कर दिया। पानी की किल्लत से बौखलाया पाकिस्तान बार-बार भारत को कभी परमाणु बम गिराने की बात कर रहा है तो कभी खून की नदियां बहाने की बात कर रहा है।

 

भारत से पाकिस्तान पहले भी कई जंग में हार चुका है। चाहे 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध, जिसे कश्मीर का दूसरा युद्ध भी कहा जाता है, 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान से बांग्लादेश बना, 1999 में कारगिल युद्ध, जिसमें पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा के पार भारत की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की थी। इन तीनों युद्धों में भारत ने पाकिस्तान को मुँह तोड़ जवाब दिया था।

 

भारत की ऐतिहासिक जीत, बना बांग्लादेश

 

सबसे ऐतिहासिक घटना थी 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध, जो 3 दिसंबर से 16 दिसंबर तक चला था। तब पूर्वी पाकिस्तान, जो आज का बांग्लादेश है, की आज़ादी को लेकर था। यह युद्ध, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान के 93,000 से अधिक सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसमर्पण किया था, भारत के लिए एक बड़ी जीत और पाकिस्तान के लिए एक बड़ी हार थी।

 

1971: पाकिस्तान की सबसे शर्मनाक हार

 

जब पाकिस्तान को मिली थी बड़ी शिकस्त, युद्द 1971

जब पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के लाखों लोगों को भारत में शरण लेने पर मजबूर कर दिया। इसके जवाब में भारत ने हस्तक्षेप किया और पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई शुरू की। 1971भारत-पाकिस्तान युद्ध पाकिस्तानी सेना के जनरल जनरल ए.के. नियाजी समेत लगभग 93,000 जवानों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए। फिर एक नया देश बांग्लादेश बना।

 

शिमला समझौता: युद्ध के बाद शांति की पहल

 

1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध में जीत के बाद भारत मजबूत स्थिति में था और वह पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठा सकता था, लेकिन भारत ने शांति और स्थिरता को प्राथमिकता देते हुए पाकिस्तान को छोड़ दिया। और फैसले के तहत भारत ने पाकिस्तान को बातचीत के लिए बुलाया। फिर शिमला समझौता पर कुछ शर्तों के साथ हस्ताक्षर किए गए। यह शिमला समझौता न केवल 1971 युद्ध के बाद की स्थिति को सुलझाने के लिए था।

 

जिन्ना बनाम शेख मुजीब: सियासत की शुरुआत

 

वर्ष 1947 में जब भारत के दो टुकड़े हुए थे और पाकिस्तान देश बना था, पाकिस्तान को भी मुख्य रूप से दो हिस्सों में बांट दिया गया, पहला पूर्वी पाकिस्तान और दूसरा पश्चिमी पाकिस्तान। मोहम्मद जिन्ना ने ऐलान किया था कि पाकिस्तान के हर नागरिक को सिर्फ उर्दू भाषा बोलनी चाहिए, जबकि पूर्वी पाकिस्तान के लोग बांग्ला बोलते थे। इस तरह पाकिस्तान के भीतर ही उर्दू और बांग्ला बोलने वालों के बीच की एक गहरी खाई खींच गई क्योंकि बांग्ला बोलने वाले मुसलमानों को अपने से छोटा मानते थे। पूर्वी पाकिस्तान का नेतृत्व करने वाले बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान और पश्चिमी पाकिस्तान के जिन्ना के बीच सियासी माहौल गरम होना शुरू हो गया।

 

बांग्ला अत्याचार के खिलाफ विद्रोह की चिंगारी

 

फिर शेख मुजीबुर ने पूर्वी पाकिस्तान में अलग देश की मांग के साथ मुक्ति वाहिनी के नेतृत्व में विद्रोह किया, तब इस बगावत को कुचलने के लिए पाकिस्तान ने जनरल टिक्का खान को ढाका रवाना कर दिया गया। बांग्ला भाषा के नाम पर उनके साथ लगातार अत्याचार किए गए थे। करीब दो दशक तक पूर्वी पाकिस्तान के लोग अत्याचार सहते रहे। लेकिन अपने शोषण से परेशान होकर 26 मार्च, 1971 को पूर्वी पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर उत्तराधिकार की मांग उठाई। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान का साथ दिया और पूर्वी पाकिस्तान से निकले लोगों को भारत में शरण देने का फैसला किया और तब लाखों लोग अपना देश छोड़कर भारत में शरण लेने आ गए।

 

बंगाल में बढ़ते अत्याचार से बदला सत्ता संतुलन

 

जब पाकिस्तान को मिली थी बड़ी शिकस्त, युद्द 1971

अब जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तानी के बांग्लादेशी नागरिकों को भारत में शरण दे दी थी, तब इंदिरा गांधी ने शरणार्थियों के लिए एक स्थायी समाधान निकालने को सोचा। 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध के लिए सेनाध्यक्ष जनरल सैम मानिकशॉ से इंदिरा गांधी ने मुलाकात की। अंतरराष्ट्रीय दबाव में पाकिस्तान ने टिक्का खान को पद से हटाकर जनरल एके नियाजी को ढाका की बागडोर थमा दी, क्योंकि पाकिस्तान के जनरल टिक्का खान बंगाल के लोगों पर अत्याचार कर रहा था। पूर्वी पाकिस्तान में माहौल बद से बदतर हो रहे थे।

 

बांग्लादेश को भारत का साथ

 

जब पाकिस्तान को मिली थी बड़ी शिकस्त, युद्द 1971

पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन चल रहा था, जिसमें पाकिस्तानी सेना द्वारा अत्याचार और दमन किए जा रहे थे। इन अत्याचारों के कारण बड़ी संख्या में लोग भारत में शरण लेने के लिए मजबूर हुए। भारत ने बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन का समर्थन किया और पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में शामिल हुआ। पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सैनिकों की संख्या कम नहीं थी,जनरल ए.के. नियाजी ने पहले सभी संचार केंद्रों पर अपना कब्जा जमा लिया और मुख्य शहरों को किले में तब्दील कर दिया। लेकिन ढाका की सुरक्षा के लिए भारतीय फौज हमेशा ही खड़ी थी। 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान को अपनी हार दिखने लगी और अमेरिका से गुहार लगाने लगा।

 

3 दिसंबर 1971, पाकिस्तान की नापाक चाल का करारा जवाब

 

 

जब पाकिस्तान को मिली थी बड़ी शिकस्त, युद्द 1971

3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत पर अचानक हमला बोल दिया, जिसके बाद भारत ने भी पाकिस्तान को करारा जवाब दिया और भारतीय सेना ने पूर्वी और पश्चिमी दोनों मोर्चों पर पाकिस्तान की सेना की हालत खराब कर दी और जीत हासिल की। 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया। 16 दिसंबर को, पाकिस्तान की सेना ने ढाका में आत्मसमर्पण कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश के रूप में पूर्वी पाकिस्तान बना।

 


22 अप्रैल पहलगाम हमले के बाद आज फिर पाकिस्तान को मुँह तोड़ जवाब देने का समय आ गया है। आज फिर भारतीय सेना पाकिस्तान के सेना के सामने जंग के लिए तैयार खड़ी है। जल सेना, वायु सेना, थल सेना तीनो स्तर पर आज देश मजबूती से खड़ा है।

 

 

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