
थरूर, बिलावल अमेरिका में, अब बैटल ऑफ नैरेटिव विदेशी धरती पर
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Priyanka
- June 3, 2025
भारत-पाकिस्तान के कूटनीतिक संघर्ष में नया मोड़: अमेरिका में थरूर और बिलावल की आमने-सामने की स्थिति
भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक संघर्ष अब अमेरिकी धरती पर पहुंच चुका है, जहां दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल एक ही समय में वाशिंगटन में मौजूद हैं। भारत की ओर से कांग्रेस सांसद शशि थरूर के नेतृत्व में एक बहुपक्षीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल अमेरिका पहुंचा है, जबकि पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जार्डारी भी उसी समय वाशिंगटन में हैं। यह संयोग दोनों देशों के बीच कूटनीतिक प्रतिस्पर्धा को और भी तीव्र बना रहा है।
भारत का दृष्टिकोण: आतंकवाद के खिलाफ शून्य सहनशीलता
शशि थरूर के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने अमेरिका में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है। थरूर ने कहा, "हम एक स्थिरता समर्थक शक्ति हैं, जबकि पाकिस्तान आतंकवाद के प्रायोजक के रूप में उभर रहा है।" उन्होंने पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को राजनीतिक औजार के रूप में इस्तेमाल करने की आलोचना की और इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उजागर करने का संकल्प लिया।
पाकिस्तान का दृष्टिकोण: भारत की नीतियों का विरोध
वहीं, पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जार्डारी ने अमेरिका में ओआईसी (ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन) के प्रतिनिधियों से मुलाकात की और भारत पर आक्रामकता फैलाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, "भारत के साथ आपके संबंध हमारे से बेहतर हैं।" इसके साथ ही, उन्होंने साझा जल संसाधनों पर हमलों को पाकिस्तान की संप्रभुता और वैश्विक स्थिरता के लिए खतरा बताया।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और कूटनीतिक परिप्रेक्ष्य
अमेरिका में दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडलों की समान उपस्थिति ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति भारत और पाकिस्तान के कूटनीतिक दृष्टिकोणों के बीच प्रतिस्पर्धा को दर्शाती है। अमेरिका की भूमिका इस संघर्ष में मध्यस्थ के रूप में महत्वपूर्ण हो सकती है, लेकिन दोनों देशों के बीच बढ़ती कूटनीतिक प्रतिस्पर्धा से क्षेत्रीय स्थिरता पर असर पड़ सकता है।
वाशिंगटन में शशि थरूर और बिलावल भुट्टो जार्डारी की समान उपस्थिति ने भारत और पाकिस्तान के कूटनीतिक संघर्ष को एक नए आयाम में प्रवेश कराया है। यह स्थिति न केवल दोनों देशों के लिए, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भी महत्वपूर्ण संकेत प्रस्तुत करती है कि कैसे क्षेत्रीय विवाद वैश्विक कूटनीतिक परिप्रेक्ष्य को प्रभावित कर सकते हैं।
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