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आमेर का चमत्कारी मंदिर शिला माता का इतिहास

आमेर का चमत्कारी मंदिर शिला माता का इतिहास

शक्ति और आस्था का केंद्र शिला माता मंदिर

 

राजस्थान अपने राजसी ठाठ और ऐतिहासिक स्मारकों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। यही वजह है कि राजस्थान के प्रत्येक राज्य में आपको वर्षभर पर्यटकों की भीड़ देखने को मिल सकती है। राजस्थान के ऐतिहासिक स्मारक और महल जितने प्रसिद्ध हैं, यहाँ के मंदिर भी अपनी भव्यता और ऐतिहासिकता के लिए हमेशा आकर्षण का केंद्र रहे हैं। ऐसा ही एक मंदिर है आमेर स्थित शिला माता मंदिर, जो जयपुर शहर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर जयपुरवासियों की आराधना का केंद्र है। हर साल नवरात्रि में यहाँ मेला भरता है, जिसे देखने सिर्फ राजस्थान से ही नहीं, पूरे विश्व से लोग आते हैं।

 

आकर्षण का केंद्र

 

आमेर देवी मंदिर का मुख्य द्वार चांदी से बना है, जो मुख्य रूप से आकर्षण का केंद्र है। इसके अतिरिक्त, इस द्वार पर माँ दुर्गा के नौ रूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, महागौरी, कालरात्रि, सिद्धदात्री उत्कीर्ण हैं। इसके साथ ही दस महाविद्याओं के रूप जिनमें काली, तारा, षोडशी, छिन्नमस्ता, भुवनेश्वरी, त्रिपुर, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला चित्रित हैं, और इसी के साथ लाल पत्थर के गणेशजी की मूर्ति भी प्रतिष्ठित है।


मंदिर की स्थापना

 

आमेर महल का निर्माण महाराजा मानसिंह द्वितीय ने वर्ष 1906 में करवाया था। कहा जाता है कि महाराजा मानसिंह को बादशाह अकबर ने बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया था और वहाँ के राजा केदार सिंह को हराने भेजा था। तब राजा मानसिंह ने माता से युद्ध में विजय प्राप्ति का आशीर्वाद माँगा और माता ने राजा मानसिंह को दर्शन देकर राजा केदार से स्वयं को मुक्त कराने की शर्त के साथ ही युद्ध में राजा मानसिंह की सहायता करने का आशीर्वाद भी दिया। तब राजा मानसिंह ने राजा केदार को युद्ध में हराया और देवी की प्रतिमा को मुक्त कराया, पर बहुत से लोगों का कहना है कि राजा मानसिंह से हारने के बाद केदार राजा ने स्वयं ही माता की मूर्ति भेंट स्वरूप दी थी, जिसे महाराजा मानसिंह ने आमेर महल में स्थापित किया।


वर्षों पहले दी जाती थी नर बलि

 

आमेर महल की शिला माता के मंदिर में वर्षों पहले नर बलि दी जाती थी। एक बार राज मानसिंह ने नर बलि के स्थान पर पशु बलि दी, जिस वजह से माता रुष्ट हो गईं और गुस्से से उन्होंने अपनी गर्दन मोड़ ली। तब से माता की गर्दन टेढ़ी है। मंदिर में 1972 तक पशु बलि का विधान था, पर कुछ धर्मावलंबियों के विरोध के चलते यह प्रथा बंद हो गई।


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शिला माता और हिंगलाज के सयुंक्त दर्शन

 

मंदिर में जहाँ एक ओर शिला माता विराजित हैं, माता के बाईं ओर माता हिंगलाज भी विराजमान हैं। विशेष बात यह है कि दोनों देवियां पूजित हैं और नवरात्रों में इनके दर्शन के लिए श्रद्धालु देश भर से आते हैं। मंदिर के पट खुलते ही माता को गुजियां, नारियल का प्रसाद विशेष रूप से भोग लगाया जाता है।


शिला माता की पोशाक

 

शिला माता को अष्टमी और चतुर्दशी के दिन नई पोशाक अर्पित की जाती है और ये पोशाक वर्षों से राज परिवार द्वारा भिजवाई जाती है। इस पोशाक में चांदी की लेस और लाल रंग के कपड़े का विशेष रूप से उपयोग होता है। नवरात्रों में राज परिवार द्वारा माता को विशेष रूप से 500 साल पुरानी जरी की पोशाक धारण करवाई जाती है। इसके अतिरिक्त माता को ऋतुओं के अनुसार ही पोशाक धारण करवाई जाती है।

 

आमेर महल की विशेषता

 

आमेर महल में 12 कमरे हैं जिन्हें राजा मानसिंह ने अपनी 12 रानियों के लिए बनवाया था। इन कमरों की विशेषता थी कि सभी कमरों में राजा के कमरे से जुड़ी एक सीढ़ी थी, पर किसी भी रानी को ऊपर जाने की अनुमति नहीं थी। आमेर महल की पहली मंजिल पर बड़ी-बड़ी खिड़कियां हैं, जिन्हें "सुहाग मंदिर" का नाम दिया गया है। इन झरोखों से ही रानियां और अन्य महिलाएं शाही दरबार और अन्य उत्सव देखती थीं। इसके साथ ही महल में मौजूद शीश महल भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता है। शीश महल एक ऐसा कमरा है जिसमें प्रकाश की किरण पड़ते ही पूरा कमरा रोशन हो जाता है।
 
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