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DU Admission Form Controversy: ‘उर्दू’ को हटाकर ‘मुस्लिम’ को भाषा बनाना संविधान का उल्लंघन?

DU Admission Form Controversy: ‘उर्दू’ को हटाकर ‘मुस्लिम’ को भाषा बनाना संविधान का उल्लंघन?

दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) एक बार फिर विवादों में है। इस बार मामला DU Admission Form Controversy से जुड़ा है, जहां फॉर्म के भाषा सेक्शन में कई आपत्तिजनक और असंवैधानिक चीजें सामने आई हैं। आरोप है कि DU के अंडरग्रेजुएट एडमिशन फॉर्म में मातृभाषा के विकल्पों में संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल ‘उर्दू’ को हटा दिया गया है और उसकी जगह ‘मुस्लिम’ को एक भाषा के रूप में जोड़ा गया है। इसके साथ ही, फॉर्म में ‘बिहारी’, ‘चमार’, ‘मजदूर’, ‘देहाती’, ‘मोची’, ‘कुर्मी’ जैसे जातिसूचक शब्दों का भी प्रयोग किया गया है, जो न सिर्फ आपत्तिजनक हैं, बल्कि संविधान की भावना के भी खिलाफ हैं।

 

यह मामला सामने आने के बाद DU Admission Form Controversy ने तूल पकड़ लिया है। शिक्षकों, छात्रों और विशेषज्ञों ने इस गलती को सिर्फ ‘तकनीकी चूक’ नहीं, बल्कि एक समुदाय विशेष को टारगेट करने की सोची-समझी साजिश बताया है। DUTA (Delhi University Teachers' Association) के सदस्य और किरोरीमल कॉलेज के प्रोफेसर रुद्राशीष चक्रवर्ती ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है, “अगर यह पागलपन है, तो इसमें एक योजना भी है। उर्दू को हटाना महज एक भाषा को हटाना नहीं, बल्कि उस साझा संस्कृति और साहित्य को मिटाना है जिसे उर्दू ने गढ़ा है।”

 

चक्रवर्ती ने यह भी कहा कि DU प्रशासन शायद यह मानता है कि उर्दू सिर्फ मुसलमानों की भाषा है, इसलिए उन्होंने उर्दू की जगह 'मुस्लिम' को मातृभाषा के कॉलम में जोड़ दिया। यह हास्यास्पद ही नहीं, बल्कि देश की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक आबादी को 'अलग' या 'दूसरा' साबित करने की कोशिश है।

 

DU की प्रोफेसर अभा देव हबीब ने भी इस पर गहरी नाराज़गी जताई है। उनका कहना है कि यह न सिर्फ एक भाषाई भूल है, बल्कि एक जानबूझकर की गई सांप्रदायिक छेड़छाड़ है। “देश का संविधान 22 भाषाओं को मान्यता देता है, जिनमें उर्दू भी शामिल है। ऐसे में किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा उसे हटाना संविधान का उल्लंघन है,” उन्होंने कहा।

 

उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या दिल्ली विश्वविद्यालय यह नहीं जानता कि मुसलमान भी अपने क्षेत्र के बाकी लोगों की ही तरह भाषा बोलते हैं? सिर्फ 'मुस्लिम' को भाषा बताना, एक पूरे समुदाय को सीमित करने और उन्हें सांप्रदायिक चश्मे से देखने की मानसिकता को दर्शाता है।

 

चक्रवर्ती ने यह भी टिप्पणी की कि DU को अंग्रेजी भाषा की बुनियादी समझ होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि 'मातृभाषा' के लिए ‘native language’ अधिक उपयुक्त शब्द है, जबकि 'mother tongue' आम बोलचाल का शब्द है जिसे किसी आधिकारिक फॉर्म में नहीं लिखा जाना चाहिए।

 

इस DU Admission Form Controversy ने शिक्षा जगत में गहरी चिंता पैदा कर दी है। सवाल यह है कि क्या अब देश की बड़ी यूनिवर्सिटियों में भी भाषाई और सांप्रदायिक भेदभाव शुरू हो चुका है? फिलहाल, DU प्रशासन की ओर से इस मामले पर कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।

 

यह विवाद केवल एक फॉर्म की गलती नहीं, बल्कि शिक्षा और संविधान के मूल्यों पर चोट के रूप में देखा जा रहा है। अब सबकी नजर DU प्रशासन की अगली प्रतिक्रिया पर टिकी है।

 

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