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आख़िर रूस NATO में क्यों नहीं है? पुतिन और नाटो के बीच की टकराव की कहानी

आख़िर रूस NATO में क्यों नहीं है? पुतिन और नाटो के बीच की टकराव की कहानी

NATO (North Atlantic Treaty Organization) और रूस के बीच संबंध लंबे समय से तनावपूर्ण रहे हैं। ये टकराव सिर्फ आज की बात नहीं है, बल्कि इसका इतिहास शीत युद्ध के दौर से शुरू होता है। अक्सर यह सवाल उठता है कि रूस NATO में शामिल क्यों नहीं है, जबकि कई पूर्व सोवियत देश नाटो का हिस्सा बन चुके हैं। इसका जवाब सिर्फ राजनीति नहीं, बल्कि ऐतिहासिक अविश्वास, रणनीतिक हितों और पुतिन की विदेश नीति में छिपा है।

 

शीत युद्ध की विरासत और NATO का जन्म

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, जब सोवियत संघ का प्रभाव बढ़ रहा था और साम्यवाद तेजी से फैल रहा था, तब 1949 में अमेरिका और यूरोपीय देशों ने मिलकर NATO की स्थापना की। इसका मकसद सामूहिक सुरक्षा सुनिश्चित करना था, यानी किसी एक सदस्य देश पर हमला, सभी देशों पर हमला माना जाएगा। जवाब में 1955 में सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोपीय देशों के साथ मिलकर वारसॉ Pact का गठन किया। इससे दुनिया दो गुटों में बंट गई, एक तरफ NATO, दूसरी तरफ सोवियत ब्लॉक।

 

सोवियत संघ का विघटन और टूटी उम्मीदें

1991 में जब सोवियत संघ बिखर गया, तो यह उम्मीद बनी थी कि अब पश्चिम और रूस के रिश्ते सुधरेंगे। यहां तक कि 1954 में ही सोवियत संघ ने NATO में शामिल होने की इच्छा जताई थी, जिसे अमेरिका ने ठुकरा दिया। बाद में पुतिन के शुरुआती शासनकाल में भी रूस और NATO के बीच सीमित सहयोग देखने को मिला, लेकिन यह कभी गंभीर साझेदारी में नहीं बदला। धीरे-धीरे रूस को यह महसूस होने लगा कि NATO उसकी सीमाओं के पास तक आ गया है और यह उसकी संप्रभुता के लिए खतरा है।

 

रूस और NATO के बीच मौजूदा विवाद

आज सबसे बड़ा सवाल यही है कि रूस NATO में क्यों नहीं है। इसका सीधा संबंध रूस की सुरक्षा चिंताओं और NATO के विस्तार से है। रूस का मानना है कि NATO का यूक्रेन, जॉर्जिया जैसे देशों तक फैलना उसकी सीमाओं पर पश्चिमी प्रभाव बढ़ा रहा है। 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तब NATO ने यूक्रेन को सैन्य, आर्थिक और तकनीकी सहायता देना शुरू किया, हालांकि वह सीधे युद्ध में शामिल नहीं हुआ। रूस इसे अपने खिलाफ एक रणनीतिक युद्ध मानता है।

 

पुतिन स्पष्ट रूप से NATO में रूस की गैर-भागीदारी को पश्चिमी देशों की साजिश मानते हैं। वह मानते हैं कि NATO का अस्तित्व ही रूस को कमजोर करने के लिए है। इसलिए रूस लगातार NATO को चेतावनी देता है और खुद को घिरा हुआ महसूस करता है।

 

इस तरह, रूस और NATO के बीच न केवल कूटनीतिक मतभेद हैं, बल्कि यह एक गहरी रणनीतिक और वैचारिक लड़ाई है, जो अब तक सुलझ नहीं पाई है।

 

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