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मोबाइल फोन और सोशल मीडिया: बच्चों पर बढ़ता प्रभाव

मोबाइल फोन और सोशल मीडिया: बच्चों पर बढ़ता प्रभाव

आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन और सोशल मीडिया बच्चों की ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुके हैं। बच्चे घंटों तक मोबाइल स्क्रीन पर व्यस्त रहते हैं, चाहे वह ऑनलाइन गेमिंग हो, यूट्यूब वीडियो देखना हो या फिर इंस्टाग्राम और स्नैपचैट पर दोस्तों से जुड़े रहना हो। हालांकि, यह तकनीक उनके विकास में कई सकारात्मक बदलाव भी ला रही है, लेकिन इसके साथ-साथ कई गंभीर समस्याएं भी खड़ी हो रही हैं जैसे।

 

1. मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर

 

मोबाइल फोन और सोशल मीडिया: बच्चों पर बढ़ता प्रभाव

 

मोबाइल और सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। लगातार स्क्रीन के सामने रहने से आंखों में जलन, सिरदर्द और नींद की कमी जैसी समस्याएं हो रही हैं। एक हालिया शोध में पाया गया है कि अधिकतर बच्चे रात में देर तक मोबाइल चलाते हैं, जिससे उनकी नींद प्रभावित होती है और वे दिनभर सुस्ती महसूस करते हैं।मानसिक रूप से भी यह आदत बच्चों को अकेला और तनावग्रस्त बना रही है। सोशल मीडिया पर "लाइक" और "कमेंट्स" पाने की होड़ बच्चों के आत्मविश्वास को प्रभावित कर रही है। यदि उन्हें उम्मीद के मुताबिक प्रतिक्रिया नहीं मिलती, तो वे निराश और उदास महसूस करने लगते हैं।

 

 

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2. पढ़ाई पर नकारात्मक प्रभाव

 

मोबाइल फोन और सोशल मीडिया: बच्चों पर बढ़ता प्रभाव

 

मोबाइल और सोशल मीडिया का सबसे बड़ा असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ रहा है। आजकल बच्चे ऑनलाइन क्लास के नाम पर मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन अक्सर वे पढ़ाई की जगह गेमिंग, वीडियो स्ट्रीमिंग और चैटिंग में व्यस्त हो जाते हैं। यह उनके ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को कमजोर कर रहा है और उनकी शैक्षणिक प्रगति में बाधा डाल रहा है।शोध बताते हैं कि जो बच्चे ज्यादा समय सोशल मीडिया पर बिताते हैं, उनकी पढ़ाई में रुचि कम होती जा रही है। वे अपनी पढ़ाई को टालते रहते हैं और असाइनमेंट या होमवर्क के बजाय सोशल मीडिया स्क्रॉलिंग में समय बिताते हैं।

 

3. साइबर बुलिंग और ऑनलाइन खतरों का बढ़ता डर

 

मोबाइल फोन और सोशल मीडिया: बच्चों पर बढ़ता प्रभाव

 

सोशल मीडिया पर बच्चों को सबसे बड़ा खतरा साइबर बुलिंग (ऑनलाइन बदमाशी) से है। कई बार बच्चे सोशल मीडिया पर किसी के नकारात्मक या भद्दे कमेंट्स का शिकार हो जाते हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास टूट जाता है। इसके अलावा, कई बार बच्चे अनजाने में गलत लोगों से जुड़ जाते हैं, जिससे उन्हें मानसिक और भावनात्मक रूप से नुकसान पहुंच सकता है।इसके अलावा, सोशल मीडिया पर गलत सूचनाओं, भ्रामक विज्ञापनों और असामाजिक तत्वों की मौजूदगी भी बच्चों के लिए एक बड़ा खतरा बन गई है।

 

4. परिवार और दोस्तों से दूरी

 

मोबाइल फोन और सोशल मीडिया: बच्चों पर बढ़ता प्रभाव

 

पहले बच्चे परिवार के साथ समय बिताते थे, लेकिन अब मोबाइल फोन और सोशल मीडिया के कारण वे अपनों से दूर होते जा रहे हैं। वे दोस्तों से मिलना-जुलना कम कर रहे हैं और हर चीज़ को ऑनलाइन चैट या वीडियो कॉल के जरिए करना पसंद करने लगे हैं। इससे उनके वास्तविक सामाजिक कौशल यानी (social skills) प्रभावित हो रहे हैं।परिवार के साथ बातचीत कम होने से बच्चों में धैर्य की कमी और चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है। माता-पिता की सलाह या अनुशासन को वे टोकाटाकी समझने लगे हैं, जिससे पारिवारिक रिश्ते भी कमजोर हो रहे हैं।

 


बच्चों को मोबाइल और सोशल मीडिया की लत से बचाने के उपाय

 

बच्चों को मोबाइल और सोशल मीडिया के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए माता-पिता को कुछ अहम कदम उठाने होंगे –

1. स्क्रीन टाइम निर्धारित करें – बच्चों के लिए निश्चित समय तक ही मोबाइल उपयोग करने का नियम बनाएं और उस पर सख्ती से अमल करें।

2. परिवार के साथ समय बिताने को प्रेरित करें – बच्चों को बाहर खेलने, किताबें पढ़ने और परिवार के साथ बातचीत करने के लिए प्रेरित करें।

3. ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में सिखाएं – बच्चों को सिखाएं कि वे अजनबियों से ऑनलाइन बातचीत न करें और किसी भी संदिग्ध लिंक या संदेश को क्लिक
करने से बचें।

4. मोबाइल का उपयोग पढ़ाई के लिए करें – उन्हें शैक्षिक ऐप्स और इंटरनेट के अच्छे उपयोग की ओर प्रेरित करें।

5. सोशल मीडिया पर नजर रखें – बच्चों के सोशल मीडिया अकाउंट्स की समय-समय पर जांच करें और उनसे खुलकर बातचीत करें कि वे ऑनलाइन क्या
देख और सीख रहे हैं।

 


मोबाइल फोन और सोशल मीडिया ने बच्चों के जीवन को कई तरह से प्रभावित किया है। यह उन्हें नए अवसर और जानकारी देने का एक शानदार माध्यम है, लेकिन यदि इसका अत्यधिक उपयोग और गलत तरीके से इस्तेमाल किया जाए, तो यह उनकी मानसिक, शारीरिक और सामाजिक सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है।इसलिए, माता-पिता और शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों को तकनीक का सही उपयोग सिखाएं और उनकी ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखें। इससे बच्चे एक संतुलित और स्वस्थ डिजिटल जीवन जी सकेंगे, जिससे वे अपनी पढ़ाई, करियर और व्यक्तिगत विकास में आगे बढ़ सकें।

 

 

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