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पुरुषों के मुकाबले महिलाएं रहती हैं ज्यादा Busy, मिलता है 13% तक कम खाली समय

पुरुषों के मुकाबले महिलाएं रहती हैं ज्यादा Busy, मिलता है 13% तक कम खाली समय

जयपुर

अनाया एक प्राइवेट कंपनी में ग्राफिक डिजाइनर है। अनाया बताती है वो सुबह 8 बजे ऑफिस के लिए तैयार होकर निकलती है और लगभग 10 बजे तक ऑफिस पहुंच जाती है। रात को ऑफिस से आते आते 9 बज जाते है। ऐसे में घर पर आकर घर के काम और दैनिक दिनचर्या के लिए बहुत सीमित समय बचता है। कई बार मन होता है कि पेंटिंग करूं क्योंकि वो हमेशा से मेरी हॉबी रही है। लेकिन टाइम नहीं होने के कारण ये बस विचारों में ही रह जाता है। 

स्त्री तू शक्ति है स्त्री तू देवी है ऐसी ना जाने कितनी ही उपाधि स्त्री को दे दी जाती है। विज्ञान का सहारा लेकर भी कह दिया जाता है कि स्त्री एक साथ कई कार्य करने में सक्षम होती है। ऐसे में सब ये भूल जाते है कि स्त्री एक इंसान भी है। जिसके शरीर में वहीं अंग,कोशिका, तंत्र है जो पुरूषों के है। दरअसल हाल ही में एक रिपोर्ट आई है जिसके अनुसार महिलाओं के पास खुद के लिए पुरूषों के मुकाबले बहुत कम समय होता है। इसका कारण महिलाओं की घर के साथ प्रोफेशनल रिस्पॉसब्लिटीज है। जो महिलाएं किसी भी तरह का आर्थिक कार्य करती है चाहे वो नौकरी हो या खुद का बिजनेस उनके ऊपर उसी के साथ घर की भी जिम्मेदारी होती है ऐसे में वो दोनों में संतुलन बिठाते-बिठाते कब खुद के लिए समय निकालना बंद कर देती है इसका पता भी नहीं चलता है।

 

क्या कहता है अध्ययन

अमेरिका की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने 4 लाख लोगों पर अध्ययन किया। इस अध्ययन में चौंकाने वाले खुलासे हुए। दरअसल अध्ययन के अनुसार महिलाओं के पास औसतन पुरुषों की अपेक्षा 13 प्रतिशत तक का कम समय होता है। अधिकांश महिलाओं के पास अपने पुरुष समकक्षों के मुकाबले रोजाना एक घंटा कम खाली समय होता है। मतलब यदि कोई पुरुष अपने पूरे दिन में से खुद की देखभाल, परिवार के साथ समय बिताने या कोई पसंदीदा कार्य करने के लिए 2—3 घंटे निकाल सकता है तो वहीं महिलाओं के लिए अवधि कम है।

 

इस उम्र की महिला रहती हैं सबसे व्यस्त

इस अध्ययन में ये भी सामने आया है कि सबसे अधिक व्यस्त 35-44 साल की महिलाएं होती है। इसका एक कारण इस उम्र में पारिवारिक और प्रोफेशनल लाइफ में जिम्मेदारियों का विस्तार होना है। क्योंकि अधिकांश महिलाएं इस उम्र में सेटल होना चाहती हैं। वहीं प्रोफेशनली भी ये स्टेबिलिटी वाला समय होता है।  

 

हर जगह परफेक्ट होने की होड़

महिलाओं पर परफेक्ट होने का भी दबाव होता है। जो बचपन से ही उन पर बना दिया जाता है। बचपन से एक अच्छी बेटी, अच्छी बहू, अच्छी पत्नी, अच्छी मां की परिभाषा तय कर दी जाती है। महिलाएं इन ढांचों में खुद को ढालने के लिए ता उम्र मेहनत करती रहती है। ऐसे में जब वो कामकाजी हो जाती है तो वहां भी आदतन परफॉर्मेंस बेहतर करने के दबाव में आ जाती है। महिलाओं को इस अच्छे होने के टैबू से भी बाहर निकलने की जरूरत है।

 

समय न निकल पाने का नुकसान

  • एक्सरसाइज जैसी गतिविधियों को टाइम नहीं दे पाना
  • मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ना
  • कार्यक्षमता में भी कमी आना
  • सोशल एंजाइटी जैसी समस्या होना 

 

महिलाओं को व्यायाम से हमेशा भावनात्मक लाभ का अनुभव नहीं होता है। वहीं दूसरी ओर पुरूष अक्सर इसलिए व्यायाम करते हैं क्योंकि वे वास्तव में आनंद महसूस करते है। वहीं, महिलाएं वजन कम करने जैसे कारणों के लिए वर्कआउट करती है, जिससे यह तनाव कम करने वाला नहीं रह जाता है। यहां भी महिलाओं पर वजन कम करने सुंदर दिखने का दबाव होता है। 

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