
जानिये क्या हैं जनेऊ संस्कार
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Geetika
- March 21, 2025
भारतीय संस्कृति प्राचीन और सभ्यता का एक सबसे उत्तम उदाहरण है| इस सृष्टि में बहुत से जीव हैं पर इन सबमें से मानव जाति सबसे उत्तम मानी गयी है|संसार की सबसे प्राचीन संस्कृति जिसे आर्यवर्त की संस्कृति की नाम से भी हम जानते हैं इस संस्कृति में यज्ञोपवीत उपनयन संस्कार का विशेष महत्व हैं| मनुष्य योनि अन्य प्राणियों की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ है मानव में धर्म और अपने कर्तव्य से जुड़ी अनेक भावनाएं पायी जाती है| मनुष्य के जन्म लेने के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है| जब मनुष्य संसार में आता है उस वक़्त वो बहुत से रिश्तों में बंधा होता है जिनसे उनका पिछले जन्म का कोई न कोई कर्ज या ऋण होता है| हिन्दू संस्कृति में शिक्षा दीक्षा से पहले प्रत्येक बालक का यज्ञोपवीत संस्कार होता है जो की सनातन धर्म में पवित्र कार्य माना गया है| जनेऊ धारण करना हमारी संस्कृति में प्राचीन काल से पवित्र क्रिया मानी गयी है| ऐसा भी कहा जाता है की जनेऊ संस्कार के बाद एक बालक का दूसरा जन्म होता है इसलिए प्राचीन काल में सर्वपर्थम बालक का यज्ञोपवीत संस्कार होता था उसके बाद ही वो बालक शिक्षा ग्रहण कर सकता था|
यज्ञोपवीत के नियम क्या है कैसे होता है ये संस्कार
यज्ञोपवीत अर्थात्त जनेऊ धारण करने के बाद व्यक्ति तीन ऋणों से बंध जाता है क्यूंकि जनेऊ धारण करने में तीन धागे होते हैं जिसमें पहले धागे का अर्थ है देवऋण,दूसरे का अर्थ है पितृ ऋण और तीसरे का अर्थ है गुरु अथवा ऋषि ऋण लेकिन मनुष्य का प्रथम ऋण हमेशा अपने माता पिता के लिए ही रहता है जो जन्म से लेकर युवा होने तक उसका भरण पोषण करते हैं| और मनुष्य जीवनभर इस ऋण का मूल्य माता पिता की सेवा से उतारता है जनेऊ हमारे आराध्य त्रिदेव ब्रह्मा ,विष्णु,महेश का प्रतिक है जनेऊ में जिसे हम सत्व,रज और तम का प्रतिक मानते है ये गुण पाए जाते हैं| क्यूंकि भगवान विष्णु सत्व गुण का प्रतिक है| ,ब्रह्मा रजो गुण का प्रतिक हैं और महादेव तमस का प्रतिक है| तीनो देवताओं के गुण जनेऊ में पाए जाते है इसके अलावा जनेऊ के तीन सूत्रों को गायत्री मंत्र को तीन चरणों का प्रतिक भी माना गया है|
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जनेऊ धारण के बाद कुछ नियमों का पालन करना अनिवार्य
कोई भी मनुष्य जब जनेऊ धारण करे तो कुछ बातों का विशेष ख्याल रखें जनेऊ हमेशा हाथों को साफ़ कर के ही उतारें श्मशान घाटपर जाने से पहले और सुबह सुबह उठने के बाद नित्य क्रिया करने से पहले जनेऊ उतार दें, सूतक काल में भी जनेऊ को धारण करना वर्जित माना जाता है| आम तौर पर 10 से 12 महीने के बाद नया जनेऊ धारण करने का विधान है| पर अगर आप तर्पण ,श्राद्ध ,पिंडदान कर रहे हैं तो इस दशा में जनेऊ धारण करना अनिवार्य माना जाता है
स्वच्छ्ता का रखें विशेष ध्यान
जनेऊ धारण के बाद व्यक्ति को अपनी स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए नियमित रूप से अपने कान ,नाक ,मुँह और पेट की सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए| इसके साथ ही ये भी आवश्यक है की व्यक्ति अपने काम, क्रोध और लोभ पर नियंत्रण रखे| जनेऊ धारण करने के बाद इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखा जाये की जनेऊ अपवित्र ना हो,जनेऊ में किसी भी प्रकार की चाबी नहीं बांधे,अगर जनेऊ का कोई भी धागा टूट गया है तो उसी वक़्त नया जनेऊ धारण करें इसी के साथ जनेऊ धारण करते समय आवश्यक है की मंत्रोपचार और हवन निरंतर होता रहे|
जनेऊ धारण करने से लाभ
जनेऊ धारण करना चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से भी फायदेमंद है कान में जनेऊ लिपटाने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जागरण होता है| इससे पाचन तंत्र ठीक रहता है और पित्त, एसिडिटी ,रक्तचाप जैसी समस्या नहीं होती ऐसा कहा जाता है की पीठ पर जाने वाली रेखा जो जनेऊ धारण के बाद उसके विधुत प्रवाह को नियत्रण में रखती है|,अगर आप जनेऊ धारण करते हैं तो आपको अपने भीतर पवित्रता का अनुभव होगा, जनेऊ धारण करने से मनुष्य में एक अद्भुत ऊर्जा का संचार होता है. जनेऊ धारण करने से शारीरिक लाभ तो होता ही है साथ में मानसिक सुख की अनुभूति भी होती है जनेऊ धारण के बाद व्यक्ति के मन में बुरे ,नकरात्मक विचार नहीं आते,व्यक्ति किसी भी तरह की नकरात्मक ऊर्जा से बचा रहता है, जनेऊ धारण के बाद व्यक्ति को बुरे स्वप्न नहीं आते|
जनेऊ की लम्बाई कितनी होनी चाहिए
बहुत से लोगों को नहीं पता होता की जनेऊ धारण कैसे करना है उसकी लम्बाई कितनी होनी चाहिए जनेऊ की लम्बाई कम से कम 96 अंगुल का होना चाहिए क्यूंकि धारण करने वाला 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करे ये भी जरूरी है|
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