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Bhai Dooj : जानिए किस मुहूर्त में भाईदूज पूजन रहेगा श्रेष्ठ ? बहनें करती हैं भाई की लंबी उम्र की कामना

Bhai Dooj : जानिए किस मुहूर्त में भाईदूज पूजन रहेगा श्रेष्ठ ? बहनें करती हैं भाई की लंबी उम्र की कामना

Bhai Dooj : पांच दिवसीय दीपोत्सव के आखिरी दिन के रूप में भाई दूज का त्यौहार मनाया जाता है। रक्षाबंधन की तरह ही भाई दूज भी भाई-बहन के आपसी प्रेम और एक-दूसरे के प्रति विश्वास का प्रतीक है। लेकिन कई मायनों में ये दोनों त्यौहार एक-दूसरे से काफी अलग होते हैं। रक्षाबंधन जहां श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, वहीं भाई दूज कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इसके अलावा रक्षाबंधन पर जहां विवाहित बहनें अपने भाई के घर उन्हें राखी बांधने जाती हैं, वहीं भाई दूज पर भाई अपनी बहन के घर आते हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों और अलग-अलग अंदाज में मनाया जाता है। लेकिन चलिए सबसे पहले भाईदूज के शुभ मुहूर्त (Bhai Dooj Shubh Muhurt) के बारे में जान लेते हैं।

 

2 नवंबर की रात से शुरू हो जाएगी द्वितीया तिथि

हिंदू पंचांग (Hindu Panchang) के अनुसार इस बार कार्तिक मास (Kartik Month) द्वितीया तिथि 2 नवंबर को रात 8 बजकर 22 मिनट पर आरंभ हो रही है, जो अगले दिन 3 नवंबर को रात 10 बजकर 06 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में भाई दूज भी इस बार 2 दिन मनाई जाएगी। 2 नवंबर को द्वितीया तिथि आरंभ होने के बाद भाई दूज मनाई जा सकती है, जबकि 3 नवंबर को सुबह 11 बजकर 39 मिनट तक सौभाग्य योग रहेगा। इसके बाद शोभन योग शुरू हो जाएगा। इसलिए भाई दूज के दिन पूजा के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त 11:45 मिनट तक रहेगा।

 

यमराज ने बहन को दिया था वरदान, इसलिए मनाई जाती है भाई दूज

शास्त्रों के अनुसार कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि पर मृत्यु के देवता यम (Yamraj) अपनी बहन यमी के घर गए थे। वहां उनकी बहन ने उनका खूब आदर सत्कार किया था, जिससे प्रसन्न होकर यमराज ने वरदान दिया कि जो भाई बहन इस दिन यमराज की पूजा करेंगे, उन्हें कभी भी अकाल मृत्यु का भय नहीं सताएगा। इसके अलावा भाई दूज को लेकर एक अन्य पौराणिक मान्यता यह भी है कि भगवान श्रीकृष्ण जब नरकासुर (Narkasur) राक्षस का वध कर द्वारका लौटे थे, तो भगवान कृष्ण (Lord Krishna) की बहन सुभद्रा (Subhadra) ने फूल, मिठाई और दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था। इस दिन सुभद्रा ने भगवान कृष्ण के मस्तक पर टीका लगाकर उनकी लंबी आयु की कामना की थी। तभी से भाई दूज का पर्व मनाने की परंपरा शुरू हो गई।

 

भाई को तिलक लगाकर, नारियल देकर की जाती है लंबी उम्र की कामना

भाई दूज भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाती हैं और नारियल देकर देवी-देवताओं से उनकी सुख-समृद्धि और लंबी उम्र की कामना करती हैं। इसके बाद भाई अपनी बहन की रक्षा का वादा करते हैं। इसके बाद बहन अपने भाइयों को भोजन भी करवाती है। यह त्योहार एक अटूट बंधन को और मजबूत बनाता है।

 

उत्तराखंड में भाई को चूड़ा चढ़ाकर की जाती है लंबी उम्र की कामना

वहीं देवभूमि के रूप में पहचाने जाने वाले उत्तराखंड में भाईदूज (Bhaiduj in Uttarakhand) बेहद अलग अंदाज में मनाई जाती है। दरअसल यहां इसे दुत्ती त्यार के नाम से जाना जाता है। भाई दूज पर उत्तराखंड में धान से बना चूड़ा पूजने की परंपरा है। चूड़ा बनाने के लिए पहले धान यानि चावल को पानी में भिगोया जाता है। उत्तराखंड के कुमाऊं में धान भाई दूज से 3 दिन पहले या 5 रात पहले भिगोया जाता है। इसके बाद चूड़ा को कूटने के लिए इस्तेमाल में किए जाने वाले ओखल की भी पूजा की जाती है। फिर गर्म धान को ओखल में कूटने के बाद चूड़ा बनाया जाता है। धान को भिगोने के बाद इसे तेल की कढ़ाई में कुछ देर तक आग में भूना जाता है। इसके बाद तुरंत गर्मागर्म ओखली में कूटा जाता है। यह धान से चावल को अलग करने का एक पुराना तरीका है। आग में भुने हुए होने के कारण यह बहुत स्वादिष्ट होता है. इसे ही चूड़ा कहा जाता है। भाई दूज के दिन बहन अपने भाई के सिर में चूड़ा चढ़ाती हैं और उसकी खुशहाली व लंबी उम्र की कामना करती हैं।

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