
ट्रंप ने व्हाइट हाउस पैनल में दो जिहादियों को किया शामिल
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Priyanka
- May 19, 2025
व्हाइट हाउस पैनल में जिहादियों की नियुक्ति पर विवाद
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हालिया नियुक्तियों ने सुरक्षा और कूटनीति के मोर्चे पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ट्रंप प्रशासन ने व्हाइट हाउस की धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के नए 'ले लीडर्स' पैनल में दो पूर्व जिहादी ऑपरेटरों को शामिल किया है। इनमें से एक इस्माइल रॉयर, जो 2000 में पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैयबा (LeT) प्रशिक्षण शिविर में शामिल हुआ था, और दूसरा शेख हमजा यूसुफ, जो ज़ैतुना कॉलेज के सह-संस्थापक हैं। इन नियुक्तियों ने भारत सहित वैश्विक स्तर पर चिंता और आलोचना को जन्म दिया है।
इस्माइल रॉयर: लश्कर से व्हाइट हाउस तक
इस्माइल रॉयर, जिनका असली नाम रेंडेल रॉयर था, ने 1992 में इस्लाम धर्म अपनाया और बाद में पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैयबा शिविर में प्रशिक्षण लिया। 2003 में उन्हें अमेरिका में आतंकवाद से संबंधित आरोपों में गिरफ्तार किया गया और 2004 में 20 साल की सजा सुनाई गई, जिसमें से उन्होंने 13 साल जेल में बिताए। रॉयर ने स्वीकार किया कि उन्होंने अन्य जिहादियों को लश्कर शिविरों में भेजने में मदद की और कश्मीर में भारतीय सैन्य ठिकानों पर हमलों में भाग लिया। हालांकि, जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने कट्टरपंथ से मुक्ति की दिशा में काम किया और धार्मिक स्वतंत्रता और अंतरधार्मिक संवाद के लिए सक्रिय रूप से काम किया।
व्हाइट हाउस ने रॉयर की नियुक्ति का बचाव करते हुए कहा कि वह वर्तमान में धार्मिक स्वतंत्रता संस्थान में इस्लाम और धार्मिक स्वतंत्रता एक्शन टीम के निदेशक हैं और उन्होंने कई प्रकाशनों में लेखन किया है। रॉयर ने एक साक्षात्कार में बताया कि लश्कर शिविरों में प्रशिक्षण एक पर्यटन जैसा अनुभव था, जिसमें हथियारों का उपयोग और पहाड़ों की सैर शामिल थी।
शेख हमजा यूसुफ: शांति के प्रवक्ता या विवादास्पद विचारक?
शेख हमजा यूसुफ, जो ज़ैतुना कॉलेज के सह-संस्थापक हैं, को भी पैनल में शामिल किया गया है। वह अंतरधार्मिक संवाद और धार्मिक सहिष्णुता के लिए जाने जाते हैं। हालांकि, कुछ मुस्लिम हलकों में उनके विचारों और राजनीतिक रुखों को लेकर आलोचना की गई है। लारा लूमर, जो ट्रंप की करीबी सहयोगी हैं, ने यूसुफ की नियुक्ति को "जिहादी" बताते हुए आलोचना की है।
भारत की प्रतिक्रिया
भारत में इन नियुक्तियों को लेकर चिंता व्यक्त की गई है, क्योंकि लश्कर-ए-तैयबा भारत में आतंकवादी गतिविधियों के लिए कुख्यात है। भारत सरकार ने इस मुद्दे पर अमेरिकी प्रशासन से स्पष्टीकरण की मांग की है और इसे आतंकवाद के प्रति अमेरिका की नीति में गंभीर चूक माना है।
ट्रंप प्रशासन की इन नियुक्तियों ने धार्मिक स्वतंत्रता और आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष के बीच संतुलन को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। जबकि रॉयर और यूसुफ ने कट्टरपंथ से मुक्ति की दिशा में काम किया है, उनकी पिछली गतिविधियाँ और संबद्धताएँ सुरक्षा और कूटनीति के दृष्टिकोण से चिंता का विषय हैं। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में स्पष्टता और सावधानी की आवश्यकता है।
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