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Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में बढ़ा सियासी तनाव, कांग्रेस भी ठाकरे बंधुओं की रैली में होगी शामिल

Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में बढ़ा सियासी तनाव, कांग्रेस भी ठाकरे बंधुओं की रैली में होगी शामिल

महाराष्ट्र में 'हिंदी भाषा' को लेकर राजनीतिक घमासान लगातार तेज होता जा रहा है। अब इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी ने भी मुखर रुख अपनाते हुए शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की ओर से 5 जुलाई को मुंबई में आयोजित संयुक्त रैली का समर्थन कर दिया है।

 

महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने स्पष्ट किया है कि उनकी पार्टी भी स्कूली पाठ्यक्रमों में हिंदी को थोपे जाने के खिलाफ है। उन्होंने कहा, "सरकार का यह निर्णय लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। इसे तुरंत निरस्त किया जाना चाहिए। इस फैसले का हम हर मंच पर विरोध करेंगे।" सपकाल ने बताया कि इस मुद्दे पर कांग्रेस पहले से ही एक campaign चला रही है और राज्यभर के लोगों को खत लिखकर इस निर्णय के खिलाफ जागरूक करने की कोशिश की जा रही है।

 

उन्होंने यह भी कहा कि कई लेखक, बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता भी अपने-अपने स्तर पर विरोध दर्ज करवा रहे हैं। कांग्रेस की कोशिश है कि यह आंदोलन व्यक्तिगत नहीं बल्कि सामूहिक बने। उनका कहना है कि यह सिर्फ भाषा का सवाल नहीं है, बल्कि यह मराठी अस्मिता और स्थानीय संस्कृति की रक्षा का भी मुद्दा है।

 

इस रैली की सबसे अहम बात यह है कि करीब दो दशकों के बाद ठाकरे बंधु, राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे, एक ही मंच पर नजर आएंगे। वर्ष 2006 में दोनों नेताओं के बीच राजनीतिक मतभेद सामने आए थे और तभी से उनकी राहें अलग हो गई थीं। लेकिन अब भाषा की राजनीति (language politics) के मुद्दे पर दोनों फिर से एकजुट होते दिख रहे हैं।

 

 

5 जुलाई को मुंबई में होने वाली यह रैली मराठी भाषा, मराठी मानुष और महाराष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत को बचाने के उद्देश्य से आयोजित की जा रही है। आयोजकों का दावा है कि हिंदी को जबरन थोपा जा रहा है, जिससे मराठी भाषियों की पहचान को खतरा है।

 

इस पूरे विवाद के केंद्र में राज्य सरकार का वह निर्णय है, जिसमें स्कूलों में हिंदी भाषा को अनिवार्य करने की बात कही गई है। इसी के विरोध में शिवसेना (यूबीटी), मनसे और अब कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टियां एकजुट हो रही हैं। यह रैली न सिर्फ राजनीतिक समीकरणों को बदल सकती है, बल्कि राज्य की भाषा राजनीति (language politics) में भी बड़ा मोड़ ला सकती है।

 

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