
हिंदू नववर्ष का शुभारंभ: 30 मार्च 2025
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Manjushree
- March 29, 2025
हिंदू नववर्ष पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है।
Hindu New Year: पूरी दुनिया में एक जनवरी को नया साल का दिन मनाया जाता है। लेकिन भारतीय संस्कृति के अनुसार हिंदू नववर्ष (Hindu New Year) का शुभारंभ इस साल 30 मार्च को हो रहा है। दरअसल, हिंदू नववर्ष पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। और इस साल हिंदू नववर्ष (Hindu New Year) का शुभारंभ 30 मार्च 2025, दिन रविवार को हो रहा है। इस बार विक्रम संवत 2082 वर्ष आरंभ होगा। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन से संवत्सर का पूजन, नवरात्र घटस्थापना, ध्वजारोपण आदि विधि-विधान किए जाते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वसंत ऋतु में आती है। इस ऋतु में संपूर्ण सृष्टि में सुंदर छटा बिखर जाती है। 'प्रतिपदा' के दिन ही पंचांग तैयार होता है।
विक्रम संवत का महत्व और इतिहास (Importance and History of Vikram Samvat)
हिंदू कैलेंडर का चैत्र पहला महीना और आखिरी महीना फाल्गुन होता है। चैत्र नवरात्र के साथ ही हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नए विक्रम संवत की शुरुआत होती है। इतिहासकारों की मानें तो इसकी शुरुआत राजा विक्रमादित्य (Vikramaditya) ने की थी। यह विक्रम संवत अंग्रेजी कैलेंडर से 57 साल आगे चलता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को महाराष्ट्र में 'गुड़ी पड़वा' कहा जाता है। गुड़ी का अर्थ 'विजय पताका' होता है।
गुड़ी पड़वा और वर्ष प्रतिपदा (Gudi Padwa and Varsha Pratipada)

गुड़ी पड़वा पूरे भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने सूर्योदय होने पर सबसे पहले चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि की संरचना शुरू की। उन्होंने प्रतिपदा तिथि को सर्वोत्तम तिथि कहा था, इसलिए इसको सृष्टि का प्रथम दिवस भी कहते हैं।
भारतीय संस्कृति और विक्रमी संवत्सर (Indian culture and Vikrami Samvatsara)
भारत का सर्वमान्य संवत विक्रम संवत है, जिसका प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा कहा जाता है। इस दिन हिंदू नववर्ष का आरंभ होता है। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार सोमरस चंद्रमा ही औषधियों, वनस्पतियों को प्रदान करता है, इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है। भारत में इस संवत्सर के अनुसार ही विभिन्न व्रत, त्योहार, महापुरुषों की जयंती और पुण्यतिथि जैसे महत्वपूर्ण कार्यों के मुहूर्त निर्धारित किए जाते हैं।
प्राकृतिक दृष्टि से नवसंवत्सर (Navsamvatsara from a natural point of view)

नवसंवत्सर का दिन प्रकृति में नवीकरण और उत्सव का प्रतीक है। वसंत ऋतु के आगमन के साथ प्रकृति अपने नवजीवन की ओर बढ़ती है। यह समय होता है जब बर्फ पिघलने लगती है, आम के पेड़ में बौर आते हैं, और प्रकृति अपनी हरीतिमा में नए रंगों में खिलती है। यही कारण है कि इस दिन को विशेष रूप से जीवन के नवीकरण के रूप में मनाया जाता है।
विक्रमादित्य और शकों से मुक्ति (Vikramaditya and freedom from Shakas)
विक्रम संवत्सर का इतिहास यह बताता है कि इसी दिन, 2070 वर्ष पहले, उज्जयनी के नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांताओं से भारत भूमि की रक्षा की और इसके साथ ही काल गणना की शुरुआत की। इस काल में शकों और हूणों ने भारत पर आक्रमण किया था और इन आक्रमणों ने भारतीय संस्कृति को भंग करने की कोशिश की थी।
विक्रमी संवत्सर की शुरुआत और महत्व (Beginning and importance of Vikrami Samvatsara)

विक्रमी संवत्सर की शुरुआत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होती है, जिसे नवसंवत्सर कहा जाता है। इसी दिन से सृष्टि की रचना का आरंभ हुआ था। कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने इसी दिन से सृष्टि का निर्माण किया। इस दिन से नए संवत्सर का आरंभ होता है और इसे विशेष रूप से देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों और सभी जीव-जंतुओं का पूजन करने का दिन माना जाता है।
प्राकृतिक बदलाव और नवसंवत्सर का प्रतीक (Beginning and importance of Vikrami Samvatsara)
नवसंवत्सर का दिन प्रकृति में नवीकरण का प्रतीक है। इस समय वसंत ऋतु का आगमन होता है, बर्फ पिघलने लगती है, आम के पेड़ों पर बौर आ जाता है, और प्रकृति हरीतिमा से भर जाती है। इस दिन को प्रकृति के नए जीवन के रूप में देखा जाता है, जब सृष्टि पुनः अपनी संरचना और नवीनता की ओर बढ़ती है।
भारतीय कैलेंडर की महत्ता (importance of indian calendar)

भारत में आज भी विक्रमी संवत्सर के अनुसार ही व्रत-त्योहार, महापुरुषों की जयंती, पुण्यतिथि, विवाह आदि के मुहूर्त देखे जाते हैं। कहा जाता है कि यूनानियों ने हिंदू कैलेंडर की नकल कर इसे विभिन्न हिस्सों में फैलाया। हालांकि आज के समय में अंग्रेजी कैलेंडर का प्रचलन अधिक हो गया है, लेकिन भारतीय कैलेंडर की महत्ता और उसका प्रभाव आज भी कायम है।
मोरारजी देसाई का दृष्टिकोण (Morarji Desai's view)
पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने विक्रमी नवसंवत्सर के महत्व को स्वीकार करते हुए कहा था, "मेरे देश का सम्मान वीर विक्रमी नवसंवत्सर से है। 1 जनवरी गुलामी की दास्तान है।" उनका यह कथन हमें हमारी भारतीय संस्कृति और परंपराओं से जुड़ने की प्रेरणा देता है।
हमें इस दिन के ऐतिहासिक महत्व को समझने की जरूरत है। विक्रमी संवत्सर भारतीय संस्कृति की पहचान है, और इसे मनाने से ही हमारा स्वाभिमान जागृत हो सकता है। विक्रमी संवत्सर का दिन न केवल एक तिथि है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, इतिहास और परंपराओं का प्रतीक है। यह दिन हमें अपने गौरवपूर्ण अतीत की याद दिलाता है और हमें यह प्रेरणा देता है कि हम अपनी जड़ों से जुड़े रहें और अपनी सांस्कृतिक धरोहर का सम्मान करें।
आप सभी देशवासियों को हिंदू नववर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं।
ऐसी ही जानकारी के लिए विजिट करें- The India Moves
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