
क्या है वक्री शनि का ज्योतिषीय महत्व
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Geetika
- April 5, 2025
ज्योतिष में शनि की भूमिका
वैदिक ज्योतिष के अनुसार नवग्रहों में शनि एक शक्तिशाली ग्रह है,जो अनुशासन,परिश्रम,और हमारे कर्मो को नियंत्रित करता है|शनि कर्मफलदाता होने के कारण जातक जैसा कर्म करता है शनि की साढेसात्ति आने पर जातक को उसके कर्मानुसार फल मिलता है| ठीक उसी तरह जब कुंडली में शनि वक्री होता है उस स्तिथि में शनि सख्त शिक्षक के रूप में कार्य करता है|जिससे व्यक्ति के पिछले जन्म और वर्तमान समय से जुड़े कर्मो के अनुसार शनि फल देता है|इस साढेसात्ति और ढैया के चरण में जातक कठिन परिश्रम करता है| ये परिश्रम बहुत बार पहले से आधी कठिन हो सकता है पर इन्ही प्रयासों से जातक के जीवन में बहुत से बदलाव आते हैं|
प्रथम भाव में वक्री शनि
कुंडली के प्रथम भाव में बैठा वक्री शनि दूसरे भाव पर प्रभाव डालता है|कुंडली का दूसरा भाव परिवार,धन का होता है ऐसी स्तिथि में जातक के परिवार में मनमुटाव,धन एकत्र करने की समस्या,अकेलापन महसूस करता है वक्री शनि जातक को परिवार से दूर कर देता है|वहीँ जातक को आर्थिक रूप से अचानक हानि होने लगती है,जातक अपनी सम्पत्ति से भी लाभ अर्जित करने में असफल महसूस करता है|जातक के पास पैसा नहीं बचता,जातक स्वयं को पूरी तरह से अकेला महसूस करता है पर शनि के प्रथम भाव में वक्री होने पर जातक की जिद औरअहंकार समाप्त होता है पर जातक धनवान होन के साथ कुटिल बुद्धि का भी हो जाता है |
दूसरे भाव में वक्री शनि
तीसरे भाव में वक्री शनि
कुंडली में शनि जब तीसरे भाव मे वक्री हो ऐसी दशा में जातक अपनी जिम्मेदारियों से दूर भागता है| भाई-बहन का कभी सहयोग प्राप्त नहीं होता जातक अपनी शिक्षा के लिए हमेशा परेशान रहता है|ऐसा जातक अपनी उम्र के 25 से 45 साल की उम्र में बहुत मेहनत करता है पर फिर भी आर्थिक संकट का सामना करता है ऐसे जातक को बार- बार रोग परेशान करते हैं|
चतुर्थ भाव में वक्री शनि
पंचम भाव में वक्री शनि
कुंडली में शनि जब पंचम भाव में वक्री हो ऐसी दशा में जातक अपनी संतान के प्रति बहुत लापरवाह हो जाता है|पंचम भाव का शनि संतान की जरूरतों पर ध्यान नहीं देता,संतान कहना मानने वाली नहीं होती पंचम भाव का शनि जातक को प्रेम में स्वार्थी बनाता है सिर्फ शारीरिक उपभोग तक ही सीमित रहता है|ऐसे जातक को समाज में सम्मान नहीं मिलता साथ ही ये आर्थिक रूप से भी कमजोर होते हैं|
छठे भाव में वक्री शनि
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सप्तम भाव में वक्री शनि
कुंडली का सप्तम भाव कलत्र कारक माना गया है साथ ही सप्तम भाव भागीदारी को भी दर्शाता है|वहीं इस भाव में अगर शनि वक्री हो जाए तब किसीभी प्रकार की भागीदारी लम्बे समय तक नहीं चलती सप्तम भाव वैवाहिक जीवन और जीवन साथी के साथ संबंध को भी दर्शाता है अगर शनि सप्तम में वक्री हो ऐसी दशा में शनि जीवनसाथी से दूरी बढ़ाता है साथ ही वैवाहिक जीवन में क्लेश की स्तिथि भी उत्तपन्न करता है|
अष्टम भाव का वक्री शनि
नवम भाव का वक्री शनि
कुंडली में जब शनि नवम भाव में वक्री हो तब जातक अपनी पैतृक सम्पति के प्रति लापरवाह होता है जातक के विचार बहुत सीमित और छोटे होते हैं वह अपनी सम्पति को नष्ट कर देता हैआर्थिक और धार्मिक दृष्टि से जातक को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है|ऐसे जातक अगर अपने विचारों को सही दिशा में लगाते हैं तो समाज में एक श्रेष्ठ पद प्राप्त कर सकते हैं|
दशम भाव का वक्री शनि
कुंडली में जब शनि दशम भाव में वक्री हो तब जातक अपने पद और धन का दुरूपयोग करते हैं|दशम भाव का वक्री शनि जातक को निरुत्साही बनाता है|जातक के पास धन तो रहता है पर जातक उस धन से दान -धर्म का कार्य नहीं करता,जातक को अपने किये हुए कार्य का अहंकार रहता है|जातक का पारिवारिक जीवन सामान्य रहता है|
ग्याहरवें भाव का वक्री शनि
बारहवें भाव का वक्री शनि
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