Supreme Court on Sexual Harassment : सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया राजस्थान हाईकोर्ट का फैसला, यौन उत्पीड़न से जुड़ा है मामला
- Neha Nirala
- November 7, 2024
Supreme Court on Sexual Harassment : यौन उत्पीड़न के मामले को सिर्फ शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच समझौता होने के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है। यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक मामले में राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) के उस आदेश को रद्द करते हुए की, जिसमें कोर्ट ने आरोपी और पीड़ित पक्ष के बीच समझौता (Compromise) हो जाने के आधार पर मामला रद्द किए जाने का आदेश दिया था। राजस्थान हाईकोर्ट ने इस आधार पर नाबालिग छात्रा का यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment of Minor Student) करने के आरोपी शिक्षक को राहत दे दी थी और उसके खिलाफ दर्ज किए गए मुकदमे को रद्द करने का आदेश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला रद्द करने का दिया आदेश
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सीटी रविकुमार और पीवी संजय कुमार की पीठ ने यह अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने मामले में फैसला देते हुए हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त करने, एफआईआर और आपराधिक कानून के अनुसार कार्रवाई आगे बढ़ाए जाने का आदेश दिया। कोर्ट ने स्पष्ट करते हुए कहा कि हमने मामले की योग्यता पर कोई टिप्पणी नहीं की है। कोर्ट ने मामले में सहयोग देने के लिए एमिकस क्यूरी (Amicus Curiae) आर बसंत को भी धन्यवाद दिया। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने मामले में सुनवाई करते हुए अक्टूबर 2023 में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। मामले में कोर्ट के सामने यह सवाल था कि क्या हाईकोर्ट धारा 482 CRPC के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए आरोपी और पीड़िता के बीच समझौते के आधार पर यौन उत्पीड़न के मामले को रद्द कर सकता है ?
पीड़ित-आरोपी के बीच समझौते के आधार पर मामला रद्द करने का दिया था आदेश
बता दें यह मामला तब सामने आया जब 15 वर्षीय लड़की के उत्पीड़न के मामले में अपील की गई। इसमें पिता की शिकायत के आधार पर प्राथमिकी (FIR) दर्ज की गई थी। हालांकि बाद में लड़की के परिवार और आरोपी के बीच समझौता हो गया, जिसके आधार पर आरोपी ने मामले को रद्द करने के लिए राजस्थान हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। कोर्ट ने आरोपी की याचिका स्वीकार करते हुए मामले में एफआईआर रद्द करने का आदेश दिया था। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने जो अपना फैसला सुनाया है, वह याचिका पीड़िता और आरोपी के अलावा तीसरे अप्रभावित पक्ष रामजी लाल बैरवा की ओर से दायर की गई थी।
तीसरे पक्ष की ओर से दायर की गई थी याचिका
याचिका में पीड़ित और आरोपी पक्ष के बीच समझौता हो जाने के आधार पर राजस्थान हाईकोर्ट के एफआईआर रद्द करने के आदेश पर आपत्ति जताई गई थी। याचिका पर शुरुआत में सुनवाई करते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि आपराधिक मामले में अप्रभावित पक्ष याचिका दायर नहीं कर सकता। हालांकि बाद में कोर्ट ने उठाए गए मुद्दे की जांच करने का फैसला किया और आदेश दिया कि आरोपी और पीड़िता के पिता को मामले में पक्ष बनाया जाए। इसके बाद सितंबर 2022 में पारित एक आदेश में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता और केरल उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आर बसंत को कोर्ट की सहायता के लिए मामले में एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था।
इसके बाद कोर्ट ने तीसरे पक्ष की ओर से दायर की गई इस याचिका पर आज अपना फैसला सुना दिया है।
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