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Delhi Assembly Election: कांग्रेस और आप में अनोखी जंग, वोट से पहले चोट

Delhi Assembly Election: कांग्रेस और आप में अनोखी जंग, वोट से पहले चोट

Delhi Assembly Election: दिल्ली विधानसभा चुनाव दो महीने बाद होने हैं। उससे पहले अखिल भारतीय गठबंधन के दो सहयोगी दलों के बीच अनोखी जंग चल रही है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस एक दूसरे के नेताओं को अपनी-अपनी पार्टी में शामिल कराने में जुटे हैं। दोनों ही पार्टियां बीजेपी के खिलाफ लड़ने का दम भर रही हैं, लेकिन एक दूसरे को कमजोर करने की पूरी कोशिश कर रही हैं। शुक्रवार को आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के पूर्व विधायक वीर सिंह धींगान को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया। वीर सिंह सीमापुरी से विधायक रह चुके हैं। सीमापुरी आरक्षित सीट है, इसलिए आप ने दावा किया कि कांग्रेस से कोई बड़ा दलित नेता आम आदमी पार्टी में आता है तो पार्टी को फायदा होगा।

 

एक दूसरे के एक पूर्व विधायक को पार्टी में शामिल कराया गया

बता दें, सीमापुरी वो इलाका है जहां से अरविंद केजरीवाल ने अपने एनजीओ के दिनों में संघर्ष की शुरुआत की थी। तब शीला दीक्षित मुख्यमंत्री थीं। केजरीवाल ने यहीं से राशन में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था। वैसे आप के उस कदम के कुछ ही घंटों बाद कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के पूर्व विधायक हाजी इशराक को अपनी पार्टी का सदस्य बना लिया। मतलब हिसाब बराबर हो गया। इशराक ने 2015 में आम आदमी पार्टी के टिकट पर उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर से चुनाव जीता था। ऐसे में कांग्रेस ने उसी दिन अल्पसंख्यक नेता को लाकर दलित नेता से हिसाब बराबर कर लिया।

 

सीमापुरी और सीलमपुर का खेल

सीमापुरी और सीलमपुर का खेल पहले ही शुरू हो चुका था। आम आदमी पार्टी के पूर्व मंत्री और सीमापुरी विधायक राजेंद्रपाल गौतम हाल ही में केजरीवाल का साथ छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे। यह तय था कि कांग्रेस सीमापुरी से चुनाव में गौतम पर दांव लगाएगी। ऐसे में वीर सिंह धींगान विकल्प नहीं थे। यही हाल हाजी इशराक का भी था। सीलमपुर से पांच बार कांग्रेस विधायक रहे मतीन अहमद आप में शामिल हो गए। उनके साथ उनकी पार्षद बहू और बेटे ने भी कांग्रेस छोड़ दी। हाजी इशराक ने 2015 में मतीन अहमद को हराया था। उन्हें लगा कि कांग्रेस में जाकर टिकट पक्का करने का यही मौका है।

 

कांग्रेस इस चुनाव में वापसी करना चाहती है

कांग्रेस इस चुनाव में वापसी करना चाहती है। 2015 और 2020 में वह अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी। कांग्रेस की उम्मीद आधा दर्जन मुस्लिम बहुल सीटों और एक दर्जन दलित आरक्षित सीटों पर है। केजरीवाल भी जानते हैं कि अगर कांग्रेस इन सीटों पर फिर से उभरी तो उनकी 20 सीटें सीधे तौर पर खतरे में पड़ जाएंगी। ऐसे में बीजेपी को फायदा होगा, इसलिए बीजेपी से लड़ने से पहले आप और कांग्रेस आपस में ही लड़ना चाहती हैं, ताकि असली जंग में उनका फायदा हो।

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