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One Nation One Election को मिली मोदी सरकार की मंजूरी, सदन में होगा पेश

One Nation One Election को मिली मोदी सरकार की मंजूरी, सदन में होगा पेश

केंद्रीय कैबिनेट से एक देश-एक चुनाव लागू करने के विधेयक को मंजूरी मिल गई है। मिडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अगले हफ्ते बिल को संसद में पेश किया जा सकता है। सरकार इस बिल पर आम सहमति बनाना चाहती है,    । प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे पहले 2019 में 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक देश के एक चुनाव का अपना विचार सामने रखा था।

 

इससे पहले 'एक देश, एक चुनाव' पर गठित बेरोजगारी समिति की रिपोर्ट को 18 सितंबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी थी। प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे पहले 2019 में 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक देश के एक चुनाव का अपना विचार सामने रखा था। उन्होंने कहा था कि देश के एकीकरण की प्रक्रिया हमेशा चलती रहनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने ये विचार 2024 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भी सामने रखे।

 

एक देश एक चुनाव की बहस क्या है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस 2019 पर एक देश एक चुनाव का जिक्र किया था। तब से ही सोशल मीडिया पर भाजपा की ओर से एक देश एक चुनाव को लेकर कई चर्चाएं चल रही हैं। यह विचार इस बात पर आधारित है कि देश में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ होना चाहिए। अभी भी आम चुनाव और विधानसभा चुनाव के बीच पांच साल का अंतर होता है। संविधान में इसकी भारतीय व्यवस्था का उल्लेख है। अलग-अलग राज्यों की एक ही विधानसभा का चुनाव अलग-अलग समय पर होता है, उस राज्य में अलग-अलग विधानसभाएं चुनी जाती हैं।

 

हालांकि, कुछ राज्य ऐसे भी हैं, जहां विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होते हैं। इनमें आंध्र प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और तेलंगाना जैसे राज्य शामिल हैं। वहीं, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम जैसे राज्यों में आम चुनाव से ठीक पहले चुनाव हो रहे हैं, जबकि हरियाणा, जम्मू-कश्मीर में छह महीने के भीतर चुनाव संपन्न कराए जा रहे हैं। इसके बाद महाराष्ट्र और झारखंड में राजनेता चुने गए। अब दिल्ली में चुनाव की तैयारी हो रही है।

 

एक देश एक चुनाव की बहस की वजह क्या है?

दरअसल, एक देश एक चुनाव पर बहस 2018 में विधि आयोग की एक मसौदा रिपोर्ट के बाद शुरू हुई थी। उस रिपोर्ट में आर्थिक कारणों पर प्रकाश डाला गया था। आयोग ने कहा था कि 2014 में लोकसभा चुनाव और उसके बाद होने वाले विधानसभा चुनावों का खर्च लगभग बराबर आ रहा है। वहीं, अगर चुनाव एक साथ होते हैं तो यह खर्च 50:50 के अनुपात में होगा।

 

विधि आयोग ने अपनी मसौदा रिपोर्ट में कहा था कि वर्ष 1967 के बाद एक देश एक चुनाव की प्रक्रिया बाधित हुई थी। आयोग ने कहा कि आजादी के शुरुआती दौर में पूर्वी देशों में एक पार्टी का शासन था और क्षेत्रीय दल कमजोर थे। धीरे-धीरे कई राज्यों में अन्य मजबूत दल सत्ता में आ गए। वहीं, संविधान की धारा 356 के इस्तेमाल से एक साथ चुनाव की प्रक्रिया भी बाधित हुई। अब देश की राजनीति में बदलाव आ चुका है। कई राज्यों में क्षेत्रीय आश्रमों की संख्या काफी अच्छी है। वहीं, कई राज्यों में यूक्रेनी सरकार भी है।

एक साथ चुनाव पर गठित समिति के समर्थक कौन हैं?

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एक साथ चुनाव कराने के समर्थकों की मांग दो चरणों में लागू की जाएगी। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। दूसरे चरण में आम चुनाव के 100 दिन बाद स्थानीय निकाय चुनाव (पंचायत और नगर पालिका) कराए जाएंगे। इसके तहत सभी चुनावों के लिए एक साझा नामांकन सूची तैयार की जाएगी। इसके लिए देशभर में विस्तृत चर्चा शुरू होगी। साथ ही एक प्रभावशाली समूह भी बनाया जाएगा।

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